Tuesday, December 16, 2025
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अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने शास्त्रीय एवं लुप्तप्राय भाषाओं को प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से संरक्षित करने के उद्देश्य से भाषादान कार्यशाला का आयोजन किया

अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने शास्त्रीय एवं लुप्तप्राय भाषाओं को प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से संरक्षित करने के उद्देश्य से भाषादान कार्यशाला का आयोजन किया

अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय (एमओएमए) ने आज ‘भाषा दान’ पर एक ज्ञानवर्धक कार्यशाला का आयोजन किया। यह पहल भारत के राष्ट्रीय भाषा प्रौद्योगिकी मिशन भाषिणी के अंतर्गत एक नागरिक-संचालित प्रयास है, जिसका उद्देश्य डिजिटल माध्यमों के जरिए भारत की समृद्ध व विविध भाषाई विरासत का संरक्षण करना है।

इस कार्यशाला ने विशेषज्ञों, संस्थागत हितधारकों और विभिन्न समुदायिक प्रतिनिधियों को एक साझा मंच पर एकत्र किया, जिससे डिजिटल युग में लुप्तप्राय एवं शास्त्रीय भाषाओं के संरक्षण हेतु प्रभावी रणनीतियों की पहचान की जा सके। इस दौरान पाली, प्राकृत, अवेस्ता, पहलवी और गुरुमुखी लिपि पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें उच्च गुणवत्ता वाले एकभाषी डेटा संग्रह के विकास व समुदाय के नेतृत्व में डेटा योगदान को प्रोत्साहित करने की तात्कालिक आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।

अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के सचिव डॉ. चंद्र शेखर कुमार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रभावी उपयोग के माध्यम से शास्त्रीय एवं लुप्तप्राय भाषाओं के अधिगम, दस्तावेजीकरण और संरक्षण पर निरंतर बल दे रहे हैं। वे मंत्रालय में दक्षता, नवाचार और साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को सुदृढ़ करने के लिए एआई-आधारित उपकरणों को व्यापक रूप से अपनाने की लगातार वकालत करते हैं। डॉ. कुमार मंत्रालय के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के बीच एआई से संबंधित जागरूकता और क्षमताओं के विकास को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित कर रहे हैं। वे सांस्कृतिक संरक्षण और समावेशी शासन के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने हेतु इस प्रकार की क्षमता-निर्माण कार्यशालाओं के आयोजन को बढ़ावा देते हैं।

इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) द्वारा आरंभ किया गया एआई-संचालित प्लेटफॉर्म भाषिणी वास्तव में भारतीय भाषाओं के लिए उन्नत डिजिटल उपकरण उपलब्ध कराकर भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करने के उद्देश्य से विकसित किया गया है। यह मंच वास्तविक समय में पाठ एवं वाणी अनुवाद की सुविधा प्रदान करता है और नागरिकों को उनकी अपनी भाषाओं में डिजिटल सेवाओं तक निर्बाध पहुंच सुनिश्चित करता है। यह ओपन-सोर्स मॉडल, डेटासेट और एपीआई के माध्यम से डिजिटल समावेशन को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

कार्यशाला के दौरान प्रतिभागियों को ‘भाषादान’ पारिस्थितिकी तंत्र से अवगत कराया गया और कम संसाधन वाली तथा विभिन्न शास्त्रीय भाषाओं के लिए इसके महत्व का उल्लेख किया गया। साथ ही योगदानकर्ताओं, संस्थानों और भाषा समुदायों की अहम भूमिका को उजागर किया गया। विस्तृत तकनीकी सत्रों में डेटा इनपुट और सत्यापन की प्रक्रियाओं से लेकर सुदृढ़ एआई भाषा मॉडल विकसित करने हेतु आवश्यक गोल्डन डेटासेट के निर्माण तक की संपूर्ण कार्यप्रणाली को विस्तार से प्रस्तुत किया गया।

भाषिणी प्लेटफॉर्म पर ‘बोलो इंडिया’, ‘सुनो इंडिया’, ‘लिखो इंडिया’ और ‘देखो इंडिया’ मोड के लाइव प्रदर्शनों के माध्यम से यह प्रदर्शित किया गया कि नागरिक अपनी मातृभाषाओं एवं शास्त्रीय भाषाओं में भाषण, पाठ तथा छवि डेटा का प्रभावी ढंग से योगदान कैसे कर सकते हैं। सत्रों के दौरान प्लेटफॉर्म संचालन, तकनीकी तैयारी, संसाधन योजना, डेटासेट की आवश्यकताओं तथा भाषा डिजिटलीकरण कार्यक्रमों के सुचारू एवं प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने हेतु सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों पर भी विस्तृत चर्चा की गई।

इस अवसर पर अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के अधिकारियों ने जोर देते हुए कहा कि भाषा संरक्षण के प्रयासों में समुदायों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करना ही भावी पीढ़ियों के लिए भारत की भाषाई विरासत के संरक्षण, निरंतरता और प्रासंगिकता को सुनिश्चित करने की कुंजी है।

इस कार्यशाला के माध्यम से सांस्कृतिक संरक्षण व समावेशी विकास के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग के प्रति मंत्रालय की दृढ़ प्रतिबद्धता प्रदर्शित हुई है। अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय भाषिणी और भाषादान जैसे मंचों के साथ सहयोग के माध्यम से यह सुनिश्चित कर रहा है कि भारत के डिजिटल भविष्य में हर भाषा और प्रत्येक ध्वनि को उसका उचित स्थान प्राप्त हो।

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