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Text of PM’s address at the Hindustan Times Leadership Summit 2024

Text of PM’s address at the Hindustan Times Leadership Summit 2024

साथियों, 

एक और उदाहरण, एलपीजी गैस सिलेंडर का है। पहले जब किसी के घर में गैस होती थी तो अड़ोस-पड़ोस के लोग ये सोचते थे कि कोई बड़ा व्यक्ति है, उसका बड़ा रुतबा माना जाता, उनके पास गैस का चूल्हा है। जिसके पास गैस कनेक्शन नहीं होता था, वो सोचता था कि काश उसका खाना भी गैस के चूल्हे पर बनता। हालत ये थी कि गैस कनेक्शन के लिए सांसदों से, पार्लियामेंट मेंबर्ससे चिट्ठियां लिखवानी पड़ती थीं, और मैं 21वीं सदी की शुरू की बात कर रहा हूं, ये कोई 18वीं शताब्दी की बात नहीं कर रहा हूं। 2014 से पहले सरकार डिबेट करती थी और डिबेट क्या करती थी?  डिबेट ये होती थी कि साल में 6 सिलेंडर देने हैं या फिर 9 सिलेंडर देने हैं…इस पर डिबेट होती थी। हमने सिलेंडर कितने देने हैं, इस डिबेट के बजाय हर घर गैस के चूल्हे का कनेक्शन पहुंचाने को प्राथमिकता बनाया। जितने गैस कनेक्शन आजादी के बाद के 70 साल में दिए गए, उससे ज्यादा हमने पिछले 10 साल में दिए हैं। 2014 में देश में 14 करोड़ गैस कनेक्शन थे, आज 30 करोड़ से ज्यादा हैं। 10 साल में इतने कंज्यूमर बढ़ गए, लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि गैस की किल्लत है?  नहीं सुना है, हिंदुस्तान टाइम्स में छपा है कभी…नहीं छपा है…हुआ ही नहीं तो छपेगा कैसे। ये इसलिए नहीं सुनाई देता क्योंकि हमने एक सपोर्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया, उस पर Invest किया। हमने जगह-जगह बॉटलिंग प्लांट लगाए, डिस्ट्रिब्यूशन सेंटर बनाए। बॉटलिंग से लेकर सिलेंडर की डिलीवरी तक इससे हर जगह रोज़गार का निर्माण हुआ। 

साथियों, 

मैं आपको ऐसे कितने ही उदाहरण दे सकता हूं। मोबाइल फोन का उदाहरण है…रूपे कार्ड का उदाहरण है…पहले डेबिट-क्रेडिट कार्ड रखना, कुछ लोगों को एक अलग गर्व महसूस करवाता था, जेब में से ऐसे निकालता था और लोग देखते थे। और गरीब उसी कार्ड को देखकर सोचता था…काश कभी मेरी जेब में भी। लेकिन रूपे कार्ड आया और आज मेरे देश के गरीब की जेब में भी क्रेडिट-डेबिट कार्ड मौजूद है दोस्तों। अब उसी पल वो उसको बराबरी महसूस करता है, उसका self respect बढ़ जाता है। आज गरीब से गरीब ऑनलाइन ट्रांजेक्शन करता है। बड़े शॉपिंग मॉल में कोई महंगी कार से उतरकर भी वही UPI इस्तेमाल करता है, जो मेरे देश का रेहड़ी-पटरी पर बैठा हुआ एक सामान्य इंसान भी उसी UPI का उपयोग करता है। ये भी Investment से Employment, Development से Dignity का बेहतरीन उदाहरण है। 

