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Text of PM’s address at the laying of foundation stone and inauguration of development works in Amreli, Gujarat

Text of PM’s address at the laying of foundation stone and inauguration of development works in Amreli, Gujarat

भारत माता की जय।

भारत माता की जय। 

मंच पर विराजमान गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र भाई पटेल जी, केंद्र में मेरे सहयोगी सी. आर. पाटिल जी और गुजरात के मेरे भाई-बहन, और आज विशेष रूप से अमरेली के मेरे भाई-बहन।

आगे दिवाली और धनतेरस दरवाजे पर दस्तक दे रही है, यह समय मंगलकार्यों का समय है। एक ओर संस्कृति का उत्सव, दूसरी ओर विकास का उत्सव, और ये भारत की नई छाप है। विरासत और विकास साझा करने का काम चल रहा है। आज मुझे गुजरात के विकास से जुड़ी अनेक परियोजनाओं का शिलान्यास और शुभारंभ करने का अवसर मिला। आज यहां आने से पहले मैं वडोदरा में था, और भारत की पहली ऐसी फैक्ट्री का उद्घाटन हुआ है। हमारे अपने गुजरात में, हमारे वडोदरा में और हमारा अमरेली गायकवाड़ का है, और वडोदरा भी गायकवाड़ का है। और इस उद्घाटन में हमारी वायुसेना के लिए मेड इन इंडिया विमान बनाने वाली फैक्ट्री का उद्घाटन भी शामिल था। इतना बोलो की छाती फट जाये कि नहीं। बोलिए जरा अमरेलीवालों…नहीं तो हमारे रूपाला का डायरा पढ़ना पडे़गा। और यहां आकर भारत माता सरोवर का शुभारंभ करने का अवसर मिला। यहां के मंच से पानी, सड़क, रेलवे की कई दीर्घकालिक परियोजनाओं का शिलान्यास और शुभारंभ किया गया। ये सभी परियोजनाएं सौराष्ट्र और कच्छ के जीवन को आसान बनाने वाली परियोजनाएं हैं। और ऐसी परियोजनाएं हैं जो विकास को नई गति देती हैं। जिन परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण किया गया है, वे हमारे किसानों की भलाई के लिए हैं, कृषि कार्य करने वाले लोगों की समृद्धि के लिए हैं। और हमारे युवाओं के लिए रोजगार…इसके लिए अनेक अवसरों का आधार भी यही है। कच्छ, सौराष्ट्र, गुजरात के मेरे सभी भाइयों-बहनों को अनेक परियोजनाओं के लिए मेरी शुभकामनाएँ।

