भारत में कृषि शिक्षा एवं प्रशिक्षण
भारत में कृषि शिक्षा एवं प्रशिक्षण
कृषि भारत की करीब आधी आबादी की आजीविका का मुख्य साधन है और सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान लगभग 18 प्रतिशत है। उच्च शिक्षा, अनुसंधान और व्यावहारिक प्रशिक्षण के जरिये मानव क्षमता निर्माण उत्पादकता बढ़ाने, लागत कम करने और राष्ट्रीय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। कृषि शिक्षा, अनुसंधान और शिक्षा संबंधी विस्तार को इस क्षेत्र का प्रमुख स्तंभ माना जाता है जो 5 प्रतिशत कृषि विकास दर के लक्ष्य को बनाए रखने और “विकसित कृषि और समृद्ध किसान” के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए आवश्यक संस्थागत और वैज्ञानिक आधार तैयार करते हैं। यही “विकसित भारत” का मूल दर्शन है। इस दृष्टिकोण को हासिल करने के लिए, इन तीनों स्तंभों को “एक राष्ट्र – एक कृषि – एक टीम” के मार्गदर्शक सिद्धांत के तहत तालमेल से काम करना होगा।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)
सार्वजनिक और निजी संस्थान
सरकारी विश्वविद्यालय और संस्थान: भारत में 63 राज्य कृषि विश्वविद्यालय (एसएयू),तीन केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (सीएयू) (पूसा, इम्फाल, झांसी), चार “मानद” विश्वविद्यालय (आईएआरआई–दिल्ली, एनडीआरआई–करनाल, आईवीआरआई–इज्जतनगर, सीआईएफई–मुंबई) और कृषि संकाय वाले चार केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं। आईसीएआर नेटवर्क में 11 एटीएआरआई (कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान) केंद्र भी शामिल हैं।
निजी क्षेत्र: कृषि शिक्षा राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आती है। इन राज्यों की निजी संस्थानों की स्थापना और प्रोत्साहन के लिए अपनी नीतियां हैं। आईसीएआर की भूमिका अनुरोध पर मान्यता प्रदान करने तक सीमित है। पिछले पांच वर्षों में, आईसीएआर द्वारा मान्यता प्राप्त निजी कृषि महाविद्यालयों की संख्या 2020-21 में 5 से बढ़कर 2024-25 तक 22 हो गई है।

केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय
वर्तमान में, भारत में तीन केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (सीएयू) संचालित हैं। प्रत्येक विश्वविद्यालय की स्थापना क्षेत्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संसद के एक अधिनियम द्वारा की गई थी:
आरपीसीएयू 8 विषयों (कृषि, बागवानी, कृषि अभियांत्रिकी, सामुदायिक विज्ञान, मत्स्य पालन, जैव प्रौद्योगिकी, वानिकी और खाद्य प्रौद्योगिकी) में स्नातक कार्यक्रम संचालित करता है। इसके अतिरिक्त यह विश्वविद्यालय कई तरह के स्नातकोत्तर कार्यक्रम चलाने के साथ पीएच.डी. भी कराता है। यह विश्वविद्यालय बिहार के समस्तीपुर जिले के पूसा, मुजफ्फरपुर जिले के ढोली और पूर्वी चंपारण जिले के पिपराकोठी में स्थित कई परिसरों के माध्यम से संचालित होता है। यह बिहार में किसानों के साथ अनुसंधान के मामले में संपर्क स्थापित करते हुए 18 कृषि विज्ञान केंद्रों का प्रबंधन भी करता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप, विश्वविद्यालय ने कई अल्पकालिक प्रमाणपत्र और डिप्लोमा कार्यक्रम शुरू किए हैं जिनका लक्ष्य जमीनी स्तर और मध्य–प्रबंधन स्तरों पर प्रतिभाओं को विकसित करना है जो सीधे उद्योग से जुड़ सकें।
कृषि में इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई)
किसानों का कौशल और प्रशिक्षण
किसानों का कौशल और प्रशिक्षण भारत के कृषि परिवर्तन का केंद्र बन गया है। सरकार ने आधुनिक कृषि आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, किसानों को तकनीकी नवाचारों, जलवायु और बाज़ार परिवर्तनों के अनुकूल बनाने में मदद करने के लिए क्षमता निर्माण को प्राथमिकता दी है। ग्रामीण युवाओं का कौशल प्रशिक्षण (एसटीआरवाई), कृषि यंत्रीकरण उप–मिशन (एसएमएएम), प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई),और कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) और कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी (एटीएमए) के माध्यम से की जाने वाली पहल जैसे कार्यक्रम किसानों को स्थायी कृषि पद्धतियों के लिए व्यावहारिक ज्ञान और व्यावसायिक विशेषज्ञता की जानकारी दे रहे हैं।

निष्कर्ष
भारत की कृषि शिक्षा और प्रशिक्षण प्रणाली आज शिक्षा, अनुसंधान, प्रौद्योगिकी और क्षेत्र–स्तरीय कौशल विकास को जोड़कर एक सुव्यवस्थित दृष्टिकोण को दर्शाती है। “एक राष्ट्र – एक कृषि – एक टीम” के दृष्टिकोण से प्रेरित होकर, आईसीएआर, केंद्रीय और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि विज्ञान केंद्रों जैसे संस्थानों ने खेती को अधिक उत्पादक, टिकाऊ और ज्ञान–आधारित बनाने के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, मान्यता संबंधी सुधारों और किसान–केंद्रित प्रशिक्षण पर निरंतर जोर से वैज्ञानिक अनुसंधान और व्यावहारिक अनुप्रयोग के बीच की खाई को पाटने में मदद मिल रही है।
इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और उपयुक्त कृषि उपकरणों जैसी तकनीकों का समावेश आधुनिक और डेटा–आधारित कृषि की ओर एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है। एटीएमए, एसटीआरवाई और एसएमएएम जैसी पहलों के माध्यम से, किसानों और ग्रामीण युवाओं को आवश्यक तकनीकी और उद्यमशीलता संबंधी कौशल से युक्त किया जा रहा है, जिससे गांवों में रोजगार और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिल रहा है। ये प्रयास मिलकर उच्च उत्पादकता, बेहतर आय और संसाधनों के सतत उपयोग में योगदान दे रहे हैं। चूंकि भारत का लक्ष्य खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता और एक ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती है ऐसे में राष्ट्र की कृषि संबंधी प्रगति के लिए शिक्षा नवाचार और कुशलता में तालमेल को बेहतर बनाना जरूरी है।
संदर्भ:
पत्र सूचना कार्यालय:
आईसीएआर:
सीएयू
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पीके/केसी/एमएस
- तिरहुत कृषि महाविद्यालय
- कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय
- कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय
- सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय
- मूलभूत विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय
- मत्स्य पालन महाविद्यालय
- पंडित दीन दयाल उपाध्याय बागवानी एवं वानिकी महाविद्यालय
- कृषि व्यवसाय एवं ग्रामीण प्रबंधन विद्यालय