हिमालयी राज्यों में अपशिष्ट प्रबंधन में नवाचार
हिमालयी राज्यों में अपशिष्ट प्रबंधन में नवाचार
सूर्य की पहली किरण के साथ ही हिमालय पर्वतमाला के भव्य पर्वतीय क्षेत्रों में जीवन शांतिपूर्वक शुरू हो जाता है। पहाड़ी शहरों में सफाईकर्मी संकरे रास्तों से गुजरते हुए घरों से कचरा इकट्ठा करते हैं। विद्यालयों के परिसरों में छात्र नियमित क्रियाकलाप के रूप में कचरे को अलग-अलग करते हैं जबकि तीर्थ स्थलों पर आगंतुक निर्धारित संग्रहण केंद्रों का उपयोग करते हैं। रोजमर्रा की ये गतिविधियां हिमालयी क्षेत्र में संगठित रूप से अपशिष्ट प्रबंधन पर बढ़ते जोर को दर्शाती हैं जो उच्च ऊंचाई वाली बस्तियों, दुर्गम इलाकों, जलवायु में परिवर्तन और सीमित भूमि की उपलब्धता से और भी अधिक प्रभावित होता है।
मौसम के अनुसार पर्यटन और तीर्थयात्रा की गतिविधियों से इस तरह की परिचालन संबंधी मांगें और बढ़ जाती हैं जिसके लिए स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल और विकेंद्रीकृत समाधानों की आवश्यकता होती है। इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सरकारों ने सभी स्तरों पर स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 के तहत अपशिष्ट प्रबंधन के प्रयासों को मजबूत किया है। इसके अंतर्गत स्रोत पर ही अपशिष्ट को अलग-अलग करने, वैज्ञानिक तरीके से उसके प्रबंधन, कचरा जमा करने के पुराने स्थलों के सुधार और नागरिकों एवं संस्थानों की सक्रिय भागीदारी पर विशेष ध्यान दिया गया है।
केदारनाथ में डिजिटल रिफंड सिस्टम के माध्यम से प्लास्टिक कचरे का निपटारा किया गया

उत्तराखंड के प्रमुख तीर्थस्थल केदारनाथ में हर मौसम में हजारों श्रद्धालुओं का आगमन होता है। इसके कारण वहां प्लास्टिक कचरा प्रबंधन की सुनियोजित व्यवस्था की आवश्यकता पड़ती है। इस समस्या के समाधान के लिए राज्य सरकार ने मई 2022 में रीसाइकल के सहयोग से डिजिटल डिपॉजिट रिफंड सिस्टम (डीआरएस) की शुरुआत की।
इस प्रणाली के अंतर्गत प्लास्टिक की बोतलों और बहुस्तरीय प्लास्टिक (एमएलपी) से बनी वस्तुओं के लिए विशिष्ट क्रमबद्ध पहचान (यूएसआई) क्यूआर कोड जारी किए जाते हैं जिसके बदले 10 रुपये की वापसी योग्य जमा राशि ली जाती है। तीर्थयात्री उपयोग की गई वस्तुओं को निर्धारित स्थानों पर या गौरीकुंड और केदारनाथ मंदिर में स्थापित दो रिवर्स वेंडिंग मशीनों (आरवीएम) में लौटा सकते हैं । जमा राशि यूपीआई के माध्यम से डिजिटल तरीके से उन्हें लौटा दी जाती है।
इस प्रकार एकत्रित प्लास्टिक कचरे को प्रसंस्करण और पुनर्चक्रण के लिए सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधाओं (एमआरएफ) में भेजा जाता है । यह पहल कचरे के उत्तरदायित्वपूर्ण निपटान के तरीके को बढ़ावा देती है और तीर्थयात्रा के मौसम के दौरान संगठित रूप से प्लास्टिक कचरा प्रबंधन में सहयोग करती है।
परिणाम:
डीआरएस को अन्य चारधामों में लागू किया जा रहा है, जिनमें शामिल हैं: गंगोत्री, यमुनोत्री और बद्रीनाथ
20 लाख से अधिक बोतलों का पुनर्चक्रण किया गया
66 मीट्रिक टन कार्बन डायऑक्साइड के उत्सर्जन को रोका गया
110 से अधिक नौकरियां सृजित की गईं
ग्रीन कैंपस फ्रेमवर्क: जम्मू-कश्मीर के संस्थान उत्तरदायित्वपूर्ण अपशिष्ट प्रबंधन की दिशा में अग्रसर