साथियों,

सौराष्ट्र और अमरेली की धरती यानि इस धरती ने अनेक रत्न दिए हैं। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और राजनीतिक हर तरह से अमरेली का अतीत गौरवशाली रहा है। ये वही धरती है जिसने योगीजी महाराज दिये, ये वही धरती है जिसने भोजा भगत दिये। और गुजरात के लोक जीवन में शायद ही कोई ऐसी शाम होती होगी जब गुजरात के किसी कोने में दुला भाया काग को याद ना किया जाता हो। ऐसा एक भी डायरा या लोक कथा नहीं होगी जिसमें काग बापू की चर्चा न हो। और आज वह मिट्टी, जिस पर आज भी छात्र जीवन से लेकर जीवन के अंत तक रे पंखीडा सुखथी चणजो…कवि कलापी की स्मृति ना हो और शायद कलापी की आत्मा, आज तृप्त होगी कि पानी आ गया तो…रे पंखीडा सुखथी चणजो, अब उसके दिन सुनहरे हो गए हैं। और यह अमरेली है, यह जादुई भूमि है। के. लाल भी यहीं से आते हैं, और हमारे रमेशभाई पारेख, आधुनिक कविता के प्रणेता और गुजरात के पहले मुख्यमंत्री जीवराजभाई मेहता को याद करते हैं, इन्हें भी इस धरती ने दिया था। यहां के बच्चों ने विपरीत परिस्थितियों का सामना किया है, चुनौतियों का सामना किया है। जो लोग प्राकृतिक आपदाओं के सामने झुकने के बजाय ताकत का रास्ता चुनते हैं, वे इसी धरती के बच्चे हैं। और इसमें से कुछ उद्योगपति निकले हैं।। इस धरती ने ऐसे रत्न दिए हैं जिन्होंने ना केवल जिले का नाम रोशन किया बल्कि गुजरात का नाम, देश का नाम रोशन किया। और वे समाज के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं, करने की कोशिश की है। और हमारा धोलकिया परिवार भी उसी प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा है। पानी के लिए गुजरात सरकार की 80/20 योजना जब से गुजरात में भाजपा सरकार आई है, हमने पानी को प्राथमिकता दी है। 80/20 योजना और जन भागीदारी, चेक डैम बनाना, खेत तालाब बनाना, झीलों को गहरा करना, जल मंदिर बनाना, तलावडी खोदना, जो भी प्रयास…मुझे याद है जब मैं मुख्यमंत्री के रूप में अखिल भारतीय बैठकों में जाता था और कहता था कि हमें अपने गुजरात के बजट में एक बडा हिस्सा पानी के लिए खर्च करना होता है तो भारत की अनेक सरकारों के मुख्यमंत्री, मुखिया मेरी ओर ऐसे देखते रहतें जैसे ये तुम्हें कहां से मिला। मैंने उनसे कहा कि मेरे गुजरात में बहुत सारे पानीदार लोग हैं और अगर हमें एक बार पानी मिल जाए तो मेरा पूरा गुजरात पानीदार हो जाएगा। ये संस्कार हमारे गुजरात का है। और बहुत से लोग 80/20 योजना से जुड़ गए। समाज, गांव सभी ने भागीदारी की, मेरे धोलकिया परिवार ने इसे बड़े पैमाने पर उठाया, नदियों को जीवंत बनाया। और यही तरीका है नदियों को जीवित रखने का। हम नर्मदा नदी से 20 नदियों से जुड़े हुए थे। और हमारे मन में नदियों में छोटे-छोटे तालाब बनाने का विचार आया। जिससे हम मीलों तक जल का संरक्षण कर सकें। और पानी जमीन में उतरने के बाद अमृत आये बिना नहीं रहेगा भाई। पानी का महत्व गुजरात के लोगों को या सौराष्ट्र, या कच्छ के लोगों को समझाने की जरूरत नहीं है, इसे किसी किताब में पढ़ाने की जरूरत नहीं है क्योंकि वे सुबह उठे और समस्याओं से गुजरे होंगे, वे जानते हैं बिल्कुल उनकी समस्याएँ, वे जानते हैं कि समस्याएँ कितने प्रकार की होती हैं। और साथ ही हमें याद है कि पानी की इस कमी के कारण हमारा पूरा सौराष्ट्र पलायन कर रहा था, कच्छ पलायन कर रहा था। और हमने वो दिन भी देखे हैं, जब शहरों में 8-8 लोग एक कमरे में रहने को मजबूर थे और आज हमने देश में पहली बार जल शक्ति मंत्रालय बनाया है, क्योंकि हम इसके महत्व को जानते हैं। और आज इन सभी पुरुषार्थों के अनुरूप स्थितियां बदल गई हैं, अब नर्मदा का पानी गांव-गांव तक पहुंचाने के अथक प्रयास ने हमें सफलता दी है। मुझे याद है एक समय था जब नर्मदा परिक्रमा से पुण्य मिलता था, युग बदल गया और माँ नर्मदा स्वयं गाँव-गाँव घूमकर पुण्य बाँट रही हैं, और पानी भी बाँट रही हैं। सरकार की जल संचयन योजना सौनी योजना है। मुझे याद है जब मैंने पहली बार सौनी योजना लॉन्च की थी, तो कोई भी यह विश्वास करने के लिए तैयार नहीं था कि ऐसा थोड़ी ना होगा। और कुछ कुटिल लोगों ने तो ये भी हेडलाइन बना दी कि मोदी के चुनाव सामने है तो गुब्बारे छोड़ दिए। लेकिन इन सभी योजनाओं ने कच्छ, सौराष्ट्र को एक नया जीवन दिया है और आपके सपने को पूरा करके आपके सामने हरी-भरी धरती देखने का आनंद भी दिया है। पवित्र भावना से किया गया संकल्प कैसे पूरा होता है, इसका यह उदाहरण है। और जब मैं देश की जनता से कहता था कि मैं इतना बड़ा पाइप बिछा रहा हूं, कि पाइप के जरिए आप मारुति कार चला सकेंगे, तब लोग हैरान रह गए। आज गुजरात के कोने-कोने में जमीन में ऐसे पाइप जमा हैं, जो पानी के साथ बाहर निकलते हैं। ये काम गुजरात ने किया है। हमें नदी की गहराई बढ़ानी है तो चेक डैम बनाना है, कुछ नहीं तो बैराज बनाना है, उतनी दूर तक जाना है लेकिन पानी बचाना है। गुजरात ने इस अभियान को अच्छे से पकड़ा, जन-भागीदारी से पकड़ा। जिससे आसपास के क्षेत्रों में पीने का पानी भी शुद्ध होने लगा, स्वास्थ्य में भी सुधार होने लगा, और नई परियोजनाओं के कारण दो दशकों में घर-घर पानी पहुंचाने के सपने और खेत से खेत तक पानी पहुंचाने की चाहत को बहुत गति मिली है। ये सच है कि संतुष्टि का एहसास होता है। आज 18-20 साल के लाबरमुचिया को शायद पता भी नहीं होगा कि पानी के बिना कितनी तकलीफ होती थी, आज वह नल चालू करके नहा रहा होगा, उसे नहीं पता होगा कि मां को कितने बर्तन उठाकर 3-4 किलोमीटर तक जाना पड़ता था पहले। गुजरात ने जो काम किया वह आज देश के सामने एक उदाहरण के रूप में साबित हो रहा है। गुजरात में घर-घर, खेत-खेत पानी पहुंचाने का अभियान आज भी इतनी निष्ठा और पवित्रता से चल रहा है। आज परियोजना के शिलान्यास और लोकार्पण से लाखों लोगों को फायदा होने की भी उम्मीद है, नवद-चावंड बल्क पाइपलाइन परियोजना के पानी से करीब 1300 गांवों और 35 से ज्यादा शहरों को फायदा होगा। अमरेली, बोटाद, राजकोट, जूनागढ़, पोरबंदर जिलों के लाखों लोग इस पानी के हकदार होने वाले हैं, और हर दिन लगभग 30 करोड़ लीटर अतिरिक्त पानी इन क्षेत्रों में पहुंचने वाला है। आज पासवी समूह संवर्धन जलापूर्ति योजना योजना के दूसरे चरण का भी शिलान्यास किया गया। महुवा, तलाजा, पालिताना इस परियोजना के तीन तालुका हैं, और पालिताना तीर्थयात्रा और पर्यटकों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है जो पूरे सूबा की अर्थव्यवस्था को संचालित करता है। इन परियोजनाओं के पूरा होने पर 100 से अधिक गांवों को सीधा लाभ होना है।

साथियों,

आज जल परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण सरकार-समाज की साझेदारी से जुड़ा है। यह एक बेहतरीन उदाहरण है और हम जनभागीदारी पर जोर देते हैं। क्योंकि जल का महत्वपूर्ण अनुष्ठान चलेगा तो जनभागीदारी से चलेगा। जब आजादी के 75 वर्ष पूरे हुए तो सरकार अनेक कार्यक्रम कर सकती थी। मोदी के नाम का बोर्ड लगाने के कई कार्यक्रम होते लेकिन हमने ऐसा नहीं किया, हमने गांव-गांव अमृत सरोवर बनाने की योजना बनाई और हर जिले में 75 अमृत सरोवर बनाने की योजना बनाई, और आखिरी जानकारी कुछ जगहों पर लगभग 75 हजार जगहों पर तालाब का काम चल रहा है। 60,000 से अधिक झीलें आज भी जीवन से भरपूर हैं। इन भावी पीढ़ियों की सेवा करना एक बहुत बड़ा उपक्रम रहा है और इससे पड़ोस में जल स्तर में वृद्धि हुई है। कैच द रेन अभियान चलाया, दिल्ली गए तो यहां का अनुभव काम आया। और इसकी सफलता भी एक बड़ी मिसाल बन गई है। पानी की एक-एक बूंद बचाने के लिए परिवार हो, गांव हो, कॉलोनी हो, लोगों को पानी बचाने के लिए प्रेरित करना होगा, और सौभाग्य से सी. आर. पाटिल अब हमारे मंत्रिमंडल में हैं। उन्हें गुजरात के पानी का अनुभव है। अब यह पूरे देश में लिखा जाने लगा है। और कैच द रेन के कार्य को पाटिल जी ने अपने महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में से एक के रूप में लिया है। गुजरात के साथ-साथ देश के कई राज्यों राजस्थान, एमपी, बिहार में भी जनभागीदारी से हजारों रिचार्ज कुओं का निर्माण शुरू हो चुका है। कुछ समय पहले हमें दक्षिण गुजरात के सूरत में वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से एक कार्यक्रम में शामिल होने का मौका मिला था, जहां लोग अपने पैतृक गांवों में रिचार्ज कुएं बनाने का काम कर रहे हैं, जिससे परिवार की कुछ संपत्ति गांव को वापस मिल जाएगी। यह एक नई रोमांचक घटना है, गांव का पानी गांव में रहे, सीमा का पानी सीमा में रहे, ये अभियान और बड़े कदम हैं। और दुनिया के कई देशों में बहुत कम बारिश होती है और पानी बचाते हैं, और बचाए हुए पानी से ये चलता है। अगर आप कभी पोरबंदर महात्मा गांधी के घर जाएं तो 200 सालों पुराना जल भंडारण के लिए आपको जमीन के नीचे एक टंकी मिल जाएगी। पानी के महत्व को हमारे लोग 200-200 वर्ष पहले से ही परख चुके हैं।

साथियों,

अब पानी की इस उपलब्धता के कारण खेती करना आसान हो गया है, लेकिन हमारा मूल मंत्र है- बूंद, अधिक फसल यानी गुजरात में हमने सूक्ष्म सिंचाई यानी स्प्रिंकलर पर भी जोर दिया। इसका गुजरात के किसानों ने भी स्वागत किया। आज जहां भी नर्मदा का पानी पहुंचा है, वहां तीन फसलें ली जाती हैं, जिस किसान को एक फसल लेने में परेशानी होती थी, वह तीन फसलें लेने लगा है। ऐसे में उनके घर में खुशी और खुशी का माहौल है। आज अमरेली जिला हमारे कृषि क्षेत्र में, कपास में, मूंगफली में, तिल में, बाजरा में, जाफराबाद बाजरा में आगे आ रहा है, मैं दिल्ली में इसकी प्रशंसा कर रहा हूं। हमारे हीरा भाई मुझे भेज रहे हैं। और अमरेली से हमारा केसर आम, केसर के आम को अब जीआई टेग मिल गया है। और उसके कारण दुनियाभर में अमरेली का केसर आम जीआई टेग के साथ एक उसकी पहचान खडी हो गई है। अमरेली की उसके साथ पहचान बन गई है प्राकृतिक खेती। अपने गवर्नर साहब उस पर मिशन मोड में कार्य कर रहे है। उसमें भी अमरेली के प्रोग्रेसीव किसान उनकी जिम्मेदारी के साथ आगे बढ रहे है। अपने यहाँ हालोल में नेचुरल फार्मिंग की अलग-अलग युनिवर्सिटी डेवलप हुई है। उस युनिवर्सिटी के अंतर्गत पहली नेचुरल फार्मिंग की कॉलेज अपने यहाँ अमरेली को मिली है। इसका कारण यहाँ के किसान इस नए प्रयोग के लिए प्रतिबद्ध है, कटिबद्ध है। इसलिए यहाँ प्रयोग करे तो तुरंत ही उसकी फसल पक जाएगी और प्रयास यही है कि ज्यादा से ज्यादा किसान पशुपालन भी करें और उसमें भी गाय का पालन करे, और प्राकृतिक खेती का लाभ भी उठाए। अपने यहाँ अमरेली में डेरी उद्योग, मुझे याद है पहले एसे कानून थे कि आप डेरी बनाओ तो गुनाह लगता था। वह सब निकाल दिया मैंने आके और यहाँ अमरेली में डेरी उद्योग शुरु किया। देखते ही देखते उसका विकास हुआ और इस सहकार और सहकारिता के संयुक्त प्रयास का परिणाम है। मुझे याद है 2007 में आपनी अमर डेरी की शुरूआत हुई तब 25 गाँव में सहकारी समितियाँ थी। आज 700 से ज्यादा गाँव बरोबर है। दिलीपभाई मेरी बात। 700 से ज्यादा गाँव में यह डेरी समितियां इस डेरी के साथ जुड़ चुकी हैं। और इस डेरी में लगभग मुझे जो आखरी सूचना मिली उसके मुताबिक 1.25 लिटर दूध रोज भरा जाता है। यह पूरा रिवोल्युशन है भाई, और एक मार्ग ही नहीं अनेक मार्गों के विकास के पंथो को पकड़ा है हमने भाई।

साथियों,

मुझे दूसरी भी खुशी है, मैंने बरसो पहले बात कही थी, सबके सामने कही थी और मैंने कहा था कि श्वेत क्रांति करें, ग्रिन रिवोल्युशन करें, पर अब स्वीट रिवोल्यूशन करना है। शहद उत्पन्न करना है, हनी सिर्फ घर में बोलने के लिए नहीं भाई, शहद का उत्पादन करें खेतो में और उससे ज्यादा आय किसानो को हो अमरेली जिला ने हमारे दिलीपभाई और रूपालाजी ने इस बात को उठाया और अपने यहाँ खेतो में शहद का पालन होने लगा, और उसकी तालीम लोगों ने ली। और अब यहाँ का शहद भी आज अपनी एक पहचान खड़ी कर रहा है। यह खुशी की बात है। पर्यावरण के लगते जितने भी कार्य हैं, यहाँ पेड़ लगाने की बात हो तो एक पेड़ माँ के नाम वो जो अभियान गुजरात ने उठाया था, पूरे देश ने उठा लिया है और दुनिया में एक पेड़ माँ के नाम एसा कहूं तो दुनिया के लोगों की आँख में चमक आती है। सभी उसके साथ जुड़ रहे हैं। पर्यावरण का बडा काम चल रहा है और दूसरा पर्यावरण का बड़ा काम अपना बिजली का बिल जिरो करने की दिशा में काम करना है। सूर्यघर योजना, यह पीएम सूर्यघर मुफ्त बिजली योजना सभी परिवारों को साल में 25 से 30 हजार रुपये बिजली के बिल के बचे और इतना ही नहीं, वो जो बचनेवाली बिजली बेच के जो आय कमाए ऐसा एक बड़ा काम हमने हाथ में लिया है। और इस योजना को शुरु किए अभी तो, आपने मुझे जो तीसरी बार काम सौंपा तभी कार्य चालू किया है। और अब तक लगभग 1.50 करोड़ परिवारो नें पंजीकरण करवाया है। और अपने गुजरात में 2 लाख घरों पर, उनकी छतों पर सोलर पैनल लग चुकी है, वे बिजली का उत्पादन कर रहे हैं, बिजली बेच रहे हैं। और उर्जा के मामले में भी अपना अमरेली जिला उसने भी नए कदम बढाए हैं। आज अपना यह दूधाडा गाँव उसमें अपने गोविंदभाई उन्होंने मिशन उठाया 6 महिने पहेल मुझे गोविंदभाई कह गए थे कि मुझे मेरे पूरे गाँव को सूर्य घर बनाना है, और लगभग काम अब पूरा होने आया है। और उसके कारण गाँव के लोगों के महीने में लगभग बिजली के 75,000 हजार बचने वाले हैं। दुधाडा गाँव के और जो घर में सोलर प्लांट लग चुके हैं उसको हर साल 4000 की बचत होने वाली है। दुधाडा गाँव वह अमरेली का पहला सोलर गाँव बन रहा है उसके लिए गोविंदभाई को और अमरेली को अभिनंदन।

साथियों,

पानी और पर्यटन का सीधा नाता है, जहाँ पानी होता है वहाँ पर्यटन आता ही है। अभी मैं भारत माता सरोवर देख रहा था, तभी तुरंत ही मुझे विचार आया कि संभव है कि इस दिसंबर में जो यायावार पक्षी आते हैं, जो कच्छ में आते हैं मुझे लगता है उन्हें अब यहाँ नया पता मिल जाएगा। और जैसे ही उन्हे यह नया पता मिलेगा, फ्लेमिंगो को तो यहाँ टूरिस्टो का भीड़ बढ जाएगी। पर्यटन का बड़ा केन्द्र इसके साथ जुड़ जाता है। और अपने अमरेली जिले में तो तीर्थ स्थान और आस्था के बहुत बडे स्थान हैं, कई जगह है। जहाँ लोग अपना सर झुकाने के लिए आते हैं। हमने देखा हैं कि सरदार सरोवर डेम, डेम तो बनाया था पानी के लिए, वह तो काम करता ही है, लेकिन हमने उसमें मूल्य वृद्धि करके सरदार साहब का दुनिया में सबसे ऊंचा स्टैचू बना दिया और आज लाखों लोग इस स्टैचू को देखने के लिए, नर्मदा के दर्शन करने के लिए लगभग 50 लाख पिछले साल इस सरदार साहब की प्रतिमा के दर्शन कर गए हैं। और अब 31 अक्टूबर सामने ही है दो दिन बाद सरदार साहब की जन्म जयंती है, और इस बार तो खास 150 साल हो रहे हैं। और मैं फिर आज तो दिल्ली वापस जाऊंगा, परसो फिर आने वाला हूं, सरदार साहब के चरणों में माथा टेकने। हर साल की तरह हम सरदार साहब के जन्मदिन पर राष्ट्रीय एकता की दौड़ करते है। लेकिन इस बार 31 तारीख को दिवाली है, इसलिए 29 तारीख को रखा है। और में चाहता हूं कि पूरे गुजरात में भी एकता दौड़ के कार्यक्रम बडे पैमानें पर हों और मैं वहाँ केवडिया में भी जो राष्ट्रीय एकता की परेड होती है, उसमें उपस्थित रहने वाला हूं।

साथियों,

आने वाले समय में अपना ये जो केरली रिचार्ज रिजोवर जो बना है, वह इको टूरिज्म का बड़ा केन्द्र बनेगा, यह मैं आज से अनुमान लगा रहा हूं। एडवेंचर टूरिज्म की संभावना वहाँ मैं देख रहा हुँ हूं। और केरली बर्थ सेंचुरी उसकी दुनिया में पहचान खड़ी होगी और आप सभी देखना दुनिया में ज्यादा से ज्यादा समय दे। ऐसा टूरिस्ट कहाँ आएगा जो, बर्ड वोचर होता है, पक्षी को देखने के लिए आनेवाले लोग वे लोग लंबे समय तक कैमरा लेकर जंगलो में आके बैठ जाते हैं, दिनो तक रुकते हैं। इसलिए यह टूरिज्म वैसे तो आय का बडा साधन बन जाता है। अपने गुजरात का तो नसीब है उतना बड़ा समद्र तट, भूतकाल में यह समुद्र अपने को खारा पानी और दुख देगा यह लगता था। आज उसको भी हम समृ्द्धि के द्वार के रूप में बदल रहे हैं। गुजरात का समुद्र तट वह गुजरात का ही नहीं, देश का समृद्धि का द्वार बने उसके लिए अपने प्राथमिकता को लेकर कार्य कर रहे हैं। मत्स्यसंपदा माछीमार भाइयों को लाभ मिले अपने बंदर उसके साथ जो हज़ारों साल की विरासत जुडी है। उन्हें पुनः जीवित कर रहे हैं। लोथल, यह लोथल मोदी के आने के बाद आया ऐसा नही है भाई, 5 हजार साल पुराना है। मैं मुख्यमंत्री था तब मेरा यह सपना था कि मुझे इस लोथल को दुनिया के टूरिज्म के नक्शे पर रखना है। और अपने को छोटा अच्छा नहीं लगता उसे दुनिया के नक्शे पर रखने की बात। और अब लोथल की बात मेरी टाईम हेरिटेज कॉम्प्लेक्स, दुनिया का सबसे बडा मैरिटाइम म्यूजियम बन रहा है। अपने वहाँ अमरेली से अहमदाबाद जाते हैं वहाँ रास्ते में आता है, बहुत दूर नहीं है, थोडा आगे जाना पडता है।

