Text of PM’s address at Rashtriya Ekta Diwas programme in Kevadia
                        Text of PM’s address at Rashtriya Ekta Diwas programme in Kevadia
                    
मैं कहूंगा सरदार पटेल, आप सब कहेंगे अमर रहे, अमर रहे।
सरदार पटेल – अमर रहे, अमर रहे।
सरदार पटेल – अमर रहे, अमर रहे।
सरदार पटेल – अमर रहे, अमर रहे।
सरदार पटेल की एक सौ पचासवीं जयंती का ऐतिहासिक अवसर एकतानगर की ये दिव्य सुबह, ये विहंगम दृश्य, सरदार साहब के चरणों में हमारी उपस्थिति, आज हम सब एक महान क्षण के साक्षी बन रहे हैं। देशभर में हो रही एकता दौड़, रन फ़ॉर यूनिटी, कोटि-कोटि भारतीयों का उत्साह, हम नए भारत की संकल्पशक्ति को, साक्षात महसूस कर रहे हैं। अभी यहाँ जो कार्यक्रम हुए, कल शाम जो अद्भुत प्रस्तुति हुई, उनमें भी, अतीत की परंपरा थी, वर्तमान का श्रम और शौर्य था, और भविष्य की सिद्धि की झलक भी थी। सरदार साहब की एक सौ पचासवीं जयंती के उपलक्ष्य में, स्मृति सिक्का और विशेष डाक टिकट भी जारी किया गया है। मैं सभी 140 करोड़ देशवासियों को, सरदार साहब की जंयती की, राष्ट्रीय एकता दिवस की, बहुत-बहुत बधाई देता हूं, अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं।
साथियों,
सरदार पटेल मानते थे, कि इतिहास लिखने में समय नहीं गंवाना चाहिए, हमें तो इतिहास बनाने के लिए मेहनत करनी चाहिए। उनकी ये भावना, हमें उनकी जीवन-गाथा में दिखाई देती है। सरदार साहब ने जो नीतियां बनाईं, जो निर्णय लिए, उन्होंने नया इतिहास रचा, नया इतिहास बनाया। आजादी के बाद साढ़े पांच सौ से ज्यादा रियासतों को एक साथ जोड़ने के असंभव कार्य को, उन्होंने संभव करके दिखा दिया। एक भारत-श्रेष्ठ भारत का विचार उनके लिए सर्वोपरि था। इसीलिए, आज सरदार पटेल की जंयती का दिन, स्वभाविक रूप से राष्ट्रीय एकता का महापर्व बन गया है। जिस तरह हम 140 करोड़ देशवासी, 15 अगस्त को स्वतन्त्रता दिवस मनाते हैं, 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस मनाते हैं, वैसे ही एकता दिवस का महत्व हमारे लिए प्रेरणा की पल है, गर्व की पल है। आज करोड़ों लोगों ने एकता की शपथ ली है, हमने संकल्प लिया है कि हम ऐसे कार्यों को बढ़ावा देंगे, जो देश की एकता को मजबूती दे। यहां एकता नगर में ही एकता मॉल, एकता गार्डन, एकता के सूत्र को सशक्त करते दिखते हैं।
साथियों,
हर ऐसी बात, जो देश की एकता को कमजोर करती है, हर देशवासी को उससे दूर रहना है। यह राष्ट्रीय कर्तव्य है, यह सरदार साहब को सच्ची श्रद्धांजलि है। यही आज देश की जरूरत है, य़ही आज एकता दिवस का हर भारतीय के लिए संदेश भी है, संकल्प भी है।
साथियों,
सरदार साहब ने देश की संप्रभुता को सबसे ऊपर रखा, लेकिन दुर्भाग्य से, सरदार साहब के निधन के बाद के वर्षों में, देश की संप्रभुता को लेकर तब की सरकारों में उतनी गंभीरता नहीं रही। एक ओर कश्मीर में हुई गलतियां, दूसरी ओर पूर्वोत्तर में पैदा हुई समस्याएं और देश भर में जगह-जगह पनपा नक्सलवाद-माओवादी आतंक, ये देश की संप्रभुता को सीधी चुनौतियाँ थीं। लेकिन, उस दौर की सरकारों ने, सरदार साहब की नीतियों पर चलने की जगह, रीढ़विहीन रवैये को चुना। इसका परिणाम देश ने हिंसा और रक्तपात के रूप में झेला।
साथियों,
आज की युवा पीढ़ी में, बहुत से लोगों को पता नहीं होगा, सरदार साहब चाहते थे, जैसे उन्होंने बाकी रियासतों का विलय किया, वैसे ही पूरे कश्मीर का विलय हो। लेकिन, नेहरू जी ने उनकी वो इच्छा पूरी नहीं होने दी। कश्मीर को अलग संविधान और अलग निशान से बाँट दिया गया!
