लोक अदालतें: जो जनता के लिए न्याय की आवाज़ बनीं
लोक अदालतें: जो जनता के लिए न्याय की आवाज़ बनीं
मुख्य बातें
परिचय: जहां लोगों को न्याय मिलता है, उम्मीद वहीं मुखर होती है
एक शांत शनिवार की सुबह,एक छोटे से ज़िले में आम तौर पर शांत रहने वाले न्यायालय परिसर में एक अलग ही तरह की ऊर्जा का संचार हो रहा है। बाहर,आपको दिखते हैं ज़मीन विवादों में उलझे किसान,भुगतान संबंधी समस्याओं को सुलझाने में लगे दुकानदार,लंबे समय से लंबित दावों का निपटारे मेंं लगे परिवार और फाइलों की छानबीन कर रहे बैंक अधिकारी। ये सभी लोग यहां एक साझी उम्मीद में एकत्रित हुए हैं कि उनका वर्षों का इंतजार आखिरकार अब खत्म हो सकता है। यहां ना तो अदालत का कोई तनावपूर्ण ड्रामा है और ना ही कोई जटिल कानूनी शब्दावली। इसकी बजाय, यहां संवाद है,समझौता है, और इस बात की राहत का अहसास भी कि न्याय वास्तव में इतना सहज हो सकता है।
यही लोक अदालत की भावना है,जो भारत का जन-केंद्रित मंच है जहाँ विवादों का निपटारा आरोप-प्रत्यारोप से नहीं,बल्कि आम सहमति से होता है। लोक अदालतें भारत में विवाद सुलझाने की सबसे भरोसेमंद वैकल्पिक व्यवस्थाओं में से एक बन गई हैं। चाहे इनका आयोजन अदालत परिसर में हो, सामुदायिक सभाओं में हो या ई-लोक अदालतों के जरिये ऑनलाइन हो, ये न्याय को नागरिकों के करीब लाती हैं,समय बचाती हैं,खर्च कम करती हैं और अदालतों पर बोझ घटाती हैं। औपचारिक अदालतों के विपरीत,लोक अदालतें अनौपचारिक, मैत्रीपूर्ण मंच हैं जहाँ पक्षकार एक साथ बैठकर ऐसे समाधान निकालने की कोशिश करते हैं जिन्हें दोनों पक्ष स्वीकार कर सकें। यहां कोई अदालती शुल्क नहीं है,कोई जटिल प्रक्रिया नहीं है और न ही कोई हारने या जीतने वाला होता है। इस प्रयास का उद्देश्य यह तय करना नहीं है कि कौन सही है,बल्कि लोगों को एक व्यावहारिक,निष्पक्ष और शीघ्र समाधान तलाशने में मदद करना है ताकि वे अपने जीवन में आगे बढ़ सकें।
वैधानिक आधार: विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम,1987
लोक अदालतें अचानक अस्तित्व में नहीं आईं,बल्कि ये एक व्यापक राष्ट्रीय संकल्प से विकसित हुईं,जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि प्रत्येक व्यक्ति,चाहे उसकी आय या पृष्ठभूमि कुछ भी हो,वह गरिमा के साथ न्याय प्राप्त कर सके।
इस संकल्प को विधि सेवा प्राधिकरण अधिनियम,1987 के माध्यम से एक ठोस कानूनी रूप दिया गया। यह एक ऐतिहासिक कानून है जिसने मुफ्त कानूनी सहायता और वैकल्पिक विवाद समाधान व्यवस्था की बिखरी हुई पहलों को एक सुव्यस्थित,राष्ट्रव्यापी प्रणाली में बदल दिया।
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के प्रमुख कानूनी प्रावधान
विभिन्न स्तरों (राज्य, जिला, तालुक, उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय) पर लोक अदालतों की स्थापना सुलभ विवाद समाधान के लिए एक राष्ट्रव्यापी,संस्थागत ढांचा सुनिश्चित करती है।
अदालत में लंबित मामलों या मुकदमे से पहले के मामलों को लोक अदालतों में भेजने से से लंबी मुकदमेबाजी के बिना शीघ्र समाधान का विकल्प सुनिश्चित होता है।
लोक अदालतें सुलह मॉडल पर कार्य करती हैं, जिसमें सहयोगात्मक और गैर-प्रतिद्वंद्वात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाता है।
मामला सुलझने पर पहले से भुगतान की गई अदालती फीस वापस कर दी जाती है जिससे वादियों को मामले के निपटारे में प्रोत्साहन मिलता है और राहत महसूस होती है।
लोक अदालत का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होता है, जिसे दीवानी न्यायालय के फैसले के समान माना जाता है और शीघ्र अंतिम निर्णय और अनुपालन के लिए किसी अपील की अनुमति नहीं है।
सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं के लिए स्थायी लोक अदालतों की स्थापना और क्षेत्राधिकार से शीघ्र समाधान प्राप्त होते हैं।