देश और दुनिया को भारत की यह जो समुद्री विरासत है उसको परिचित करवाने का प्रयास है। हजारों सालो अपने ये लोग समुद्र को पार करने वाले लोग थे। और अपना प्रयास है कि ब्लू रिवोल्यूशन, निला पानी, निली क्रांति उसे भी गति देनी है। पोर्ट लेट डेवलपमेन्ट विकसित भारत के संकल्प को मजबूत करने की दिशा में अपना काम है। जाफराबाद, शियाल बेट उसमें अपने माछीमार भाइयों के लिए अच्छे से अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हो रहा है, अमरेली का गौरव बन रहा है। पीपावाव बंद उसका आधुनिकरण उसके कारण उसके नए अवसर बन रहे हैं। आज यह बंदरगाह हजारो लोगों को रोजगार देने का केन्द्र बन रहा है। आज वहाँ 10 लाख से ज्यादा कन्टेनर और हजारों वाहन संभालने की उसकी क्षमता है। पीपावाव बंदरगाह की। और अब हमारा प्रयास यह है कि बंदरगाहों को गुजरात के सभी बंदरगाहों, उन्हें देश के सभी क्षेत्रो से जोड़ने का अभियान है। पूरे भारत के बंदरगाहों को गुजरात के बंदरगाहों से जोड़ने का प्रयास है। दूसरी ओर सामान्य मानवी के जीवन की उतनी ही चिंता। गरीबों के लिए पक्के घर हो, बिजली हो, रेलवे हो, रोड़ हो, गेस पाइपलाइन हो, टेलिफोन के वायर हो, ऑप्टिकर फाइबर लगाने हो, यह इंफ्रास्ट्रक्चर के सभी काम हॉस्पिटल बनानी हो और हमारी तीसरी टर्म में क्योंकि 60 साल बाद देश ने किसी भी प्रधानमंत्री को तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में सेवा देना का मौका दिया है। उसमें गुजरात के साथ सहकार का जितना आभार मानु उतना कम है। बडिया से बडिया कनेक्टिविटी उसके लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर वह कितना बड़ा फायदा करता है वह हमने सौराष्ट्र में देखा है। जैसे-जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार होता है, वैसे बडे़ पैमाने पर इंडस्ट्रीज आती हैं, बडे़ स्तर पर आती हैं, हमने रेरो-फेरी सर्विस का लाभ देखा है। मैं स्कूल में पढ़ता था तब सुनता था। गोगा की फेरी गोगा की फेरी, किया किसी ने…नहीं। हमें यह अवसर मिला और हमने किया 7 लाख से ज्यादा लोग इस रोरो-फेरी सर्विस में आ चुके हैं। 1 लाख से ज्यादा गाड़िया, 75 हजार से ज्यादा ट्रक, बस, उसके कारण कितने लोगो का समय बचा है। कितने लोगों के पैसे बचे है और कितना सारा पेट्रोल का धुँआ बचा है, उसका आप लोग हिसाब लगाओं तो हम सभी को आश्चर्य होगा कि इतना बड़ा काम यह पहले क्यों नहीं हुआ। मुझे लगता है एसे अच्छे काम मेरे नसीब में ही लिखे थे।

साथियों,

आज जामनगर से अमृतसर भटींडाता इकोनोमी कोरिडोर बनाने का कार्य चल रहा है। उसका भी लाभ सबसे बड़ा मिलने वाला है। गुजरात से लेकर पंजाब तक के राज्य उसके साथ ही फायदे मंद बनने वाले हैं। उस रास्ते पर बहुत बडे़ आर्थिक क्षेत्र आ रहे हैं। बडे मथक आ रहे हैं। और जो सड़क परियोजना का लोकार्पण हुआ है, उससे जामनगर मोरबी, और मैंने हमेशा कहा था कि राजकोट-मोरबी-जामनगर यह एसा त्रिकोन है कि जो भारत के मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में उसका नाम हो ऐसी ताकत रखता है। वह मीनी जापान होने की ताकत रखता है, ऐसा जब मैंने 20 साल पहले कहाँ होगा तब यह सब लोग उसकी मजाक उडा रहे थे। आज हो रहा है, और उसकी कनेक्टिविटी का कार्य आज उसके साथ जुडा हुआ है। उसके कारण सिमेंट के जो कारखाने वाला क्षेत्र है उसकी कनेक्टिविटी भी सुधरने वाली है। इसके अलावा सोमनाथा, द्वारका, पोरबंदर, गीर के लायन यह तीर्थ क्षेत्रों को टूरिजम क्षेत्रों में जाने के लिए सुविधा और शानदार बनने वाली है। आज कच्छ की रेल कनेक्टिविटी उसका भी विस्तार हुआ है, यह कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट सौराष्ट्र के, कच्छ के और कच्छ अब टूरिजम के लिए देशभर का आकर्षण बन चुका है। देशभर के लोगों को कच्छ के टूरिजम और कच्छ के उद्योग के लिए देर हो जाएगी एेसी चिंता सताती है, और लोग दौड़ रहे हैं।

साथियों,

जैसे-जैसे भारत का विकास हो रहा है, दुनिया में भारत का गौरव बढ रहा है। पूरा विश्व भारत को नई आशा से देख रहा है, एक नई दृष्टि दुनियाँ में भारत को देखने के लिए बन रही है। भारत के सामर्थ्य की लोगों में पहचान होने लगी है। और आज पूरी दुनिया भारत की बात गंभीरता से सुन रही है, ध्यान से सुन रही है। और सभी लोग भारत के अंदर क्या संभावनाए हैं उसकी चर्चा कर रहे हैं। और उसमें गुजरात की भूमिका तो है ही, गुजरात ने दुनिया को दिखाया है कि भारत के शहरों में गांव कितने सामर्थ्य से भरा पडा है। कुछ दिन पहले, पिछले सप्ताह में रूस में ब्रिक्ससम्मेलन में भाग लेने गया वहाँ दुनिया के कई देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति थे उनके साथ शांति से बातचीत करने का मौका मिला और सभी की एक ही बात थी, हमें भारत के साथ जुड़ना है। हमें भारत की विकास यात्रा में भागीदार बनना है। सभी देश भारत में निवेश की क्या संभावना है, वह पूछ रहे हैं। मैं रूस से वापस आया तो जर्मनी के चांसलर वह दिल्ली आए और उनके साथ बडा डेलिगेशन लेकर आए, पूरे एशिया में जो उद्योगपति जो निवेश करते हैं जर्मनी के लोग उन सभी को दिल्ली साथ लेकर आए। और उन सभी को कहा कि साहब आप सभी ये मोदी साहब को सुनो और आप सभी तय करो कि आप को भारत में क्या करना है। उसका अर्थ यह हुआ कि जर्मनी भी बडे़ पैमाने पर भारत में निवेश करने के लिए उत्सुक है। इतना ही नहीं उन्होंनें एक महत्वपूर्ण बात कही है जो अपने नवयुवानों को काम में आनेवाली है। पहले जर्मनी 20 हजार वीजा देता था, उन्होंने आकर जाहिर किया कि हम 90 हज़ार वीजा देंगे और हमें नवयुवान चाहिए, हमारी फैक्ट्री में हमें मैन पावर की जरुरत है। और भारत के नवयुवानों की ताकत इतनी है और भारत के लोग कायदे का पालन करने वाले लोग हैं, सुख-शांति से मिल जुलकर रहने वाले है लोग हैं। हमें यहां 90 हजार लोगों की जरुरत है, और हर साल 90 हजार लोगों को वीजा देने की उन्होंने घोषणा की है। अब अवसर अपने लोगों के हाथ में है कि उनकी आवश्यकता के मुताबिक हम तैयारी करें। आज स्पेन के प्रेसिडेंट यहाँ थे, स्पेन, भारत में इतना बडा निवेश करें, आज बड़ोदा में ट्रांसपोर्ट बनाने की फैक्ट्री इसके कारण गुजरात के छोटे-छोटे उद्योग को बहुत बडा लाभ होगा। इस एयरक्राफ्ट में राजकोट की जो छोटी-छोटी फैक्ट्रियां, छोटे-छोटे ओजार बनाती हैं, वह भी वहाँ बनके जानेवाले हैं। गुजरात के कोने- कोने से छोटे-छोटे से लेथ मशीन पर काम करने वाले लोग भी छोटे-छोटे पुर्जों बनाकर देंगे न, क्योंकि हजारों पुर्जे लगते हैं एक एयरक्राफ्ट में और एक-एक फैक्ट्री, एक-एक पुर्जे की मास्टरी रखती है। यह काम पूरे सौराष्ट्र में जहाँ लघु उद्योग की जो संचरना है ना…उसके लिए तो पांचों उंगलियां घी में है भाई, इसके कारण रोजगार के कई अवसर आनेवाले हैं।

साथियों,

यहाँ जब गुजरात के अंदर रहकर मुझे अवसर मिला था आपकी सेवा में जब व्यस्त था तब गुजरात के विकास के साथ देश का विकास, और मेरा तो मंत्र था भारत के विकास के लिए गुजरात का विकास, विकसित गुजरात विकसित भारत इस सपने को साकार करने के रास्ते को मजबूत करने का कार्य करता है।

साथियों,

आज काफी समय के बाद पुराने कई साथियों के बीच आना हुआ है। सभी पुराने चेहरे देख रहा हूं, सभी मुस्कुरा रहे हैं, आनंद-आनंद आ रहा है। फिर एक बार, और मैं अपने सवजीभाई को कहता हूं कि आपने अब सूरत जाना बंद करों और यह पानी-पानी ही कहा करो बहु सुरत किया अब माटी उठाओ और गुजरात के कोने-कोने में पानी पहुचाओं। 80/20 की योजनाओं का पूरा लाभ गुजरात को दो, मेरी आप सभी को बहुत- बहुत शुभकामनाएँ।

मेरे साथ बोलिए-

भारत माता की जय ।

भारत माता की जय ।

भारत माता की जय ।

धन्यवाद दोस्तो ।

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