साथियों,
कश्मीर पर काँग्रेस ने जो गलती की थी, उसकी आग में देश दशकों तक जला, कांग्रेस की लचर नीतियों के कारण कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के अवैध कब्जे में चला गया, पाकिस्तान ने आतंकवाद को हवा दी, State sponsored terrorism.
साथियों,
कश्मीर और देश को इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। लेकिन, फिर भी काँग्रेस हमेशा आतंकवाद के आगे नतमस्तक रही।
साथियों,
कांग्रेस ने सरदार साहब के विजन को भुला दिया, लेकिन हम नहीं भूले। 2014 के बाद देश ने एक बार फिर उनकी प्रेरणा से भरी फौलादी इच्छाशक्ति को देखा है। आज कश्मीर आर्टिकल-370 की जंजीरो को तोड़कर पूरी तरह मुख्यधारा से जुड़ चुका है। आज पाकिस्तान और आतंक के आकाओं को भी पता चला है कि भारत की असली ताकत क्या है! ऑपरेशन सिंदूर में पूरी दुनिया ने देखा है, आज अगर कोई भारत पर आँख उठाता है, तो भारत घर में घुसकर मारता है। हर बार भारत का जवाब पहले से बड़ा होता है, पहले से ज्यादा निर्णायक होता है। ये भारत के दुश्मनों के लिए एक संदेश भी है, ये लौहपुरुष सरदार पटेल का भारत है, ये अपनी सुरक्षा और सम्मान से कभी भी समझौता नहीं करता है।
साथियों,
राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर पिछले 11 साल में भारत की सबसे बड़ी सफलता है- नक्सलवाद-माओवादी आतंक की कमर तोड़ना। 2014 से पहले हमारे देश में हालत ऐसी थी कि देश के भीतर, देश के बीचों-बीच नक्सली-माओवादी अपनी हुकूमत चलाते थे। नक्सली क्षेत्रों में देश का संविधान नहीं चलता था। पुलिस प्रशासन वहाँ काम नहीं कर पाता था। नक्सली खुलेआम नए-नए फरमान जारी करते थे। सड़कें नहीं बनने देते थे। स्कूल कॉलेज और हॉस्पिटल को बम से उड़ा दिया जाता था। और शासन-प्रशासन उनके आगे लाचार नज़र आता था।
साथियों,
2014 के बाद हमारी सरकार ने नक्सलवाद-माओवादी आतंक पर प्रचंड प्रहार किया। हमने शहरों में बैठे अर्बन नक्सलियों के समर्थकों, अर्बन नक्सलियों को भी किनारे लगाया, हमने वैचारिक लड़ाई भी जीती और नक्सलियों के गढ़ में जाकर उनसे मोर्चा लिया, इसका परिणाम आज देश के सामने है। 2014 के पहले देश के करीब सवा सौ जिले माओवादी आतंक की चपेट में थे। आज ये संख्या केवल 11 बची है। और उसमे भी सिर्फ तीन जिलों में ही नक्सलवाद अभी भी कुछ गंभीर रूप से हावी है। और आज मैं सरदार पटेल के सानिध्य में, एकता नगर की इस धरती से, पूरे देश को ये भरोसा दिलाता हूं, जब तक देश नक्सलवाद माओवाद, उस आतंक से पूरी तरह मुक्त नहीं हो जाता, हम रुकने वाले नहीं हैं, चैन से बैठने वाले नहीं हैं।
साथियों,
आज देश की एकता और आंतरिक सुरक्षा को बहुत बड़ा खतरा घुसपैठियों से भी है। देश के भीतर दशकों से विदेशी घुसपैठिए आते रहे, वो देशवासियों के संसाधनों पर कब्जा करते रहे, डेमोग्राफी का संतुलन बिगाड़ते रहे, देश की एकता दांव पर लगाते रहे, लेकिन, पुरानी सरकारें इतनी बड़ी समस्या पर आँख मूँदे रहीं। वोटबैंक की राजनीति के लिए राष्ट्र की सुरक्षा को जानबूझकर खतरे में डाला गया। अब पहली बार देश ने इस बड़े खतरे के खिलाफ भी निर्णायक लड़ाई लड़ने की ठानी है। लाल किले से मैंने डेमोग्राफी मिशन का ऐलान किया है।
लेकिन साथियों,
अब आज जब हम इस विषय को गंभीरता से उठा रहे हैं, तो कुछ लोग देशहित से ज्यादा, अपने स्वार्थ को ऊपर रख रहे हैं। ये लोग घुसपैठियों को अधिकार दिलाने के लिए राजनैतिक लड़ाई लड़ रहे हैं। इनको लगता है कि, देश एक बार टूट गया, आगे भी टूटता रहे, इनको कोई फर्क नहीं पड़ता। जबकि सच्चाई ये है कि अगर देश की सुरक्षा और पहचान खतरे में आएगी, तो हर व्यक्ति खतरे में आएगा। इसलिए, हमें आज राष्ट्रीय एकता दिवस पर फिर से संकल्प लेना है, हम भारत में रह रहे हर घुसपैठिए को बाहर निकालकर ही रहेंगे।
साथियों,
जब हम लोकतन्त्र में राष्ट्रीय एकता की बात करते हैं, तो इसका एक स्वरूप ये भी है कि हम विचारों की विविधता का सम्मान करें। लोकतन्त्र में मतभेद स्वीकार्य हैं, मनभेद नहीं होना चाहिए। लेकिन विडम्बना देखिए, आज़ादी के बाद जिन लोगों को देश ने दायित्व सौंपा, उन्हीं लोगों ने ‘we the people’ की स्पिरिट की हत्या करने का प्रयास किया। उन्होंने अपनी सोच और विचारधारा से अलग हर व्यक्ति और संगठन का तिरस्कार किया, उसे discredit करने की कोशिश की। देश में राजनैतिक छुआछूत को एक कल्चर बना दिया गया था। हम सभी को पता है, काँग्रेस सरकारों में सरदार पटेल और उनकी लीगेसी के साथ क्या हुआ है? इन लोगों ने बाबा साहब अंबेडकर के साथ जीते-जी, और उनके जाने के बाद भी क्या किया? नेता जी सुभाष चंद्र के साथ क्या किया? डॉ लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे लोगों के साथ भी काँग्रेस ने यही किया। इस साल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आरएसएस के 100 वर्ष हुए हैं। संघ पर भी कैसे कैसे हमले किए गए, षड्यंत्र किए गए! एक पार्टी, एक परिवार के बाहर हर व्यक्ति और हर विचार को अछूत्त बनाने की भरसक कोशिश हुई।
भाइयों बहनों,
हमें गर्व है कि हमने देश को बांटने वाली इस राजनैतिक छुआछूत को खत्म किया है। हमने सरदार पटेल की स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बनवाई। हमने बाबा साहब के पंचतीर्थ बनवाए। दिल्ली में बाबा साहब का घर, उनका महा-परिनिर्वाण स्थल, काँग्रेस के दौर में उपेक्षा की वजह से दुर्दशा का शिकार था। हमने उस पवित्र स्थल को ऐतिहासिक मेमोरियल में बदला है। कांग्रेस के समय में सिर्फ एक पूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर म्यूजियम था। हमने देश के अब जितने भी पीएम हुये हैं, उन सबके योगदान को समर्पित, राजनीतिक छुआछूत से ऊपर उठकर के पीएम म्यूज़ियम बनाया है। हमने कर्पूरी ठाकुर जैसे जननायक को भारत रत्न दिया। पूरे जीवन काँग्रेस को समर्पण रहने वाले प्रणब दा को भी हमने भारत रत्न दिया। और, विरोधी विचारधारा वाले मुलायम सिंह यादव जी जैसे नेता को भी हमने पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया। इन फैसलों के पीछे सोच यही थी कि, राजनैतिक मतभेदों से ऊपर उठकर, देश के लिए एकजुट होने की भावना मजबूत हो। ऑपरेशन सिंदूर के बाद विदेशों में गए हमारे सर्वदलीय प्रतिनिधि मण्डल में भी हमने एकता की इस झलक को देखी है।
साथियों,
राजनैतिक हितों के लिए देश की एकता पर प्रहार की सोच, ये गुलामी की मानसिकता का हिस्सा है। काँग्रेस ने अंग्रेजों से केवल पार्टी और सत्ता ही नहीं पाई, बल्कि कांग्रेस ने गुलामी की मानसिकता को भी आत्मसात कर लिया था। आप देखिए, अभी कुछ दिन बाद ही हमारे राष्ट्रगीत वन्दे-मातरम के 150 साल होने जा रहे हैं। 1905 में जब अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया, उसके प्रतिरोध में वंदेमातरम हर देशवासी का स्वर बन गया था। वन्देमातरम देश की एकता और एकजुटता की आवाज़ बन गया था। अंग्रेजों ने वन्देमातरम बोलने की बात तक बैन लगाने की कोशिश की थी। अंग्रेज़ इस कोशिश में कामयाब नहीं हो पाये! कई हिनदुस्तान के कोने-कोने से वंदे मातरम का नारा गूंजता ही रहा, गूंजता ही रहा। लेकिन, जो काम अंग्रेज़ नहीं कर पाए, वो काम काँग्रेस ने कर दिया। काँग्रेस ने मजहबी आधार पर वन्देमातरम के एक हिस्से को ही हटा दिया। यानी, काँग्रेस ने समाज को भी बांटा, और अंग्रेजों के एजेंडे को भी आगे बढ़ाया। और मैं आज एक बात बहुत जिम्मेदारी से कह रहा हूं- जिस दिन काँग्रेस ने वन्देमातरम को तोड़ने का, काटने का, विभाजित करने का फैसला लिया था, उसी दिन उसने भारत के विभाजन की नींव डाल दी थी। काँग्रेस ने वो पाप नहीं किया होता, तो आज भारत की तस्वीर कुछ और होती!
साथियों,
उस समय सरकार में बैठे लोगों की ऐसी सोच के कारण ही, देश ने इतने दशकों तक गुलामी के प्रतीकों को भी ढोया। आप याद करिए, हमारी नेवी के झंडे से गुलामी का निशान तब उतरा, जब आपने हमें देश की सेवा करने का अवसर दिया, हमारी सरकार आई। राजपथ कर्तव्यपथ तब बना, जब हमने ये बदलाव किया। आज़ादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों के बलिदानों का स्थान, अंडमान की सेल्यूलर जेल, उसे राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा तब मिल पाया था, जब मोरारजी भाई देसाई की सरकार आई थी। अंडमान के द्वीपों के नाम कुछ समय पहले तक अंग्रेजों के नाम पर ही थे। हमने ये नाम नेताजी सुभाष के नाम पर रखे। कई द्वीपों को परमवीर चक्र विजेताओं का नाम दिया। इंडिया गेट पर भी हमने नेताजी सुभाष की प्रतिमा लगाई।
साथियों,
देश की सुरक्षा में शहीद हुये जवानों तक को, गुलामी की मानसिकता के कारण सही सम्मान नहीं मिलता था। हमने नेशनल वॉर मेमोरियल की स्थापना कर उन स्मृतियों को अमर बनाया। देश की आंतरिक सुरक्षा में भी 36 हजार जवानों ने, ये हमारे पुलिस बेड़े के जवानों ने, देश को पता तक नहीं है, ये पुलिस बेड़े के ये खाकी वर्दीधारी लोगों ने 36 हजार जवानों की शहादत हुई है। 36 हजार शहीद होना, ये आंकड़ा छोटा नहीं है। हमारी पुलिस, BSF, ITBP, CISF, CRPF, हमारे सभी अर्धसैनिक बल, इनके शौर्य को भी सम्मान से वंचित रखा गया। ये हमारी सरकार है जिसने पुलिस मेमोरियल बनाकर उन शहीदों को सम्मान दिया। मैं आज सरदार पटेल के चरणों में खड़े होकर के, मैं देश भर मे जिन-जिन लोगों ने पुलिस बेड़े में रहकर के सेवाएं की हैं, जो-जो लोग, आज पुलिस बेड़े में रहकर के देश की सेवा कर रहे हैं, मैं सरदार पटेल के चरणों में खड़े रहके के, आज मैं उनको सेल्यूट करता हूं, मैं उनका गौरव करता हूं, मैं उनका सम्मान करता हूं। आज देश गुलामी की मानसिकता के हर निशान को हटा रहा है। देश के लिए बलिदान देने वाले लोगों को सम्मान देकर हम ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना को मजबूत बना रहे हैं।
मेरे प्यारे देशवासियों,
एकता राष्ट्र और समाज के अस्तित्व का आधार होती है। जब तक समाज में एकता है, राष्ट्र की अखंडता सुरक्षित है। इसलिए विकसित भारत के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए, हमें देश की एकता तोड़ने वाले हर षडयंत्र को विफल बनाना होगा, एकता की ताकत से विफल बनाना होगा। इसीलिए, आज देश राष्ट्रीय एकता के हर मोर्चे पर निरंतर काम कर रहा है। भारत की एकता के इस अनुष्ठान के 4 आधार स्तम्भ है। एकता का पहला स्तम्भ है- सांस्कृतिक एकता! ये भारत की संस्कृति ही है, जिसने हजारों वर्षों से राजनैतिक हालातों से अलग भारत को एक राष्ट्र के रूप में अमर रखा है। हमारे द्वादश ज्योतिर्लिंग, सात पुरियाँ, चार धाम, 50 से अधिक शक्तिपीठ, तीर्थ यात्राओं की परंपरा, ये वो प्राण ऊर्जा है, जो भारत को एक चैतन्य राष्ट्र बनाती है। इसी परंपरा को, आज हम सौराष्ट्र तमिल संगमम्, और काशी तमिल संगमम् जैसे आयोजनों के जरिए आगे बढ़ा रहे हैं। हम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के जरिए भारत के महान योग विज्ञान को भी नई पहचान दिला रहे हैं। हमारा योग आज लोगों को जोड़ने का माध्यम बन रहा है।
साथियों,
हमारी एकता का दूसरा स्तम्भ है- भाषाई एकता! भारत की सैकड़ों भाषाएँ और dialects, बोलियां, ये भारत की खुली और रचनात्मक सोच का प्रतीक हैं। क्योंकि, हमारे यहाँ किसी समाज ने, सत्ता ने या संप्रदाय ने कभी भी भाषा को अपना हथियार नहीं बनाया। एक भाषा को थोपने का प्रयास नहीं हुआ। तभी भारत भाषाई विविधता की दृष्टि से विश्व का इतना समृद्ध राष्ट्र बना है। हमारी भाषाओं ने संगीत के अलग-अलग सुरों की तरह हमारी पहचान को सशक्त बनाया है। इसीलिए साथियों, हम हर भाषा को राष्ट्रीय भाषा मानते हैं। हम गर्व से कहते हैं कि, भारत के पास तमिल जैसी दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है, और हमें इसका गर्व है। हमारे पास संस्कृत जैसी ज्ञान की धरोहर है। इसी तरह, हर भारतीय भाषा की अपनी खूबी है, अपनी साहित्यिक और सांस्कृतिक पूंजी है। हम हर भारतीय भाषा को प्रमोट कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि हिंदुस्तान के बच्चे अपनी मातृभाषा में पढ़ाई करें, और आगे बढ़ें। भारत के लोग देश की दूसरी भाषाओं को भी जानें, उनसे सीखें। भाषाएँ हमारी एकता की सूत्रधार बनें। और ये एक दिन का काम नहीं है। ये निरंतर चलने वाला काम है, जिसकी ज़िम्मेदारी हम सबको मिलकर के उठानी है।
साथियों,
हमारी एकता का तीसरा स्तम्भ है- भेदभाव मुक्त विकास! क्योंकि, गरीबी और भेदभाव ही सामाजिक तानेबाने की सबसे बड़ी कमजोरी होते हैं। देश के दुश्मनों ने हमेशा इन कमजोरियों का इस्तेमाल किया है। इसीलिए, सरदार साहब गरीबी के खिलाफ देश के लिए दीर्घकालिक योजना पर काम करना चाहते थे। सरदार पटेल ने एक बार कहा था, कि अगर भारत को आजादी 1947 के बजाय़ उससे भी 10 साल पहले मिल गई होती, तो 1947 तक भारत खाद्यान्न की कमी के संकट से मुक्त हो चुका होता। उन्होंने कहा था कि जैसे उन्होंने रियासतों के विलय की चुनौती सुलझाई, वो अन्न की कमी की चुनौती भी सुलझाकर ही रुकते। ये थी सरदार साहब की इच्छाशक्ति। बड़ी से बड़ी चुनौती से निपटने के लिए हमें यही इच्छाशक्ति दिखानी होती है। और मुझे गर्व है कि हमारी सरकार, सरदार साहब के इन अधूरे संकल्पों को भी पूरा करने में लगी है। बीते एक दशक में हमने 25 करोड़ देशवासियों को गरीबी से बाहर निकाला है। आज करोड़ों गरीब को घर मिल रहा है। घर-घर साफ पानी पहुँच रहा है। मुफ्त इलाज की सुविधा मिल रही है। यानी, हर नागरिक के लिए गरिमा पूर्ण जीवन, ये आज देश का मिशन भी है, और विज़न भी है। भेदभाव और भ्रष्टाचार मुक्त ये नीतियाँ आज राष्ट्रीय एकता को मजबूत बना रही हैं।
साथियों,
राष्ट्रीय एकता का चौथा स्तम्भ है- कनेक्टिविटी से दिलों का कनेक्शन। आज देश में record हाइवेज और एक्सप्रेसवेज़ बन रहे हैं। वंदेभारत और नमोभारत जैसी ट्रेनें, भारतीय रेल को transform कर रही हैं। छोटे शहर भी अब एयरपोर्ट की सुविधा से जुड़ रहे हैं। इस आधुनिक इनफ्रास्ट्रक्चर से भारत को लेकर दुनिया का नज़रिया ही पूरी तरह बदल रहा है। इसने उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम, देश की दूरियों को भी कम किया है। आज लोग आसानी से दूसरे राज्यों में पर्यटन के लिए जा रहे हैं, व्यापार के लिए जा रहे हैं। ये people to people connect और कल्चरल एक्सचेंज, उसका एक नया दौर है. जो राष्ट्रीय एकता को बल दे रहा है, और digital revolution जो हुआ है, उसने इस एकता को नई मजबूती देने का अवसर भी दिया है। आज digital connectivity का भी दिलों की connectivity में एक नया मार्ग प्रशस्त हो रहा है।
साथियों,
सरदार पटेल ने एक बार कहा था- मुझे सबसे ज्यादा खुशी तब मिलती है, जब मैं देश के लिए काम करता हूं। मैं भी आज हर देशवासी से यही आह्वान करता हूं। देश के लिए काम करने से बड़ी खुशी कोई और नहीं सकती। मां भारती की साधना, हर देशवासी की सबसे बड़ी आराधना है। जब 140 करोड़ भारतवासी एक साथ खड़े हो जाते हैं, तो चट्टानें खुद रास्ता छोड़ देती हैं। जब 140 करोड़ देशवासी एक स्वर में बोलते हैं, तो वो शब्द भारत की सफलता का उद्घोष बन जाते हैं। हमें एकता के इसी मूलमंत्र को अपना संकल्प बनाना है। हमें बंटना नहीं है, हमें कमजोर नहीं पड़ना है। यही सरदार साहब के लिए
हमारी सच्ची श्रद्धांजलि है। मुझे विश्वास है, हम सब साथ मिलकर ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के संकल्प को मजबूती देंगे। हम साथ मिलकर विकसित भारत, और आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा करेंगे। इसी भाव के साथ, मैं एक बार फिर सरदार साहब के चरणों में श्रद्धांजलि देता हूँ। मेरे साथ बोलिए – भारत माता की जय। आवाज देश के हर कोने में पहुंचनी चाहिए साथियों।
भारत माता की जय।
भारत माता की जय।
भारत माता की जय।
वंदे मातरम।
वंदे मातरम।
वंदे मातरम।
वंदे मातरम।
वंदे मातरम।
वंदे मातरम।
वंदे मातरम।
आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद!