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किण्वित खाद्य पदार्थ भारत की विविध जनसंख्या के लिए पोषण को वैयक्तिकृत कर सकते हैं

किण्वित खाद्य पदार्थ भारत की विविध जनसंख्या के लिए पोषण को वैयक्तिकृत कर सकते हैं

किण्वित खाद्य (उन खाद्य पदार्थों को कहते हैं जिनमें सूक्ष्मजीवों की मदद से किण्वन की प्रक्रिया होती है) पदार्थों के प्रति जनसंख्या-विशिष्ट प्रतिक्रियाओं के एक अध्ययन से पता चलता है कि उनमें मौजूद जैवसक्रिय पेप्टाइड्स का स्वास्थ्य प्रभाव, विभिन्न जनसंख्याओं में भिन्न होता है, तथा भारत की विविध जनसंख्या के लिए पोषण को वैयक्तिकृत कर सकता है।

किण्वित खाद्य पदार्थों से प्राप्त जैवसक्रिय पेप्टाइड्स अपने स्वास्थ्य लाभों के कारण विश्व स्तर पर ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। जैव प्रौद्योगिकी में प्रगति और व्यक्तिगत अंतरों की गहरी समझ के साथ, जैवसक्रिय पेप्टाइड्स पोषण और स्वास्थ्य समाधानों के लिए बड़ी संभावनाएं पैदा कर सकते हैं।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान, गुवाहाटी स्थित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उन्नत अध्ययन संस्थान (आईएएसएसटी) द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में पारंपरिक किण्वित खाद्य पदार्थों के स्वास्थ्य लाभों पर ज़ोर दिया गया है। उन्होंने दिखाया कि इनमें मौजूद बायोएक्टिव पेप्टाइड्स (बीएपी) या 2 से 20 अमीनो एसिड वाले छोटे प्रोटीन अंश रक्तचाप, रक्त शर्करा, प्रतिरक्षा और सूजन को नियंत्रित कर सकते हैं।

प्रोफेसर आशीष के. मुखर्जी, संवाददाता लेखक और निदेशक आईएएसएसटी, डॉ. मलोयजो जॉयराज भट्टाचार्य, डॉ. असिस बाला और डॉ. मोजिब्र खान के नेतृत्व में फूड केमिस्ट्री (2025) में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि दही, इडली, मिसो, नट्टो, किमची और किण्वित मछली जैसे खाद्य पदार्थों में इन पेप्टाइड्स के उच्च स्तर होते हैं।

किण्वन के दौरान बनने वाले ये छोटे पेप्टाइड्स, इलेक्ट्रोस्टैटिक बलों, हाइड्रोजन बॉन्डिंग और हाइड्रोफोबिक इंटरैक्शन के माध्यम से जैव अणुओं के साथ परस्पर क्रिया करते हैं, जिससे रोगाणुरोधी, एंटीहाइपरटेंसिव, एंटीऑक्सिडेंट और प्रतिरक्षा-संशोधक प्रभाव उत्पन्न होते हैं।

यह हृदय क्रिया, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया और चयापचय स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। हालाँकि, आनुवंशिक बहुरूपता, आंत माइक्रोबायोटा संरचना, आहार संबंधी आदतों और स्वास्थ्य स्थितियों के कारण इनकी जैव उपलब्धता और प्रभावशीलता विभिन्न आबादी में भिन्न होती है। एसीई या आईएल-6 में जीन भिन्नताएं इन पेप्टाइड्स के प्रति व्यक्तिगत प्रतिक्रियाओं को प्रभावित कर सकती हैं। यह डेटा विविध भारतीय आबादी के लिए अनुकूलित सटीक पोषण और लक्षित स्वास्थ्य हस्तक्षेपों की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।

जर्नल फूड केमिस्ट्री में प्रकाशित शोध, किण्वन विधियों में परिवर्तनशीलता, पेप्टाइड स्थिरता और माइक्रोबायोटा के साथ अंतःक्रिया जैसी चुनौतियों का समाधान कर सकता है।

अध्ययन में पारंपरिक किण्वित खाद्य पदार्थों को जन स्वास्थ्य पहलों में शामिल करने की वकालत की गई है। यह ग्रामीण खाद्य प्रणालियों में ओमिक्स-आधारित (जैविक अनुसंधान जो अणुओं के विशाल समूहों का विश्लेषण करने के लिए उच्च-थ्रूपुट तकनीकों का उपयोग करते हैं) अनुसंधान और नवाचार की आवश्यकता पर बल देता है ताकि भारत को व्यक्तिगत पोषण में वैश्विक अग्रणी के रूप में स्थापित किया जा सके।