30 जुलाई को श्रीहरिकोटा से ‘‘निसार’’ प्रक्षेपण इसरो के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाएगा: डॉ. जितेंद्र सिंह
30 जुलाई को श्रीहरिकोटा से ‘‘निसार’’ प्रक्षेपण इसरो के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाएगा: डॉ. जितेंद्र सिंह
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज यहां कहा कि 30 जुलाई को श्रीहरिकोटा से होने वाला ‘‘निसार’’ प्रक्षेपण इसरो के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देगा।
मीडिया को जानकारी देते हुए, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री ने बताया कि नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (निसार) उपग्रह मिशन का बहुप्रतीक्षित प्रक्षेपण 30 जुलाई, 2025 को शाम 5:40 बजे श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से निर्धारित है। उन्होंने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अमेरिका के राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (नासा) के बीच पहले संयुक्त पृथ्वी अवलोकन मिशन के रूप में, यह घटना भारत-अमेरिका अंतरिक्ष सहयोग और इसरो के समग्र अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की यात्रा में एक निर्णायक क्षण है। इस मिशन को भारत के जीएसएलवी-एफ16 रॉकेट से प्रक्षेपित किया जाएगा।
मिशन पर कड़ी नजर रख रहे डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह प्रक्षेपण रणनीतिक वैज्ञानिक साझेदारियों की परिपक्वता और उन्नत पृथ्वी अवलोकन प्रणालियों में एक विश्वसनीय वैश्विक खिलाड़ी के रूप में भारत के उदय को दर्शाता है। इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी बनने के लिए श्रीहरिकोटा में स्वयं उपस्थित रहने की इच्छा व्यक्त करते हुए, मंत्री महोदय ने स्वीकार किया कि संसद के चालू सत्र के कारण उन्हें दिल्ली में आने में समस्या हो सकती है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, ‘‘यह मिशन सिर्फ एक उपग्रह प्रक्षेपण तक सीमित नहीं है—यह एक ऐसा क्षण है जो इस बात का प्रतीक है कि विज्ञान और वैश्विक कल्याण के लिए प्रतिबद्ध दो लोकतंत्र मिलकर क्या हासिल कर सकते हैं। एनआईएसएआर न केवल भारत और अमेरिका की सेवा करेगा, बल्कि दुनिया भर के देशों के लिए, विशेष रूप से आपदा प्रबंधन, कृषि और जलवायु निगरानी जैसे क्षेत्रों में, महत्वपूर्ण डेटा भी प्रदान करेगा।’’
डॉ. जितेंद्र सिंह ने आगे कहा कि यह मिशन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के भारत को ‘विश्व बंधु’ बनाने के दृष्टिकोण के अनुरूप है – एक वैश्विक साझेदार जो मानवता की सामूहिक भलाई में योगदान देता है।
निसार मिशन दोनों एजेंसियों की तकनीकी विशेषज्ञता का संयोजन करता है। नासा ने एल-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार (एसएआर), एक उच्च-गति दूरसंचार उपप्रणाली, जीपीएस रिसीवर और एक तैनात करने योग्य 12-मीटर का अनफर्लेबल एंटीना प्रदान किया है। इसरो ने अपनी ओर से एस-बैंड एसएआर पेलोड, दोनों पेलोड को समायोजित करने के लिए अंतरिक्ष यान बस, जीएसएलवी-एफ16 प्रक्षेपण यान और सभी संबंधित प्रक्षेपण सेवाएं प्रदान की हैं। उपग्रह का वजन 2,392 किलोग्राम है और इसे सूर्य-समकालिक कक्षा में स्थापित किया जाएगा, जिससे हर 12 दिनों में पृथ्वी की पूरी भूमि और बर्फीली सतहों की बार-बार तस्वीरें ली जा सकेंगी।
अनुप्रयोगों के दृष्टिकोण से, डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर प्रकाश डाला कि निसार की क्षमताएं पारंपरिक भू-अवलोकन से कहीं आगे तक फैली हुई हैं। उन्होंने कहा, ‘‘यह पारिस्थितिकी तंत्र की गड़बड़ियों की निरंतर निगरानी करने और भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी विस्फोट और भूस्खलन जैसे प्राकृतिक खतरों का आकलन करने में मदद करेगा। यह पृथ्वी की पपड़ी और सतह की गति में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों पर भी नजर रखेगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि उपग्रह के डेटा का उपयोग समुद्री बर्फ के वर्गीकरण, जहाज़ों का पता लगाने, तटरेखा की निगरानी, तूफान पर नजर रखने, फसलों के मानचित्रण और मिट्टी की नमी में बदलाव के लिए भी किया जाएगा—ये सभी सरकार, शोधकर्ताओं और आपदा प्रबंधन एजेंसियों के लिए जरूरी हैं।’’
इस मिशन की एक प्रमुख विशेषता यह है कि निसार द्वारा उत्पन्न सभी डेटा अवलोकन के एक से दो दिनों के भीतर, और आपात स्थिति में लगभग वास्तविक समय में, स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराए जाएंगे। डेटा के इस लोकतंत्रीकरण से वैश्विक वैज्ञानिक अनुसंधान और निर्णय लेने में मदद मिलने की उम्मीद है, खासकर उन विकासशील देशों के लिए जिनकी ऐसी क्षमताओं तक पहुंच नहीं हो सकती है।
उल्लेखनीय है कि निसार मिशन पहली बार किसी उपग्रह को सूर्य-समकालिक ध्रुवीय कक्षा में स्थापित करने के लिए जीएसएलवी रॉकेट का उपयोग कर रहा है, जो विविध अंतरिक्ष अभियानों में इसरो की बढ़ती तकनीकी दक्षता का संकेत है। निसार पर लगा दोहरा रडार पेलोड, पृथ्वी की सतह की 242 किलोमीटर के विस्तृत क्षेत्र की उच्च-रिजॉल्यूशन, सभी मौसमों में, दिन-रात की इमेजिंग के लिए स्वीपएसएआर तकनीक का इस्तेमाल करेगा।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशीलता और सतत विकास के संदर्भ में पृथ्वी अवलोकन मिशनों के महत्व पर भी बल दिया। उन्होंने कहा, ‘‘निसार जैसे मिशन अब सिर्फ वैज्ञानिक जिज्ञासा तक सीमित नहीं रह गए हैं—ये योजना बनाने, जोखिम आकलन और नीतिगत हस्तक्षेप में भी सहायक हैं। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तीव्र होते जा रहे हैं, सरकारों के लिए सक्रिय कार्रवाई करने हेतु निसार जैसे उपग्रहों से समय पर और सटीक आंकड़े प्राप्त करना जरूरी होगा।’’
हालांकि इस मिशन की निर्माण अवधि एक दशक से ज्यादा रही है और इसमें 1.5 अरब डॉलर से ज़्यादा का संयुक्त निवेश हुआ है, लेकिन वैश्विक उपयोगिता और तकनीकी प्रगति के लिहाज से इसके परिणाम काफी परिवर्तनकारी होने की उम्मीद है। दुनिया भर की अंतरिक्ष एजेंसियों, पर्यावरण शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं की निसार के प्रक्षेपण पर कड़ी नजर है।
30 जुलाई की उल्टी गिनती शुरू होते ही, डॉ. जितेंद्र सिंह ने दोहराया कि प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन में भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम पारंपरिक उपयोगिता-आधारित मिशनों से धीरे-धीरे ऐसे मिशनों की ओर बढ़ रहा है जो देश को वैश्विक साझा संसाधनों में ज्ञान योगदानकर्ता के रूप में स्थापित करते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘निसार सिर्फ एक उपग्रह नहीं है; यह दुनिया के साथ भारत का वैज्ञानिक सहयोग है।’’