संस्थागत संरचना: राष्ट्रीय स्तर से तालुक स्तर तक का ढांचा
लोक अदालत प्रणाली की ताकत इसके चार स्तरीय ढांचे में निहित है, जो सर्वोच्च न्यायालय से लेकर तालुक न्यायालयों तक, शासन के हर स्तर पर नागरिकों तक पहुंचती है। यह संस्थागत ढांचा सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति शीघ्र, किफायती और सुलहपूर्ण न्याय के मंच से वंचित न रहे। यह ढांचा विधिक सेवा प्राधिकरणों की एक समन्वित शृंखला के माध्यम से संचालित होता है, जिससे स्थानीय आवश्यकताएं पूरी होती हैं और राष्ट्रव्यापी एकरूपता सुनिश्चित होती है।
चार स्तरीय सांगठनिक ढांचा
स्तर एवं नेतृत्व
प्रमुख कार्य
भारत के मुख्य न्यायाधीश के अंतर्गत राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए)
नीतिगत दिशा-निर्देश, नियमन, राष्ट्रीय लोक अदालत कैलेंडर, निगरानी एवं समन्वय।
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं कार्यकारी अध्यक्ष के अंतर्गत राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (एसएलएसए)
एनएएलएसए नीति का कार्यान्वयन, लोक अदालतों का आयोजन (उच्च न्यायालय के मामलों सहित), कानूनी सहायता उपलब्ध कराना, निवारक कानूनी सेवाएं।
जिला एवं सत्र न्यायाधीश के अंतर्गत जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए)
तालुक विधिक सेवा समिति (टीएलएससी) के साथ समन्वय, जिला स्तरीय लोक अदालतों का आयोजन, कानूनी सहायता प्रबंधन एवं स्थानीय कार्यान्वयन।
सबसे वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी के अंतर्गत जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए)
तालुका/मंडल में लोक अदालतों का संचालन, जमीनी स्तर पर कानूनी सहायता, नागरिकों तक पहली पहुंच।
इस ढांचे के माध्यम से, सरल, समयबद्ध और जन-केंद्रित न्याय का वादा लाखों लोगों के लिए एक व्यावहारिक वास्तविकता बन जाता है।
राष्ट्रीय लोक अदालतें (एनएलए): एक मिशन–आधारित न्याय उपलब्धता तंत्र
लोक अदालतें विभिन्न कार्यक्षेत्रों में पूरे वर्ष संचालित होती हैं। राष्ट्रीय लोक अदालतें न्यायपालिका के सभी स्तरों पर एक ही दिन में एक साथ राष्ट्रव्यापी बैठकें आयोजित करती हैं और इसका उद्देश्य बड़ी संख्या में मामलों का समयबद्ध तरीके से निपटारा करना होता है। राष्ट्रीय लोक अदालत की सामान्य प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि संबंधित पक्षों को मामला भेजे जाने से पहले सुनवाई का उचित अवसर मिले। मामले (मुकदमे से पहले के और लंबित दोनों प्रकार के) लोक अदालतों को या तो न्यायालय द्वारा या विधिक सेवा प्राधिकरण (एसएलएसए या डीएलएसए) द्वारा भेजे जाते हैं। न्यायालय किसी लंबित मामले को तब भेज सकता है जब दोनों पक्ष सहमत हों,एक पक्ष आवेदन करे और न्यायालय को निपटारे की गुंजाइश दिखे, या न्यायालय स्वयं मामले को उपयुक्त पाए। मुकदमे से पहले के विवाद भी किसी भी पक्ष के आवेदन पर भेजे जा सकते हैं।
कोविड-19 के दौरान भी, इस कैलेंडर-आधारित प्रणाली का शीघ्र अनुकूलन हो पाया जिससे ई-लोक अदालतों का उदय हुआ, जिन्होंने दूरस्थ भागीदारी को सक्षम बनाया और न्याय को सीधे लोगों के घरों तक पहुँचाया।
इतने बड़े पैमाने पर लोक अदालतों का आयोजन वैश्विक न्याय व्यवस्था में अद्भुत है। हजारों बेंच एक ही दिन काम करते हैं, न्यायिक अधिकारियों, मध्यस्थों, अर्ध-कानूनी स्वयंसेवकों और कर्मचारियों के सहयोग से, सामान्य अदालत परिसरों को समाधान और समझौते के हलचल भरे केंद्रों में बदल दिया जाता है।

इन मिशन के अंदाज में चलाये जा रहे प्रयासों के परिणाम असाधारण रहे हैं। ये महज़ आंकड़े नहीं हैं,बल्कि ये दर्शाते हैं कि परिवारों को राहत मिली है, छोटे व्यापारियों ने अपने विवाद सुलझाए हैं,दुर्घटना पीड़ितों को मुआवज़ा मिला है,और अनगिनत वादियों को लंबे समय से चले आ रहे लंबित मामलों से राहत मिली है जिनमें उनका समय,संसाधन और भावनाएं बर्बाद हो रही थीं।