साथियों, 

भारत आज जिस ग्रोथ ट्रेजेक्टरी पर है…उसे समझने के लिए हमारी सरकार की एक और अप्रोच पर गौर करना ज़रूरी है। ये अप्रोच है- Spending Big For The People लेकिन साथ-साथ दूसरा भी एक अप्रोच है- Save Big For The People. हम ये कैसे कर रहे हैं, ये जानना शायद आपके लिए दिलचस्प होगा। 2014 में हमारा यूनियन बजट 16 लाख करोड़ रुपए के आसपास था। आज ये बजट 48 lakh crore रुपए का है। 2013-14 में हम Capital Expenditure में करीब सवा दो लाख करोड़ रुपये खर्च करते थे। लेकिन आज का Capital Expenditure 11 लाख करोड़ से ज्यादा है। ये 11 लाख करोड़ रुपये आज नए अस्पताल, नए स्कूल, सड़क, रेल, रिसर्च फैसिलिटी, ऐसे अनेक पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च कर रहे हैं। पब्लिक पर खर्च बढ़ाने के साथ ही हम पब्लिक का पैसा भी बचा रहे हैं। मैं आपके सामने कुछ आंकड़े रख रहा हूं और मैं पक्का मानता हूं कि ये आंकड़े सुनकर के आपको लगेगा अच्छा ऐसा भी हो सकता है।

अब जैसे Direct Benefit Transfer, DBT… DBT से जो लीकेज रूकी है, उससे देश के साढ़े 3 लाख करोड़ रुपये बचे हैं। आयुष्मान भारत योजना के तहत मुफ्त इलाज से गरीबों के एक लाख 10 हजार करोड़ रुपए बचे हैं। जनऔषधि केंद्रों में 80 परसेंट डिस्काउंट पर मिल रही दवाइयों से नागरिकों के 30 हजार करोड़ रुपये बचे हैं। स्टेंट और Knee इंप्लांट की कीमतों को नियंत्रित करने से लोगों के हजारों करोड़ रुपए बचे हैं। उजाला स्कीम से लोगों को LED बल्ब से बिजली बिल में 20 हजार करोड़ रुपए की बचत हुई है। स्वच्छ भारत अभियान, स्वच्छ भारत मिशन के कारण बीमारियां कम हुई हैं और इससे गांवों में हर परिवार के करीब 50 हजार रुपये बचे हैं। यूनिसेफ का कहना है कि जिस परिवार के पास अपना टॉयलेट है, उसके भी करीब 70 हजार रुपए बच रहे हैं। 

साथियों, 

जिन 12 करोड़ लोगों के घर पहली बार नल से जल आया है, WHO ने उन पर भी एक स्टडी कराई है। अब साफ पानी मिलने से ऐसे परिवारों को हर साल 80 हजार रुपये से ज्यादा की बचत हुई है। 

साथियों,

10 साल पहले किसी ने नहीं सोचा था कि भारत में इतना बड़ा बदलाव होगा। भारत की सफलता ने हमें और बड़ा सपना देखने और उसे पूरा करने की प्रेरणा दी है। आज एक उम्मीद है, एक सोच है कि ये Century, India की Century होगी। लेकिन ऐसा करने के लिए और तेजी से काम करने के लिए हमें कई सारे प्रयास भी करने होंगे। हम उस दिशा में भी तेजी से काम कर रहे हैं। हमें हर सेक्टर में best करने के लिए आगे बढ़ना होगा। पूरे समाज की ये सोच बनानी होगी कि हमें best से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करना है। हमें अपने प्रोसेस को ऐसा बनाना होगा, कि भारत का स्टैंडर्ड World Class कहा जाए। हमें ऐसे प्रोडक्ट्स बनाने होंगे, कि भारत की चीजें दुनिया में World Class कही जाएं। हमारे constructions पर ऐसे काम हो कि भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर World Class कहा जाए। शिक्षा के क्षेत्र में हमारा काम ऐसा हो कि भारत की Education को World Class स्वीकृति मिले। Entertainment के क्षेत्र में ऐसे काम हो कि हमारी फिल्मों और थिएटरों को दुनिया में World Class कहा जाए। और इस बात को, इस अप्रोच को लगातार जनमानस में बनाए रखने के लिए हिंदुस्तान टाइम्स की भी बहुत बड़ी भूमिका है। आपका 100 साल का अनुभव, विकसित भारत की यात्रा में बहुत काम आएगा। 

साथियों, 

मुझे पूरा विश्वास है कि हम Development की इस Pace को बरकरार रखेंगे। बहुत जल्द हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनेंगे। और भारत जब शताब्दी मनाएगा आजादी की, भारत की आजादी के 100 साल होंगे तब आप भी करीब-करीब सवा सौ साल के हो जाएंगे, और तब हिंदुस्तान टाइम्स लिखता होगा कि विकसित भारत का ये शानदार अखबार है। इस यात्रा के आप भी साक्षी बनेंगे। लेकिन जब मैं आपके बीच आया हूं तो कुछ काम भी आपको बताना चाहता हूं, और ये भरतीया जी आपकी जिम्मेवारी रहेगी। 

देखिए हमारे यहां बड़े-बड़े साहित्यकारों के रचनाओं पर पीएचडी होती है। अलग-अलग शोध पर पीएचडी होती है। शशि जी क्या कोई हिंदुस्तान टाइम्स के 100 साल उस पर ही पीएचडी करें। ये बहुत बड़ी सेवा होगी। उससे रिसर्च होगा यानी एक ऐसी चीज निकल करके आएगी जो हमारे देश की पत्रकारिता की जो जर्नी है, और उसने दोनों कालखंड देखे हैं, गुलामी का कालखंड भी देखा है, आजादी का भी देखा है। उसने अभाव के दिन भी देखें हैं और प्रभाव के दिन भी देखें है। मैं समझता हूं एक बहुत बड़ी सेवा हो सकती है। और बिरला परिवार तो पहले से चैरिटी में विश्वास करने वाला परिवार रहा है। क्यों ना किसी यूनिवर्सिटीज में हिंदुस्तान में भी और हिंदुस्तान के बाहर भी हिंदुस्तान टाइम्स की चेयर हो, और जो भारत को वैश्विक संदर्भ में उसकी सही पहचान के लिए रिसर्च के काम करवाती हो। एक अखबार अपने आप में बहुत बड़ा काम है जो आपने किया है। लेकिन आपके पास इतनी बड़ी पूंजी है 100 साल में आपने जो इज्जत कमाई है, जो विश्वास कमाया है, वो शायद आने वाले पीढ़ियों के लिए हिंदुस्तान टाइम्स के दायरे से बाहर निकाल करके भी उपयोगी हो सकता है। मुझे पूरे विश्वास है कि आप इस 100 वर्ष सेमिनार तक सीमित नहीं रहेंगे, इसको आगे बढ़ाएंगे। दूसरा मैंने जो एग्जीबिशन देखा, वाकई वो प्रभावित करने वाला है। क्या आप इसका एक डिजिटल वर्जन और बहुत अच्छी commentary के साथ, और उसको हमारे देश के सभी स्कूल के बच्चों तक पहुंचा सकते हैं। इससे पता चलेगा कि भारत में यह क्षेत्र कैसा है, कैसे-कैसे भारत के विकास यात्रा में उतार-चढ़ाव आए हैं, किन-किन परिस्थितियों से भारत गुजरा है, यह बहुत जरूरी होता है। और मैं मानता हूं कि आपने इतनी मेहनत तो की है इसका एक डिजिटल वर्जन बनाकर के आप देश के हर स्कूल में पहुंचा सकते हैं, जो बच्चों के लिए भी एक बड़ा आकर्षण का केंद्र बनेगा। 

साथियों, 

100 साल बहुत बड़ी बात होती है। मैं इन दिनों थोड़े अलग कामों में जरा ज्यादा व्यस्त हूं। लेकिन ये एक ऐसा अवसर था कि मैं छोड़ना नहीं चाहता था आपको, मैं खुद आना चाहता था। क्योंकि 100 साल की यात्रा अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। और इसलिए मैं  आपको, आपके पूरे साथियों को सबको हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं। धन्यवाद!

 

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