संसदीय प्रश्न: कृषि और खाद्य संरक्षण के लिए नाभिकीय विज्ञान
संसदीय प्रश्न: कृषि और खाद्य संरक्षण के लिए नाभिकीय विज्ञान
परमाणु ऊर्जा विभाग (डी ए ई ) की वैधानिक इकाई भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बी ए आर सी ) ने विकिरण प्रेरित उत्परिवर्तन के साथ-साथ संकर प्रजनन का उपयोग करके तिलहन (मूंगफली, सरसों, सोयाबीन और सूरजमुखी), दालें (उड़द, मूंग, अरहर और लोबिया), चावल, जूट और केला में 72 सुधरे हुए फसल किस्में विकसित की हैं, जिन्हें वाणिज्यिक खेती के लिए जारी और अधिसूचित किया गया है। इन फसल किस्मों में उच्च उपज, शीघ्र पकाव, लटकने के प्रतिरोध, जैविक एवं अजैविक तनाव सहनशीलता इत्यादि वांछनीय गुण हैं जिससे देश के किसानों को काफी लाभ पहुंचा रहा है।
पिछले पांच (5) वर्षों (अर्थात् 2020-2025) में, विकिरण प्रेरित उत्परिवर्तन का उपयोग करके, परमाणु ऊर्जा विभाग ने किसानों द्वारा खेती के लिए कुल 23 किस्में विकसित और जारी की हैं। इनमें शामिल हैं (a) 7 चावल की किस्में, (b) 5 सरसों की किस्में, (c) 3 उड़द (काली उड़द) की किस्में, (d) 3 ज्वार की किस्में, (e) 2 मूंगफली की किस्में, (f) एक मूंग की किस्म, (g) एक तिल की किस्म और (h) एक केले की किस्म।
पिछले पांच वर्षों में, ट्रॉम्बे फसल किस्मों के बीजद्रव्य के कुल 1680 क्विंटल उत्पादित किए गए, जिनमें मूंगफली, मूंग, चावल और सरसों की किस्में शामिल हैं। इन्हें देश के बीज निगमों/कंपनियों और किसानों को वितरण के लिए उपलब्ध कराए गए ताकि किसानों द्वारा खेती के लिए इनका उपयोग किया जा सके।
देश में कृषकों के लिए खेती के उद्देश्य से उपलब्ध बीजों की अनुमानित मात्रा लगभग 18,05,300 क्विंटल है। ये अनुमान, ब्रिडर बीजों से फाउंडेशन बीजों के उत्पादन तथा तत्पश्चात फाउंडेशन बीजों से प्रमाणित बीजों के उत्पादन के दौरान देखे गए अपेक्षित गुणन अनुपातों के आधार पर लगाए गए हैं।
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बी ए आर सी ) द्वारा विकसित विकिरण-आधारित खाद्य संरक्षण तकनीकें, जिनमें विकिरण (इर्रेडिएशन) और तत्पश्चात शीत भंडारण शामिल हैं, इनका उपयोग नाशवान कृषि उत्पादों की शेल्फ लाइफ बढ़ाने, कटाई के बाद तथा भंडारण के दौरान होने वाले नुकसानों को कम करने के लिए किया जा रहा है। अनाज एवं मसालों का विकिरण कीटों एवं सूक्ष्मजीवों को नष्ट करने वाली रसायन-मुक्त संरक्षण की एक उपयोगी विधि है। यह तकनीक निम्नलिखित को सुगम बनाने के लिए उपयोग में लाई जा रही है;
कृषि उत्पादों जैसे आम, अनार आदि का संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों को समुद्री मार्ग के माध्यम से किफायती तरीके से निर्यात।
मसालों, अनाज, सब्जियों, फलों, प्याज और आलू की शेल्फ लाइफ में वृद्धि।
प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों की शेल्फ लाइफ में वृद्धि।
देश में निजी/राज्य सरकार क्षेत्रों में कुल इकतालीस (41) खाद्य विकिरण तथा चिकित्सा उत्पाद नसबंदी सुविधाओं की स्थापना पहले ही की जा चुकी है और ये मांग के आधार पर विकिरण प्रसंस्करण सेवाएं प्रदान कर रही हैं।
परमाणु ऊर्जा विभाग कृषि क्षेत्र में विकिरणों और रेडियोआइसोटोप के उपयोग में निरंतर अनुसंधान एवं विकास (R&D) कार्यक्रमों के माध्यम से संलग्न है। नाभिकीय कृषि के क्षेत्र में, विकिरण प्रेरित उन्नत फसल किस्मों का विकास एवं फील्ड परीक्षण विभिन्न राज्य कृषि विश्वविद्यालयों तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर ) के अंतर्गत अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से लागू किए जा रहे हैं।
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित विकिरण तकनीकें न केवल शेल्फ लाइफ बढ़ाती हैं और कटाई के बाद होने वाले नुकसानों को रोकती हैं, बल्कि भारत को नाशवान वस्तुओं के लिए अंतरराष्ट्रीय क्वारंटाइन आवश्यकताओं को पूरा करने में भी सहायता करती हैं, जिससे उच्च मूल्य वाले बाजारों तक पहुंच संभव हो पाती है।
भारत संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और मलेशिया को आम और अनार का निर्यात विकिरण को अनिवार्य फाइटोसैनिटरी उपचार के रूप में उपयोग करके कर रहा है। ये उपाय निर्यात-उन्मुख मूल्य श्रृंखलाओं को मजबूत करते हैं तथा किसानों और व्यापारियों की आय में वृद्धि करते हैं।
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र कृषि उत्पादों के विकिरण के लिए व्यापक मानक संचालन प्रक्रियाएं (SOPs) विकसित करने में संलग्न है ताकि शेल्फ लाइफ में वृद्धि, कटाई के बाद नुकसानों में कमी तथा इसके विपणन में सुधार हो सके।
कुल मिलाकर, सरकार की पहलों, जिसमें शोध व विकास सहयोग, विकिरण अवसंरचना की स्थापना तथा निर्यात-उन्मुख विकिरण प्रसंस्करण का प्रोत्साहन शामिल है, इससे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने, अपव्यय को कम करने, किसानों की आय में सुधार लाने तथा वैश्विक कृषि व्यापार में भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने में मदद मिली है।