जम्मू-कश्मीर में स्वच्छता और दीर्घकालिक व्यवस्था से संबंधित चर्चाएं संस्थागत जीवन का अभिन्न अंग बनती जा रही हैं। स्कूलों, कार्यालयों, अस्पतालों और सार्वजनिक स्थानों पर कचरे को अलग-अलग करना या पुन: उपयोग योग्य विकल्पों को चुनने जैसे सरल तौर-तरीकों को अब दैनिक आदतों के रूप में अपनाया जा रहा है।
आवास और शहरी विकास विभाग के नेतृत्व में शुरू की गई इस पहल के अंतर्गत 20 जिलों के 80 शहरी स्थानीय निकायों के सहयोग से 1,093 परिसरों को सुव्यवस्थित प्रमाणन प्रक्रिया के अंतर्गत लाया गया है। इसके लिए संस्थानों ने तीन चरणों वाली प्रक्रिया पूरी की: पहचान, तैयारी और घोषणा। इस प्रक्रिया में अपशिष्ट को अलग-अलग करने, परिसर में ही खाद बनाने और एकल-उपयोग प्लास्टिक के उपयोग को कम करने पर विशेष ध्यान दिया गया। छात्रों, कर्मचारियों और आगंतुकों को पुन: प्रयोज्य विकल्पों की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया गया, जिससे दैनिक व्यवहार में परिवर्तन आया।
स्वच्छता संबंधी सुविधाओं में सुधार के साथ-साथ ‘वेस्ट टू आर्ट‘ स्थल और ग्रीन कॉर्नर जैसी रचनात्मक पहलों ने कार्यक्रम के प्रभाव को और बढ़ाया है। अनंतनाग इसके माध्यम से सभी परिसरों को हरित घोषित करने वाला पहला शहरी स्थानीय निकाय बन गया है।
अपशिष्ट से सकारात्मक प्रभाव: धर्मशाला में नवाचार और सहयोग की झलक

हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों में बसा धर्मशाला शहर 2021 से नगर निगम के नेतृत्व में समन्वित पहलों की श्रृंखला के माध्यम से अपनी अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को मजबूत कर रहा है । नगर निगम ने शहरी विकास और पर्यटन की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए कई ऐसे उपाय शुरू किए हैं जो व्यवसायों, पास-पड़ोस के क्षेत्रों और संस्थानों में भागीदारी को प्रोत्साहित करते हैं।
वहां पर स्वच्छ व्यवसाय कार्यक्रम के सहयोग से नियमित प्रशिक्षण और प्रमाणन के माध्यम से स्थानीय प्रतिष्ठानों को टिकाऊ तौर-तरीके अपनाने में सहायता मिलती है। सामुदायिक स्तर पर मॉडल वार्ड कार्यक्रम वहां के निवासियों को अपने पड़ोस में कचरा अलग-अलग करने और स्वच्छता की स्थिति में सुधार करने में सक्षम बनाता है। एक समर्पित सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधा (एमआरएफ) के सहयोग से पूरे शहर में पुनर्चक्रण को बढ़ावा मिलता है।
लाला लाजपत राय जिला सुधार गृह में “कचरा प्रबंधन” पहल धर्मशाला में अपनाए गए दृष्टिकोण का अभिनव पक्ष है। वहां कैदी कचरा प्रसंस्करण में भाग लेते हुए व्यावहारिक कौशल सीखते हैं। ये पहलें मिलकर इस पहाड़ी शहर में शहरी कचरा प्रबंधन के लिए बहुआयामी, सहयोगात्मक दृष्टिकोण को दर्शाती हैं।
शहरी अपशिष्ट प्रबंधन की पहलों का प्रभाव:
अपशिष्ट अलग-अलग करने में 25% वृद्धि
सड़कों पर कूड़ा फेंके जाने में 30% कमी
“वेस्ट अंडर अरेस्ट” पहल के माध्यम से लैंडफिल कचरे में 40% कमी
समर्पित एमआरएफ के माध्यम से पुनर्चक्रण को मजबूत किया गया है
प्रौद्योगिकी और नवाचार से लेह में अपशिष्ट प्रबंधन को मजबूती मिली

लेह में बहुत ऊंचाई वाले और सुदूर क्षेत्रों में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए ऐसे समाधानों की आवश्यकता है जो विश्वसनीय और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल हों। इस समस्या के समाधान के लिए लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (एलएएचडीसी) ने 2020 में सौर ऊर्जा संचालित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की पहल शुरू की।
यह संयंत्र प्रतिदिन 30 टन तक कचरे का प्रसंस्करण करने के लिए डिज़ाइन किया गया है और पारंपरिक विद्युत ऊर्जा पर निर्भरता कम करते हुए कचरा प्रबंधन कार्यों में सौर ऊर्जा का उपयोग करता है। इसमें कचरे को स्रोत पर ही अलग करने पर विशेष ध्यान दिया जाता है और एकत्रित कचरे को पुनर्चक्रण और खाद बनाने के लिए भेजा जाता है। इस पहल का लक्ष्य 100 प्रतिशत कचरे को स्रोत पर ही अलग करना और 90 प्रतिशत सामग्री की पुनर्प्राप्ति दर प्राप्त करना है जिसमें हासिल किए गए कचरे को स्थानीय उपयोग के लिए खाद और फुटपाथ टाइलों जैसे उत्पादों में पुन: इस्तेमाल में लाया जाता है।
पुनर्चक्रण योग्य सामग्री और खाद की बिक्री से प्राप्त राजस्व से कचरे के निपटारे का संचालन कार्य सुचारू रूप से चलता है। यह पहल अपशिष्ट प्रबंधन के प्रति ऐसे दृष्टिकोण को दर्शाती है जो लद्दाख की भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों के अनुसार नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग के अनुरूप है।
लेह का मॉडल क्यों विशिष्ट है?
यह पहल चक्रीय अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण का अनुसरण करती है।
इसे सुदूर, बहुत ऊंचाई वाले क्षेत्र में संचालित किया जाता है।
अपशिष्ट प्रबंधन कार्यों में सहायता के लिए नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग किया जाता है
इसमें पुनर्चक्रण, खाद बनाने और पुनः उपयोग को एक साथ जोड़ा गया है।
यह फिर से प्राप्त सामग्रियों के स्थानीय उपयोग का समर्थन करता है
हिमालय की महिलाएं: स्वयं सहायता समूह टिकाऊ अपशिष्ट समाधान को बढ़ावा देते हैं

सीमित सड़क संपर्क और दुर्गम भूभाग वाले उत्तराखंड के पहाड़ी शहर बागेश्वर में महिलाओं की भागीदारी पर आधारित सामुदायिक पहल के माध्यम से अपशिष्ट प्रबंधन को मजबूत किया गया है। 2017-18 में सखी स्वायत्त सहकारी समिति ने राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (एनयूएलएम) के अंतर्गत और बागेश्वर नगर पालिका परिषद के साथ साझेदारी में 11 वार्डों में घर-घर जाकर कचरा संग्रह करने का दायित्व संभाला।
सखी स्वयं सहायता समूह के सदस्य उन संकरे और ढलान वाले रास्तों से कचरा ढोते हैं जहां पारंपरिक वाहन नहीं चल सकते। साथ ही वे वहां के घरों के निवासियों को गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग करने के महत्व के बारे में जागरूक करते हैं। समय के साथ इस दृष्टिकोण से घरों में स्वच्छता में सुधार और जागरूकता में वृद्धि हुई है।
इस पहल में शामिल महिलाओं की संख्या 18 से बढ़कर 47 हो गई है जिनमें से दो ने पर्यवेक्षक की भूमिका संभाली है। इसमें शामिल प्रतिभागी महिलाएं प्रतिदिन 100 रुपये कमाती हैं जिससे उन्हें आर्थिक आत्मनिर्भरता प्राप्त होती है और साथ ही वे नगरपालिका सेवाओं में योगदान देती हैं। इस पहल को स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 और राष्ट्रीय शहरी मामलों के संस्थान से मान्यता मिली है जो छोटे पहाड़ी कस्बों में अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को मजबूत करने में महिलाओं के नेतृत्व वाले समूहों की भूमिका को उजागर करती है।
निष्कर्ष
हिमालयी राज्यों में ये पहलें ऐसे भविष्य की ओर संकेत करती हैं जिसके अंतर्गत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियां भारत की विकास प्राथमिकताओं के अनुरूप विकसित होंगी। हिमालयी राज्य सामुदायिक भागीदारी, संस्थागत उत्तरदायित्व और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल प्रौद्योगिकी को एकीकृत करके ऐसे भारत के निर्माण के राष्ट्रीय दृष्टिकोण में योगदान दे रहे हैं जो विकसित होगा और पर्यावरण को हानि पहुंचाए बिना प्राकृतिक पदार्थों और ऊर्जा का उपयोग करते हुए आगे बढ़ेगा। स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 के अंतर्गत किए गए ये प्रयास संसाधनों के उपयोग के कौशल, चक्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़े तौर-तरीकों और नागरिकों के नेतृत्व में प्रबंधन की ओर क्रमिक बदलाव को दर्शाते हैं ।
संदर्भ
आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय
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