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संसद प्रश्न: परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन

संसद प्रश्न: परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन

वर्ष 2047 तक 100 गीगावाट तक नियोजित विस्तार से उत्पन्न होने वाले परमाणु अपशिष्ट का प्रबंधन वर्तमान अपशिष्ट प्रबंधन पद्धति के अनुरूप है। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और ईंधन चक्र सुविधाओं से उत्पन्न होने वाले परमाणु अपशिष्टों का निपटान/प्रबंधन “परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962”, उसके बाद के संशोधनों और परमाणु ऊर्जा (रेडियोधर्मी अपशिष्टों का सुरक्षित निपटान) नियम, 1987 के प्रावधानों के तहत सुरक्षित रूप से किया जाता है।

रेडियोधर्मी अपशिष्ट के प्रबंधन की परिचालन क्षमता और इसके अवलोकन के लिए स्वतंत्र नियामक क्षमता को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक रेडियोधर्मी अपशिष्ट प्रबंधन स्थापित किया गया है। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में संचालन के दौरान उत्पन्न रेडियोधर्मी अपशिष्ट निम्न और मध्यम गतिविधि स्तर के होते हैं और उनका प्रबंधन स्थल पर ही किया जाता है। इन अपशिष्टों को उपचारित, सांद्रित, संहत, सीमेंट जैसी ठोस सामग्रियों में स्थिर किया जाता है और विशेष रूप से निर्मित संरचनाओं जैसे प्रबलित कंक्रीट खाइयों और टाइल के छिद्रों के माध्‍यम से इनका निपटारा किया जाता है। अपशिष्ट में मौजूद रेडियोधर्मिता के प्रभावी परिसीमन की पुष्टि करने के लिए भूमिगत जल और मिट्टी के नमूनों की नियमित निगरानी करके योजनाबद्ध तरीके से बनाए गए बोर-वेल की मदद से निपटान सुविधाओं पर निरंतर निगरानी रखी जाती है। यह अभ्यास अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के दिशानिर्देशों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधियों के अनुरूप है।

वर्ष 2025-26 के बजट घोषणा के बाद वर्ष 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु क्षमता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक समिति द्वारा सक्रिय रूप से विचार-विमर्श किया गया है, जिसमें परमाणु अपशिष्ट के प्रबंधन सहित सभी प्रासंगिक पहलुओं की समीक्षा की गई है।

परमाणु ऊर्जा मिशन की सफलता के लिए 5 से 7 वर्ष की समय-सीमा के भीतर, नीतिगत, कानूनी और विनियामक सुधारों की दिशा में परमाणु ऊर्जा उत्पादन के सभी संबंधित क्षेत्रों में प्रयुक्त ईंधन पुनर्संसाधन और अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित अनेक गतिविधियां शामिल हैं।

आमतौर पर, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से निकलने वाले रेडियोधर्मी ठोस अपशिष्ट का निपटारा संयंत्रों के बंद होने सहित उनके संचालन तक घन मीटर/वर्ष/मेगावाट के भीतर ही किया जाता है। अपशिष्ट के निपटारे की मात्रा और स्थान के संबंध में रेडियोधर्मी अपशिष्टों का रिकॉर्ड नियमित रूप से नियामक प्राधिकरण के पास दर्ज किया जाता है।

देश में विखंडनीय सामग्री की प्राप्ति और परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन के बोझ को कम करने के लिए एक बंद परमाणु ईंधन चक्र का पालन किया जाता है, जहां खर्च किए गए ईंधन को पुन: संसाधित किया जाता है और इसके अधिकांश घटकों को भविष्य के रिएक्टरों के लिए ईंधन के रूप में पुनर्नवीनीकरण किया जाता है। पुन: प्रसंस्करण के दौरान उत्पन्न उच्च-स्तरीय रेडियोधर्मी अपशिष्ट को विट्रीफिकेशन द्वारा एक निष्क्रिय ग्लास मैट्रिक्स में स्थिर किया जाता है और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं के अनुरूप अंतरिम भंडारण के लिए ठोस भंडारण निगरानी सुविधाओं में संग्रहीत किया जाता है। अपशिष्ट मात्रा में कमी के लिए सामाजिक अनुप्रयोग के लिए लंबे समय तक रहने वाले रेडियोधर्मी घटकों की प्राप्ति और उपयोगी रेडियोआइसोटोप के पृथक्करण/निष्कर्षण के लिए विभाजन प्रौद्योगिकियों पर अनुसंधान और विकास जारी है और निष्क्रिय या अल्पकालिक रेडियोधर्मी अपशिष्टों के लिए लंबे समय तक रहने वाले एक्टिनाइड्स का निपटारा करने से आने वाले दशकों में दीर्घकालिक निपटान की आवश्यकता समाप्त होने की संभावना है।

बजट 2025-26 के दौरान घोषित परमाणु ऊर्जा मिशन का उद्देश्य एसएमआर के विकास के लिए 20,000 करोड़ रुपये का परिव्यय बनाना है जो अनुसंधान और विकास के लिए धन की आवश्यकता को पूरा करेगा। वर्ष 2047 तक 100 गीगावाट के मिशन और संबंधित ईंधन चक्र गतिविधियों (परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन शामिल है) को इसके कार्यान्वयन को पूरा करने के लिए अत्‍यधिक धनराशि की आवश्यकता होगी जिसे अतिरिक्त बजटीय संसाधनों के साथ-साथ निजी वित्तपोषण द्वारा पूरा किया जाएगा। अभूतपूर्व परमाणु ऊर्जा विकास के लिए बड़े पैमाने पर धन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नीतिगत स्तर पर जलवायु कार्रवाई के हिस्से के रूप में परमाणु ऊर्जा की भूमिका को भारत के जलवायु वित्त वर्गीकरण (ड्राफ्ट) में मान्यता दी गई है, जो परमाणु को जलवायु वित्त के लिए पात्र बनाएगा, जिससे नए परमाणु संयंत्रों और संबंधित ईंधन चक्र सुविधाओं को लाने में वित्त की आवश्यकता कम हो जाएगी।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री, परमाणु ऊर्जा विभाग और अंतरिक्ष विभाग राज्‍य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने यह जानकारी आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी।