पेसा महोत्सव
पेसा महोत्सव
मुख्य बातें
परिचय
भारत में जनजातीय समुदाय की आबादी कुल जनसंख्या का लगभग 8.6 प्रतिशत है। संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत,भारत के राष्ट्रपति द्वारा अधिक जनजातीय आबादी वाले क्षेत्रों को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया जाता है ताकि जनजातीय लोगों का अपने स्थानीय संसाधनों,अपने विकास और सामाजिक जीवन पर नियंत्रण हो सके।
1993 में, ग्राम, ब्लॉक और जिला स्तर पर पंचायती राज संस्थाओं या स्थानीय शासन निकायों की स्थापना के लिए भारत के संविधान में संशोधन (73वां संशोधन) किया गया। इस संशोधन ने स्थानीय स्तर की संस्थाओं को शक्ति प्रदान की जिससे ग्रामीणों को अपने विकास और समुदायों से संबंधित निर्णय लेने का अधिकार मिला। हालांकि, 73वां संशोधन अधिनियम आदिवासी अनुसूचित क्षेत्रों पर अपने आप लागू नहीं हुआ।
1996 में, पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम (पेसा) लागू हुआ,जिसने अनुसूचित क्षेत्रों में जनजातीय समुदायों को स्वशासन के लिए समान शक्तियां प्रदान कीं। यह ऐतिहासिक कानून जनजातीय समुदायों के भूमि, जल, वन संसाधन, संस्कृति और शासन प्रणालियों पर उनके अधिकारों को बहाल करता है और उन्हें संरक्षण देता है। यह आदिवासी ग्राम सभाओं को सशक्त बनाकर जनजातीय समुदायों तक विकेंद्रीकृत लोकतंत्र का विस्तार करता है।
पेसा अधिनियम जनजातीय समुदायों की अलग पारंपरिक शासन प्रणालियों और विशेष विकास संबंधी आवश्यकताओं को भी मान्यता देता है।
जनजातीय अनुसूचित क्षेत्रों वाले दस राज्यों में से आठ ने अपने पेसा नियम बना लिए हैं, जबकि ओडिशा और झारखंड ने मसौदा नियम तैयार किए हैं।
पेसा महोत्सव 2025, 23-24 दिसंबर, विशाखापत्तनम, आंध्र प्रदेश
पंचायती राज मंत्रालय 23-24 दिसंबर 2025 को विशाखापत्तनम में पेसा महोत्सव का आयोजन करेगा, जो पेसा अधिनियम, 1996 की वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित हो रहा है। इस महोत्सव को एक ऐतिहासिक पहल के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें चक्की खेल, उप्पन्ना बारेलू, चोलो और पुली मेका, मल्लखंबा, पिठूल, गेडी दौड और सिकोर जैसे पारंपरिक खेलों के साथ-साथ सांस्कृतिक विरासत और आदिवासी व्यंजनों का प्रदर्शन किया जाएगा। इसका उद्देश्य जनजातीय समुदायों को उनकी समृद्ध परंपराओं का जश्न मनाने, उन्हें संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मंच प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाना है।
भारत में पंचायती राज — 73वां संवैधानिक संशोधन (1993)
73वें संवैधानिक संशोधन (1993) ने संविधान में भाग 9 और 11वीं अनुसूची को जोड़ा। संविधान का भाग 9 ग्राम और जिला स्तर पर स्थित संस्थाओं को शक्तियां प्रदान करता है जिन्हें पंचायत के नाम से भी जाना जाता है। ग्यारहवीं अनुसूची में 29 विषय सूचीबद्ध हैं जिन पर इन स्थानीय संस्थाओं को निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त है। इस संशोधन ने अधिक विकेंद्रीकृत लोकतंत्र का मार्ग प्रशस्त किया।
संविधान संशोधन के भाग 9 ने पंचायती राज संस्थाओं की त्रिस्तरीय ढांचा स्थापित किया – ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायतें, मध्यवर्ती या ब्लॉक स्तर पर पंचायत समितियां (ग्रामों के समूह का प्रतिनिधित्व करने वाली) और जिला स्तर पर जिला परिषदें। इन तीनों निकायों के सभी सदस्य निर्वाचित होते हैं। इसके अलावा, मध्यवर्ती और जिला स्तर पर पंचायतों के अध्यक्ष निर्वाचित सदस्यों में से अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। लेकिन ग्राम स्तर पर, पंचायत सरपंच का चुनाव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से हो सकता है।
पंचायत के प्रत्येक स्तर पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटें आरक्षित होती हैं।
ग्राम सभा ग्राम पंचायत क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले किसी भी गांव की मतदाता सूची में पंजीकृत सभी व्यक्तियों से मिलकर बनी एक संस्था है। ग्राम सभाओं की शक्तियां और कार्य राज्य विधानमंडलों द्वारा तय कानून के माध्यम से निर्धारित किए जाते हैं।
1996 का पेसा अधिनियम
पेसा अधिनियम पंचायती राज व्यवस्था या 73वें संवैधानिक संशोधन के प्रावधानों का आदिवासी बहुल पांचवीं अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार करता है।
यह अधिनियम इन क्षेत्रों में ग्राम सभाओं और पंचायतों को उनकी पारंपरिक शासन प्रणाली को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त शक्तियां प्रदान करता है।
पेसा अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं
ग्राम सभाओं की बढ़ी हुई शक्तियां पेसा अधिनियम का मूल आधार हैं, जो जनजातीय समुदायों को अपने ग्राम शासन व्यवस्था पर अधिक अधिकार प्रदान करती हैं।
यद्यपि पंचायतों और ग्राम सभाओं के लिए संवैधानिक नियम हैं,फिर भी पेसा अधिनियम उन्हें निष्प्रभावी कर देता है,और राज्य विधानमंडल इन नियमों का उल्लंघन करने वाला कोई भी पंचायत कानून नहीं बना सकता है।



अनुसूचित क्षेत्र और पेसा अधिनियम
संविधान की पांचवीं अनुसूची सरकार को उन राज्यों में अनुसूचित क्षेत्र स्थापित करने का अधिकार देती है जहां अनुसूचित जनजातियां (एसटी) निवास करती हैं (असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों को छोड़कर)।
इस समय 10 राज्यों में पांचवीं अनुसूची में शामिल क्षेत्र हैं:
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राज्य का नाम
गाँव
पंचायतें
ब्लॉक
जिले
पूरी तरह से शामिल
आंशिक रूप से शामिल
1
आंध्र प्रदेश
1,586
588
36
0
5
2
छत्तीसगढ़
9,977
5,050
85
13
6
3
गुजरात
4,503
2,388
40
4
7
4
हिमाचल प्रदेश
806
151
7
2
1
5
झारखंड
16,022
2,074
131
13
3
6
मध्य प्रदेश
11,784
5,211
89
5
15
7
महाराष्ट्र
5,905
2,835
59
0
12
8
ओड़िसा
19,311
1,918
119
6
7
9
राजस्थान
5,054
1,194
26
2
3
10
तेलंगाना
2,616
631
72
0
4
कुल
77,564
22,040
664
45
63
आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना ने अपने पेसा नियम बना लिए हैं। ओडिशा और झारखंड ने अपने पेसा नियमों का मसौदा तैयार कर लिया है।
पेसा अधिनियम के कार्यान्वयन हेतु मंत्रालय की पहल
पंचायती राज मंत्रालय ने पेसा अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए कई कदम उठाए हैं,जिनमें अधिनियम पर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सम्मेलन आयोजित करना और कर्मियों को इसके प्रावधानों पर प्रशिक्षण देना शामिल है। पंचायती राज मंत्रालय और सात प्रमुख राज्यों ने 2024-25 में, निर्वाचित प्रतिनिधियों को पेसा के सभी प्रावधानों पर प्रशिक्षित करने के लिए राज्य स्तरीय मास्टर ट्रेनर प्रशिक्षण के दो चरण आयोजित किए। राज्य,जिला और ब्लॉक स्तर पर 1 लाख से अधिक प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया गया।
पेसा अधिनियम पर सितंबर 2024 में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान पेसा-ग्राम पंचायत विकास योजना पोर्टल भी लॉन्च किया गया। यह पोर्टल पेसा अधिनियम के तहत जनजातीय समुदायों के अधिकारों और प्राथमिकताओं के अनुरूप विकास गतिविधियों की योजना बनाने और निगरानी करने में सुविधा प्रदान करता है। यह पोर्टल पेसा ग्राम पंचायतों में केंद्रीय वित्त आयोग अनुदान, राज्य वित्त आयोग अनुदान, केंद्र प्रायोजित योजनाओं, राज्य योजनाओं और अन्य निधियों के ग्राम के अनुसार संसाधन आवंटन को सक्षम बनाता है जिसका उपयोग वे ग्राम के अनुसार गतिविधियों की योजना बनाने के लिए कर सकते हैं।
पेसा दिवस
पंचायती राज मंत्रालय ने 24 दिसंबर, 2024 को सभी दस पेसा राज्यों से पेसा दिवस के रूप में मनाने का अनुरोध किया। इसका उद्देश्य पेसा अधिनियम के बारे में जागरूकता बढ़ाना और ग्राम सभाओं को सशक्त बनाकर तथा अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों में सुधार करके शासन व्यवस्था को मजबूत करना था। राष्ट्रीय कार्यक्रम रांची में आयोजित किया गया और इसकी अध्यक्षता पंचायती राज मंत्रालय के सचिव ने की।
पंचायती राज मंत्रालय ने निगरानी और समन्वय को मजबूत करने के लिए एक समर्पित पेसा प्रकोष्ठ की स्थापना की, जिसमें मंत्रिस्तरीय टीम और सलाहकार (सामाजिक विज्ञान, विधि और वित्त क्षेत्र) शामिल थे।
पेसा अधिनियम की नियमावली का जनजातीय भाषाओं सहित विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया (जनजातीय मामलों के मंत्रालय के सहयोग से)। नियमावली का अनुवाद तेलुगु, मराठी, गुजराती और ओडिया के साथ-साथ संथाली, गोंडी भीली और मुंडारी जैसी जनजातीय भाषाओं में भी किया गया।
पंचायती राज मंत्रालय ने पेसा क्षमता निर्माण और दस्तावेजीकरण को संस्थागत रूप देने के लिए केंद्रीय विश्वविद्यालयों में उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने हेतु 16 विश्वविद्यालयों को प्रस्ताव भेजे। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय,अमरकंटक (केंद्र सरकार का हिस्सा: 5 वर्षों के लिए 8.01 करोड़ रुपये) ने 24 जुलाई, 2025 को पंचायती राज मंत्रालय और मध्य प्रदेश सरकार के साथ ऐसे ही एक उत्कृष्टता केंद्र के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। उत्कृष्टता केन्द्र के लिए एक कार्यक्रम सलाहकार बोर्ड का गठन किया गया और 2025-26 की कार्य योजना को मंजूरी दी गई, जिसमें रीति-रिवाजों के दस्तावेजीकरण, विवाद समाधान मॉडल, प्रशिक्षण नियमावली,पेसा से संबंधित स्थानीय/आदिवासी भाषाओं में सूचना और संचार सामग्री और 5 मॉडल पेसा ग्राम सभाओं पर ध्यान दिया गया था।
पेसा अधिनियम की सफलता की कहानियां और सर्वोत्तम कार्यप्रणाली
पेसा अधिनियम ने जनजातीय समुदायों को सशक्त बनाया है। देश भर के जनजातीय समुदायों ने इन शक्तियों का प्रयोग करते हुए अपने अधिकारों की रक्षा की है और समावेशी विकास को बढ़ावा दिया है, जवाबदेही को मजबूत किया है और अपने समुदायों के विकास को गति दी है। पेसा अधिनियम की 40 सफलता की कहानियों का संकलन, “पेसा इन एक्शन: स्टोरीज ऑफ स्ट्रेंथ एंड सेल्फ-गवर्नेंस”, जुलाई 2025 में प्रकाशित हुआ था। ये कहानियां विस्तार से बताती हैं कि जनजातीय समुदायों ने कैसे अधिनियम द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करके अपनी ग्राम सभाओं को मजबूत और सशक्त बनाया है, वन उत्पादों का उत्पादन और प्रबंधन किया है, अपनी भूमि में मौजूद लघु खनिजों का नियंत्रण अपने हाथ में लिया है और जलाशयों का प्रबंधन किया है और अन्य उपलब्धियाँ भी हासिल की हैं।
सशक्त ग्राम सभा से आर्थिक गतिविधि में वृद्धि
खामधोगी छत्तीसगढ़ के उत्तरी बस्तर जिले के कांकेर जिले में स्थित 443 लोगों का एक गांव है, जो पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में आता है। छत्तीसगढ़ पेसा नियम 2022 के अनुसार, इस गांव में एक ग्राम सभा की स्थापना की गई।
दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले ये ग्रामीण विकास और आजीविका के विकल्पों की तलाश में संघर्ष कर रहे थे। उनमें तकनीकी ज्ञान की कमी थी और वे पारंपरिक आजीविका के साधनों पर निर्भर थे। कई लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे थे। ग्राम सभा की स्थापना के बावजूद वहां सामुदायिक भागीदारी कम थी।

इन चुनौतियों से पार पाने के लिए,ग्रामीणों को प्रशिक्षित किया गया और विभिन्न समितियों में संगठित किया गया। प्रशिक्षण से उन्हें तकनीकी ज्ञान प्राप्त करने में मदद मिली। सामुदायिक भागीदारी बढ़ाने के लिए, ग्राम सभा की निर्णय लेने वाली बैठकों में प्रत्येक परिवार से एक पुरुष और एक महिला की उपस्थिति अनिवार्य कर दी गई।
इन पहलों की वजह से ग्रामीणो ने वनोपज संग्रह, मत्स्यपालन, बांस की राफ्टिंग और अन्य गतिविधियां शुरू कर दीं जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हुई। ग्राम सभा के नेतृत्व में चली इन पहलों से समुदाय को गांव के मामलों के प्रबंधन के लिए साथ आने और स्थायी आजीविका को बढ़ावा देने के लिए एकजुट होने में मदद मिली।
पारंपरिक कार्यप्रणालियों का पेसा अधिनियम के प्रावधानों के साथ संयोजन
पेसा अधिनियम जनजातीय समुदायों को अपनी पारंपरिक सांस्कृतिक और आर्थिक कार्यप्रणालियों को जारी रखने का अधिकार देता है। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में चिलगोजा एक बहुमूल्य वन उत्पाद है। रारंग ग्राम पंचायत पारंपरिक रूप से अपनी रीति-रिवाजों के अनुसार इन चिलगोजा को तोड़कर एकत्रित करता है।
हिमाचल प्रदेश पेसा नियम 2011 के अनुसार, राज्य के वन विभाग को वन उत्पादों को तोड़ने या उन्हें एकत्र करने वाली कोई भी योजना तैयार करने से पहले ग्राम सभा से परामर्श करना आवश्यक है। इसके अलावा, नियम यह भी कहते हैं कि समुदायों को अपनी पारंपरिक व्यवस्थाओं के अनुसार, अपने गांव की सीमाओं से बाहर भी, लघु वन उत्पादों का प्रबंधन और उपयोग करने का अधिकार है।
इन नियमों के कारण रारंग ग्राम पंचायत अपने पारंपरिक कानूनों और कार्यप्रणालियों को लागू करने में सक्षम रहा। व्यापारियों को चिलगोजा की बिक्री से प्राप्त आय सभी परिवारों में समान रूप से विभाजित की जाती है। प्रत्येक परिवार से फसल एकत्र करने के लिए कुछ लोगों को लिया जाता है। वन भूखंडों को पहले से ही अलग-अलग परिवारों को आवंटित किया जाता है और इन भूखंडों पर परिवारों का पूर्ण नियंत्रण होता है।


पेसा अधिनियम ने समानता और समावेशिता को मजबूत किया है, सामुदायिक निर्णय लेने की शक्ति और संस्थानों को सशक्त बनाया है, पारंपरिक कार्यप्रणालियो को संरक्षित किया है और स्थायी संसाधन प्रबंधन का मार्ग प्रशस्त किया है।
लघु खनिजों का प्रबंधन होने से जमीनी स्तर पर बदलाव आय़ा
वडागुडेम गांव गोदावरी बेसिन पर स्थित है,जो रेत खनन के लिए एक प्रमुख स्थान है। इस गांव ने अपने क्षेत्र में रेत खनन के प्रबंधन के लिए एक जनजातीय रेत खनन सहकारी समिति का गठन किया है। इस पहल से 100 परिवार समिति के प्रत्यक्ष हितधारक बन गए। ग्राम सभा ने नदी बेसिन से इस समिति को रेत खनन का अधिकार प्रदान किया। खनन कार्य से प्रति वर्ष 40 लाख रुपये का राजस्व प्राप्त होता है। यह धनराशि गांव के बुनियादी ढांचे के विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आजीविका उपार्जन में लगाई जाती है। पंचायत को भी शुल्क के माध्यम से राजस्व प्राप्त होता है, जिसका उपयोग सामुदायिक विकास के लिए किया जाता है।
पेसा अधिनियम ने जनजातीय कल्याण, स्वरोजगार और ग्रामीण विकास को काफी बढ़ावा दिया है, जिससे जनजातीय समुदाय आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त हुए हैं।
पेसा अधिनियम के माध्यम से विस्थापन से लड़ाई
वन विभाग ने जब राजस्थान के उदयपुर जिले के एक दूरवर्ती गांव भीम तलाई के आसपास के क्षेत्र का सर्वेक्षण किया, तो उन्होंने इस गांव और चार अन्य राजस्व गांवों को ‘फुलवारी की नाल वन्यजीव अभयारण्य‘ में शामिल कर लिया। यह अभयारण्य 500 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और इसकी सीमा गुजरात की सीमा लगी है। वन विभाग ने इस आदिवासी क्षेत्र को एक महत्वपूर्ण पर्यावास क्षेत्र घोषित कर दिया और वहां पीढ़ियों से बसे भील आदिवासी समुदाय को विस्थापित करना शुरू कर दिया।

एक गैर–लाभकारी संस्था की मदद से ग्रामीणों ने पेसा अधिनियम के तहत ग्राम सभा का गठन किया। इस संस्था ने कानूनी जागरूकता प्रशिक्षण भी प्रदान किया। ग्राम सभा ने एक विशेष बैठक आयोजित की और सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया कि गांव को खाली नहीं कराया जाएगा। इसके लिए उन्होंने राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1999 का हवाला दिया, जिसके अनुसार किसी भी भूमि अधिग्रहण से पहले ग्राम सभा की स्वीकृति आवश्यक है। मेडी ग्राम पंचायत ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। आज भील समुदाय पेसा अधिनियम के तहत अपनी परंपराओं और भूमि की सुरक्षा के साथ सुरक्षित जीवन जी रहा है।
निष्कर्ष
पेसा महोत्सव,पेसा अधिनियम के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में स्वशासन को सुदृढ़ करने के लिए भारत सरकार की निरंतर प्रतिबद्धता को दर्शाता है। नीतिगत सुधारों,क्षमता निर्माण, सांस्कृतिक दस्तावेजीकरण, डिजिटल पहलों और समुदाय के नेतृत्व वाले शासन के प्रयासों के माध्यम से,पंचायती राज मंत्रालय ग्राम सभाओं को सशक्त और मजबूत बना रहा है। ये प्रयास समुदाय के नेतृत्व वाले शासन को बढ़ावा देते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि जनजातीय समुदाय अपने विकास को आकार देने में केंद्रीय भूमिका निभाएं।
संदर्भ