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संविधान दिवस पर संविधान सदन में उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ

संविधान दिवस पर संविधान सदन में उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ

माननीय राष्ट्रपति जी, माननीय प्रधानमंत्री जी, माननीय लोकसभा अध्यक्ष जी, माननीय केन्द्रीय मंत्रीगण, दोनों सदनों के माननीय विपक्ष के नेता, माननीय राज्यसभा के उपसभापति जी, संसद के गणमान्य सदस्यगण और प्रिय नागरिकगण।

वर्ष 1949 में इसी दिन स्वतंत्र भारत की संविधान सभा द्वारा हमारे पवित्र संविधान को अपनाया गया था। मैं अपने सभी प्रिय भारतवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।

वर्ष 2015 से, हम हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने लगे हैं। यह अब हमारी मातृभूमि के प्रत्येक नागरिक का उत्सव बन गया है।

असाधारण नेताओं, बाबासाहेब डॉ. भीम राव अंबेडकर जी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी, श्री एन. गोपालास्वामी अयंगर जी, श्री अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर जी, श्री दुर्गा बाई देशमुख जी और अन्य महान नेताओं ने इस संविधान को इस तरह बनाया कि इसके हर पृष्ठ में हमें अपने राष्ट्र की आत्मा दिखाई देती है।

हमारे संविधान का निर्माण, उस पर बहस और उसे संविधान सभा में मां भारती के कुछ सर्वश्रेष्ठ नेताओं द्वारा अपनाया गया। यह स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हमारे लाखों देशवासियों के सामूहिक ज्ञान, त्याग और सपनों का प्रतीक है।

प्रारूप समिति के प्रखर विद्वानों और संविधान सभा के सदस्यों ने करोड़ों भारतीयों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपने गहन विचार प्रस्तुत किए। उनके नि:स्वार्थ योगदान ने भारत को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र बनाया है।

हमारा संविधान बौद्धिकता, जीवन के अनुभवों, त्याग, आशाओं और आकांक्षाओं से जन्मा है। हमारे संविधान की आत्मा ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारत एक है और सदैव एक रहेगा।

व्यावहारिक और संतृप्तिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाकर हम कई विकास संकेतकों पर अच्छा प्रदर्शन कर पाए हैं। आज हम दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं और बहुत जल्द तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे। इसीलिए दुनिया अब हमारी ओर देख रही है।

पिछले 10 वर्षों में 25 करोड़ गरीब लोगों को गरीबी से मुक्ति मिली है। यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। डिजिटल तकनीक की मदद से 100 करोड़ लोगों को विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ मिला है। हमने असंभव को भी संभव कर दिखाया है।

इस वर्ष हमने सरदार वल्लभभाई पटेल जी, भगवान बिरसा मुंडा जी की 150वीं जयंती और हमारे देशभक्तिपूर्ण राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की जयंती मनाई।

हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान और पीड़ा ने हमें प्रेरित किया है और आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करता रहेगा। इससे देश के युवा मन में देशभक्ति, गर्व और निष्ठा की भावना को बढ़ावा मिलता है।

लोकतंत्र भारत के लिए कोई नई अवधारणा नहीं है। इतिहास गवाह है कि उत्तर में वैशाली जैसे स्थानों में लोकतंत्र पहले से ही विद्यमान था और दक्षिण में चोल शासकों ने “कुदावोलाई” प्रणाली अपनाई थी। इसलिए, हम भारत को लोकतंत्र की जननी कहते हैं।

कोई भी लोकतंत्र, नागरिकों के सचेत योगदान के बिना जीवित नहीं रह सकता। हमारे देश में हर नागरिक, चाहे वो अमीर हो या गरीब, लोकतंत्र को मजबूत करने में हमेशा अपना योगदान देता है।

अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद 2024 में जम्मू-कश्मीर में होने वाले चुनावों में बड़ी संख्या में मतदाताओं का मतदान, लोकतंत्र में उनकी आस्था को दर्शाता है। हाल ही में संपन्न बिहार चुनावों में, मतदाताओं का विशेषकर महिलाओं का बड़ी संख्या में मतदान करना एक बहुत ही शुभ संकेत है।

हम सभी की ओर से मैं संविधान सभा की महिला सदस्यों के योगदान को नमन करता हूं। मैं हंसा मेहता जी के इन शब्दों को उद्धृत करता हूं, “हमने जो मांगा है, वह है सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय और राजनीतिक न्याय।”

वर्ष 2023 में अधिनियमित नारी शक्ति वंदन अधिनियम संविधान सभा की महिला सदस्यों और हमारी मातृभूमि की महिलाओं के योगदान के लिए एक उचित श्रद्धांजलि है।

यह अधिनियम हमारी माताओं और बहनों को आगे आने और राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए समान अवसर प्रदान करेगा ताकि हम सबसे शक्तिशाली देश बन सकें।

झारखंड, महाराष्ट्र और तेलंगाना के राज्यपाल के रूप में मुझे जनजातीय समुदायों के साथ बातचीत करने का सौभाग्य मिला।

स्वतंत्रता आंदोलन और संविधान सभा में जनजातीय समुदायों तथा उनके नेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका और बलिदान को कोई नहीं भूल सकता।

यह गर्व की बात है कि वर्ष 2021 से हमने स्वतंत्रता आंदोलन में जनजातीय नेताओं और समुदाय के बलिदान तथा संघर्ष को याद करने एवं मान्यता देने के लिए जनजातीय गौरव दिवस मनाना शुरू किया है।

हमारा संविधान अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, पिछड़े वर्गों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के सदस्यों के सामाजिक न्याय और आर्थिक सशक्तीकरण के प्रति हमारी मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

हम सभी को अपने संविधान पर गर्व है; यह समावेशी भावना से ओतप्रोत है। इसकी प्रस्तावना में न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्श यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक नागरिक – चाहे वह किसी भी जाति, पंथ, लिंग, भाषा, क्षेत्र या धर्म का हो – भारत की धरती पर अपना उचित स्थान प्राप्त करे।

संविधान सभा के सदस्यों ने दो वर्ष, ग्यारह महीने की अवधि में एक ही लक्ष्य के साथ बहस और चर्चा की – हमारी मातृभूमि के लिए एक ऐतिहासिक संविधान का निर्माण करना।

हमारे संविधान निर्माताओं की इसी भावना के साथ हमें अब इस अमृत काल में विकसित भारत के लक्ष्य की दिशा में काम करना चाहिए।

वैश्विक स्तर पर बदलते आर्थिक और भू-राजनीतिक परिदृश्य में हम सभी को जीवन के कई क्षेत्रों में सुधारों की आवश्यकता है। चुनाव सुधार, न्यायिक सुधार और वित्तीय सुधार अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

एक राष्ट्र-एक कर, यानी जीएसटी ने लोगों की समृद्धि में इज़ाफ़ा किया है और व्यापार को आसान बनाया है। इसने जटिल बहुल-कर व्यवस्था और रातोंरात देश की तमाम जांच चौकियों को हटाने का रास्ता साफ़ कर दिया है। इससे यह साबित होता है कि सरकार को आम आदमी पर कितना भरोसा है।

इसी तरह, जन-धन, आधार और मोबाइल (जेएएम) ने हमारे करोड़ों नागरिकों के जीवन को आसान बनाया है। प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) ने यह सुनिश्चित किया है कि लाभ देश के सुदूर इलाकों में रहने वाले अंतिम व्यक्ति तक सीधे पहुंचें। सरकार और लाभार्थी के बीच कोई नहीं रहे।

हम सभी को विकसित भारत के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आधुनिक आईटी प्रौद्योगिकियों का रचनात्मक सोच के साथ उपयोग करना चाहिए।

कोई भी देश जनता के योगदान के बिना महान नहीं बन सकता; हमें कर्तव्यबोध के साथ अपनी-अपनी भूमिकाएं निभानी होंगी।

जन प्रतिनिधि के रूप में यह हमारा प्रमुख कर्तव्य है कि हम, चाहे वह संसद हो या राज्य विधानमंडल या स्थानीय निकाय, लोगों की उचित आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए संवाद, बहस और चर्चा को अपनाएं।

इस दिन हमारे विशिष्‍ट संविधान के प्रति सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही है कि हम उसके मूल्यों के अनुरूप जीवन जीने का संकल्प लें।

जय हिंद! भारत माता की जय!

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