राष्ट्रीय लोक अदालतें दिखाती हैं कि जब न्याय प्रणाली अभियान का रूप लेती है तो क्या संभव है: संवेदनशीलता के साथ गति,निष्पक्षता के साथ व्यापकता,और करुणा पर आधारित दक्षता मिलती है।
राष्ट्रीय लोक अदालत : रूपरेखा
स्थायी लोक अदालतें (पीएलए): सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं में शीघ्र राहत सुनिश्चित करना
मुकदमेबाजी से पहले सुलह और निपटारे के लिए समर्पित एक विशेष मंच के रूप में,स्थायी लोक अदालतें (पीएलए) सेवा संबंधी रोजमर्रा के विवादों को सुलझाने के लिए एक महत्वपूर्ण तंत्र के रूप में उभरी हैं। विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम,1987 के तहत स्थायी लोक अदालतें (धारा 22बी-22ई) परिवहन, दूरसंचार, बिजली,जल आपूर्ति और डाक सेवाओं जैसे सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं से जुड़े विवादों का समाधान करती हैं।
नियमित लोक अदालतों के विपरीत,ये निकाय स्थायी मंच के रूप में मौजूद हैं,जिनके पास न केवल सुलह करने का बल्कि निपटारे में विफल रहने पर विवादों के निर्णय करने का भी अधिकार है,जिससे निश्चितता और समाधान सुनिश्चित होता है। स्थायी लोक अदालत का निर्णय अंतिम और सभी पक्षों पर बाध्यकारी होता है।

कामकाज का संक्षिप्त विवरण: लाखों जिंदगियां, अनगिनत समाधान
भारत भर में लोक अदालतों ने हाल के वर्षों में त्वरित, किफायती और सुलभ न्याय प्रदान करना जारी रखा है। राष्ट्रीय,राज्य और स्थायी लोक अदालतों के साथ-साथ डिजिटल ई-लोक अदालतों ने मिलकर मुकदमे से पहले के मामलों से लेकर अदालत के लंबित मामलों तक के विवादों का समाधान किया है। उनके संयुक्त प्रयासों से पारंपरिक अदालतों पर बोझ काफी कम हुआ है, साथ ही यह सुनिश्चित हुआ है कि नागरिकों को समय पर समाधान मिले और ऐसे निर्णय प्राप्त हों जो बाध्यकारी हों। इस समग्र प्रयास से वैकल्पिक विवाद समाधान में जनता का विश्वास बढ़ा है और मुकदमा करने वालों और न्याय व्यवस्था दोनों के लिए समय और संसाधनों की अच्छी खासी बचत हुई है। सुलझाये गये मामलों की बड़ी संख्या से भी यही प्रदर्शित होता है।
निष्कर्ष: विवादों का समाधान, विश्वास का पुनर्निर्माण, जीवन में नयापन
देश भर की अदालत परिसरों में लोक अदालतों के व्यस्त दिन के बाद जब दिन ढल रहा होता है,तो वातावरण में एक शांत संतोष का भाव व्याप्त होता है। लोक अदालतें और स्थायी लोक अदालतें,जिसमें अब ई-लोक अदालतें भी शामिल हैं ,ये दर्शाती हैं कि न्याय दूरस्थ या भयभीत करने वाला नहीं होना चाहिए। यह सुलभ,संवेदनशील और सशक्त बनाने वाला हो सकता है। प्रत्येक समाधान समझदारी की एक कहानी है,प्रत्येक सुलझा हुआ मामला नागरिकों और व्यवस्था के बीच विश्वास की बहाली का मौका है।
संदर्भ
Ministry Of Law & Justice:
https://nalsa.gov.in/lok-adalats/
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2100326®=3&lang=2
https://doj.gov.in/access-to-justice-for-the-marginalized/
https://nalsa.gov.in/faqs/#1743592297157-684e9890-2d0b
https://nalsa.gov.in/faqs/#1743592298196-ba4b10d1-37f2
https://nalsa.gov.in/national-lok-adalat/
https://nalsa.gov.in/permanent-lok-adalat/
https://nalsa.gov.in/the-legal-services-authorities-act-1987/
https://nalsa.gov.in/lokadalats/#:~:text=Lok%20Adalat%20is%20one%20of,Legal%20Services%20Authorities%20Act%2C%201987
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1848734®=3&lang=2
https://cdnbbsr.s3waas.gov.in/s39f329089b8d9644b96ba05d545355d67/uploads/2025/06/202506042007507813.pdf
Lok Sabha:
https://sansad.in/getFile/loksabhaquestions/annex/184/AU4710_TmG1Ss.pdf?source=pqals
Press Information Bureau:
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2187718®=3&lang=2
Others: