कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने जैविक कपास प्रमाणन में निराधार आरोपों का खंडन किया
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने जैविक कपास प्रमाणन में निराधार आरोपों का खंडन किया
राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (एनपीओपी) 2001 में भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के वाणिज्य विभाग द्वारा जैविक उत्पादों के निर्यात हेतु शुरू किया गया था और एपीडा एनपीओपी के कार्यान्वयन हेतु सचिवालय के रूप में कार्य करता है। उत्पादक समूह प्रमाणन प्रणाली 2005 में शुरू की गई थी क्योंकि छोटे और सीमांत किसानों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इसे आवश्यक समझा गया था।
जैविक उत्पादों के निर्यात के लिए तीसरे पक्ष द्वारा प्रमाणन अनिवार्य है। फसल उत्पादन के लिए एनपीओपी मानकों को यूरोपीय आयोग और स्विट्जरलैंड द्वारा अपने देश के मानकों के समकक्ष मान्यता दी गई है और इनको ग्रेट ब्रिटेन द्वारा भी स्वीकार किया गया है। ताइवान के साथ जैविक उत्पादों के लिए एमआरए है।
एनपीओपी के तहत जैविक प्रमाणन प्रणाली में जैविक प्रक्रियाओं और जैविक उत्पादों के लिए एक तीसरे पक्ष द्वारा प्रमाणन प्रणाली शामिल है। इसे एक प्रमाणन निकाय (सरकारी या निजी) द्वारा आपूर्ति श्रृंखला में प्रमाणित किया जाता है। मान्यता प्राप्त प्रमाणन निकाय अपनी मान्यता के दायरे के अनुसार जैविक संचालकों को प्रमाणित करते हैं। वर्तमान में, भारत में 37 प्रमाणन निकाय कार्यरत हैं जिनमें 14 राज्य प्रमाणन निकाय शामिल हैं।
यहां यह स्पष्ट किया जाता है कि एपीडा या वाणिज्य विभाग, एनपीओपी के तहत जैविक खेती करने वाले किसानों को कोई अनुदान नहीं देता है। 50,000 रुपये प्रति हेक्टेयर का आंकड़ा और अन्य गलत गणनाएं निराधार हैं।
एनपीओपी के तहत जैविक प्रमाणीकरण केवल मध्य प्रदेश तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह 31 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में फैला हुआ है। नवीनतम रिकॉर्ड (19.07.2025 तक) के अनुसार, एनपीओपी के तहत 4712 सक्रिय जैविक उत्पादक समूह हैं। इन समूहों में लगभग 19,29,243 किसान शामिल हैं। ये उत्पादक समूह न केवल कपास बल्कि अनाज, दलहन, तिलहन, चाय, कॉफी, मसालों का उत्पादन करते हैं।
इस प्रकार, विवरण में उल्लिखित जैविक उत्पादक समूहों की संख्या के साथ–साथ किसानों की संख्या गलत है। यह अनुमान लगाना भी भ्रामक है कि भारत के सभी जैविक उत्पादक समूह मध्य प्रदेश में स्थित हैं और केवल कपास का उत्पादन कर रहे हैं।
यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि कपास केवल उत्पादन स्तर तक ही एनपीओपी के अंतर्गत आता है। इसके बाद, ओटाई, प्रसंस्करण आदि सहित उत्पादन के बाद के कार्य निजी प्रमाणीकरण के अंतर्गत किया जाता है।
एनपीओपी के अंतर्गत, आईसीएस का प्रबंधन स्वयं किया जा सकता है या किसी सेवा प्रदाता/अधिदेशक के माध्यम से किया जा सकता है। एनपीओपी मानकों के अनुसार, आईसीएस के लिए सभी किसानों का वर्ष में दो बार आंतरिक निरीक्षण करना अनिवार्य है। इसके अलावा, प्रमाणन निकाय (सीबी) प्रत्येक आईसीएस की वार्षिक लेखा परीक्षा करता है जिसमें एक नमूना योजना के आधार पर कार्यालय लेखा परीक्षा और कृषि लेखा परीक्षा शामिल हैं। नमूना योजना मुख्य रूप से जोत के आकार, आईसीएस में किसानों की संख्या और जोखिम मूल्यांकन पर आधारित होती है। प्रमाणन निकाय आवश्यकतानुसार अतिरिक्त निरीक्षण भी कर सकते हैं।
उपरोक्त के अतिरिक्त, एनएबी द्वारा एपीडा के माध्यम से सीबी पर तीसरे स्तर की जांच की जाती है जिसमें जोखिम मूल्यांकन/प्राप्त शिकायतों के आधार पर उत्पादक समूहों (आईसीएस) सहित ऑपरेटरों की अघोषित लेखा परीक्षा जांच की जाती है। यह लेखा परीक्षा जांच एनएबी द्वारा गठित और एपीडा द्वारा समन्वित एक मूल्यांकन समिति द्वारा की जाती है।
प्रणाली में उपर्युक्त जांच और संतुलन स्थापित होने के बावजूद, उत्पादक समूह प्रमाणन में गड़बड़ी और दुरुपयोग की घटनाएं सामने आई हैं। इस प्रकार के गैर-अनुपालन केवल भारत या एनपीओपी तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि किसी भी नियामक प्रणाली में भी होता है। इस संबंध में, अधिकारियों द्वारा निम्नलिखित कार्रवाई की गई है:
एपीडा यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि एनपीओपी के अंतर्गत जैविक प्रमाणन प्रणाली विश्वसनीय, पारदर्शी और स्पष्ट हो। जहां कहीं भी जैविक मानकों के गैर-अनुपालन/जानबूझकर उल्लंघन के विश्वसनीय प्रमाण सामने आए हैं, एपीडा ने व्यापक जांच की है और ठोस कदम उठाए हैं। ऐसे सभी मामलों की प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए निर्धारित जांच की जाती है। किसी भी प्रमाणन निकाय या संचालक द्वारा मानदंडों का उल्लंघन पाए जाने पर एनपीओपी विनियमन के अनुसार दंडित किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि कल एक विपक्षी नेता द्वारा प्रेस वार्ता में जैविक प्रमाणीकरण कार्यक्रम, राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (एनपीओपी) के विरुद्ध निराधार, अप्रमाणित और भ्रामक आरोप लगाए गए हैं।
किसी विशेष फसल/क्षेत्र/संचालकों के समूह के लिए देश की मजबूत नियामक प्रणाली के विरुद्ध सामान्यीकृत आरोप केवल वैध नियामक संस्थाओं और भारत में व्यापक जैविक आंदोलन की विश्वसनीयता को कमजोर करने का काम करते हैं।