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भारत स्वास्थ्य-तकनीक क्रांति के निर्णायक मोड़ पर: केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह का ईटी डॉक्टर्स डे कॉन्क्लेव में संबोधन

भारत स्वास्थ्य-तकनीक क्रांति के निर्णायक मोड़ पर: केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह का ईटी डॉक्टर्स डे कॉन्क्लेव में संबोधन

ईटी टाइम्स नाउ द्वारा आयोजित डॉक्टर्स डे कॉन्क्लेव में अपने विचारोत्तेजक मुख्य संबोधन में, केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री, डॉ. जितेंद्र सिंह, जो एक जाने-माने प्रोफेसर और मधुमेह रोग विशेषज्ञ भी रहे हैं, ने इस बात पर जोर दिया कि भारत  स्वास्थ्य-तकनीक क्रांति के महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है और एक नए बड़े अध्याय की शुरुआत कर रहा है, क्योंकि इसकी अर्थव्यवस्था विश्व स्तर पर 10वें से 4वें स्थान पर आ गई है और यह आगे भी बढ़ती रहेगी।

मंत्री ने भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभ्रांशु शुक्ला के अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन मिशन का उदाहरण दिया, जिसमें स्वदेशी लाइफ साइंस  किट ले जाई गई हैं। उन्होंने इसे एक ऐसा मील का पत्थर बताया जो जल्द ही एक नयी चिकित्सा विधि: स्पेस मेडिसिन को जन्म दे सकता है।

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने विकसित भारत @2047 के विज़न के अनुरूप एकसामंजस्यपूर्ण, समावेशी और भविष्योन्मुखी स्वास्थ्य सेवा ईकोसिस्टम” का आह्वान किया है।

बहुत जल्द, हमारे पास मेडिकल अकादमिक्स में स्पेस फिजिशियननामक एक समर्पित स्ट्रीम हो सकती है। यह वह भविष्य है जिसके लिए हमें तैयार रहना चाहिए”, डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा।

स्वास्थ्य और जनसांख्यिकीय परिवर्तन के विषय पर बोलते हुए, मंत्री ने दो-चरण वाली चुनौती” का उल्लेख किया जिसका सामना भारत कर रहा है – बढ़ती जीवन प्रत्याशा के कारण बुजुर्ग नागरिकों की बढ़ती संख्या के साथ-साथ एक युवा आबादी भी है। उन्होंने समझाया: “जबकि भारत की 70% से अधिक आबादी 40 वर्ष से कम है, बुजुर्ग आबादी भी तेजी से बढ़ रही है। जहां 1947 में, औसत जीवन काल 50-55 वर्ष था; आज यह 80 के करीब है।”

डॉ. जितेंद्र सिंह ने बीमारियों के दोहरे बोझ पर भी ध्यान दिया, क्योंकि भारत विशेष रूप से कोविड-के बाद के युग में संचारी और गैर-संचारी दोनों तरह की बीमारियों से एक साथ निपट रहा है। इसे संबोधित करने के लिए, उन्होंने बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग, शीघ्र पता लगाने और रोकथाम पर जोर दिया, और अधिक सार्वजनिक-निजी सहभागिती तथा एआई, टेलीमेडिसिन और मशीन लर्निंग जैसी प्रौद्योगिकियों के अधिकतम उपयोग का आह्वान किया।

भारत की हालिया वैश्विक उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने गर्व से बताया  कि भारत निवारक और सटीक स्वास्थ्य सेवा में एक वैश्विक नेता के रूप में उभरा है। उन्होंने बताया कि भारत ने कोविड-19 के लिए दुनिया का पहला डीएनए वैक्सीन और सर्वाइकल कैंसर को रोकने में मदद करने के लिए एचपीवी वैक्सीन विकसित किया। इसके अलावा, भारत ने हीमोफिलिया के लिए अपना पहला जीन थेरेपी परीक्षण सफलतापूर्वक आयोजित किया, जिसके परिणाम प्रतिष्ठित न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुए।

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मंत्री ने नाफिथ्रोमाइसिन के लॉन्च का भी एलान किया, जो देश का पहला स्वदेशी रूप से विकसित एंटीबायोटिक माल्यूक्यूल है। उन्होंने इसे भारत के फार्मास्युटिकल नवाचार परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बताया।

उन्होंने इन सफलताओं का श्रेय निजी उद्योग के साथ शुरुआती चरण के सहयोग को देते हुए कहा, “ये उपलब्धियां शुरू से ही सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के निर्बाध एकीकरण के कारण संभव हुईं।”

एकीकृत संस्थानों की आवश्यकता पर बात करते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने खुलासा किया कि आईआईटी कानपुर और आईआईएससी बेंगलुरु अपने परिसरों के भीतर मेडिकल स्कूल स्थापित करने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने आयुष्मान भारत जैसे भारत के किफायती स्वास्थ्य सेवा मॉडल और त्रिवेंद्रम में श्री चित्रा तिरुनल संस्थान जैसे संस्थानों की भी सराहना की, जो अनुसंधान, विनिर्माण और नैदानिक देखभाल को एकीकृत करता है।

कैंसर देखभाल के संदर्भ में, डॉ. जितेंद्र सिंह ने लक्षित विकिरण चिकित्सा की दिशा में भारत के कदम पर जोर दिया और टाटा मेमोरियल सेंटर को 100% डिजिटल और कैशलेस अस्पताल प्रणालियों में अगुवा के रूप में रेखांकित किया।

उन्होंने कुंभ मेले जैसे बड़े सार्वजनिक जमावड़ें के दौरान भारत के स्वच्छता नवाचारों पर भी प्रकाश डाला, जहाँ विकिरण-आधारित मल कीचड़ उपचार संयंत्रों (एफएसटीपी) ने 40 करोड़ से अधिक तीर्थयात्रियों के लिए स्वास्थ्य खतरों के बिना स्वच्छता सुनिश्चित की।

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जलवायु-संबंधी स्वास्थ्य लचीलेपन पर बात करते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने हाल ही में लॉन्च किए गए मिशन मौसम का उल्लेख किया, जो जलवायु आपदाओं के स्वास्थ्य-संबंधी प्रभावों के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों पर केंद्रित है।

अपने संबोधन के समापन पर, डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत के स्वास्थ्य सेवा भविष्य के लिए एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक तालमेल का आह्वान किया, जिसमें शिक्षाविदों, अनुसंधान संस्थानों, उद्योग और सरकार के बीच सहयोग के महत्व पर जोर दिया गया। उन्होंने अनुसंधान और स्वास्थ्य सेवा डिलीवरी दोनों में निजी क्षेत्र के शुरुआती एकीकरण की भी वकालत की ताकि स्थिरता और स्केलेबिलिटी सुनिश्चित की जा सके। इसके अलावा, उन्होंने संस्थागत नवाचार का आग्रह किया, जिसमें आईआईटी कानपुर और आईआईएससी बेंगलुरु जैसे प्रमुख संस्थानों द्वारा अपने परिसरों के भीतर मेडिकल स्कूल स्थापित करने के प्रस्तावों का हवाला दिया गया – एक ऐसा कदम जो इंटरडिसिप्लनरी उत्कृष्टता को बढ़ावा देगा और समग्र शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा का एक नया मॉडल तैयार करेगा।

उन्होंने कहा, “हमें सब कुछ टेक्नोक्रेट्स को नहीं सौंपना चाहिए। डॉक्टर का थोड़ा सा हिस्सा बचा रहना चाहिए। हमें चिकित्सा के विज्ञान और आत्मा दोनों को आगे बढ़ाना चाहिए।”