लोकसभा में चली बहस में डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि शांति विधेयक में मजबूत सुरक्षा और दायित्व से जुड़े सुरक्षात्मक उपाय कायम हैं
लोकसभा में चली बहस में डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि शांति विधेयक में मजबूत सुरक्षा और दायित्व से जुड़े सुरक्षात्मक उपाय कायम हैं
केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने मंगलवार को लोकसभा में स्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांस्डमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया विधेयक, 2025 पर हुई बहस का जवाब देते हुए सदस्यों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं का समाधान किया और एक व्यापक नए परमाणु कानून को पेश करने के पीछे सरकार के तर्क को स्पष्ट किया। सभी दलों द्वारा उठाये गए मुद्दों का जवाब देते हुए, केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि यह विधेयक समकालीन तकनीकी, आर्थिक और ऊर्जा संबंधी वास्तविकताओं के अनुरूप भारत के परमाणु ढांचे का आधुनिकीकरण करेगा और साथ ही 1962 के परमाणु ऊर्जा अधिनियम के बाद से लागू मूलभूत सुरक्षा, संरक्षा एवं नियामक संबंधी उपायों को बनाए रखते हुए उन्हें मजबूत भी करेगा।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि प्रस्तावित कानून मौजूदा कानूनों को सुदृढ़ करता है और परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड, जो अब तक कार्यकारी आदेश के माध्यम से कार्य करता था, को वैधानिक दर्जा देकर नियामक ढांचे को उन्नत बनाता है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि सुरक्षा संबंधी मानदंड, विखंडनीय पदार्थ, प्रयुक्त ईंधन और भारी जल पर सुरक्षा नियंत्रण एवं आवधिक निरीक्षण निजी भागीदारी के बावजूद सरकार की पूर्ण निगरानी में रहेंगे। केन्द्रीय मंत्री ने स्पष्ट किया कि निजी संस्थाओं का संवेदनशील पदार्थों पर कोई नियंत्रण नहीं होगा और प्रयुक्त ईंधन का प्रबंधन दशकों से चली आ रही प्रणाली के अनुसार सरकार द्वारा ही किया जाता रहेगा।
बहस के केन्द्रीय विषय, दायित्व के बारे में बोलते हुए, केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि यह विधेयक पीड़ितों को मिलने वाले मुआवजे को कम नहीं करता है। उन्होंन स्पष्ट किया कि रिएक्टर के आकार से जुड़ी श्रेणीबद्ध सीमाओं के माध्यम से संचालक के दायित्व को तर्कसंगत बनाया गया है ताकि छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर जैसी नई तकनीकों को प्रोत्साहित किया जा सके और साथ ही यह सुनिश्चित किया जा सके कि बहुस्तरीय तंत्र के माध्यम से प्रभावित व्यक्तियों को पूर्ण मुआवजा उपलब्ध हो। इसमें संचालक का दायित्व, सरकार द्वारा समर्थित प्रस्तावित परमाणु दायित्व कोष और पूरक मुआवजे से जुड़ी संधि में भारत की भागीदारी के माध्यम से अतिरिक्त अंतरराष्ट्रीय मुआवजा शामिल है। उन्होंने कहा कि वैश्विक कार्यप्रणालियों और रिएक्टर की सुरक्षा में हुई प्रगति पर विस्तृत विचार-विमर्श के बाद आपूर्तिकर्ता के दायित्व को हटा दिया गया है, जबकि लापरवाही और दंडात्मक प्रावधान इस कानून के तहत लागू रहेंगे।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस धारणा को भी खारिज कर दिया कि यह विधेयक सार्वजनिक क्षेत्र की क्षमता में कमी का संकेत देता है। उन्होंने पिछले एक दशक में परमाणु ऊर्जा विभाग के बजट में लगभग 170 प्रतिशत की वृद्धि और 2014 से स्थापित परमाणु क्षमता के दोगुने होने का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि वैश्विक समकक्षों की तुलना में ऊर्जा संबंधी मिश्रण के मामले में भारत का परमाणु योगदान अभी भी कम है और नवीकरणीय ऊर्जा के साथ-साथ डेटा प्रोसेसिंग, स्वास्थ्य सेवा एवं उद्योग जैसे क्षेत्रों से बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए इसे बढ़ाना आवश्यक है। उन्होंने आगे कहा कि यह विधेयक राष्ट्रीय सुरक्षा या जनहित से समझौता किए बिना, संसाधन संबंधी बाधाओं को दूर करने, परियोजनाओं के निर्माण की अवधि को कम करने और 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु क्षमता के राष्ट्रीय लक्ष्य का समर्थन करने हेतु जिम्मेदार निजी व संयुक्त उद्यम की भागीदारी को संभव बनाता है।
इस विधेयक को व्यापक संदर्भ में रखते हुए, केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि कैंसर के इलाज, कृषि और उद्योग सहित परमाणु ऊर्जा के विभिन्न अनुप्रयोग बिजली उत्पादन से परे जाते हैं। इस विधेयक में पहली बार परमाणु क्षति की परिभाषा में पर्यावरणीय और आर्थिक नुकसान को स्पष्ट रूप से शामिल किया गया है। छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों और अनुसंधान एवं नवाचार के लिए समर्पित निवेश की घोषणा के साथ, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि चूंकि भारत अपनी आजादी की शताब्दी के करीब पहुंच रहा है, प्रस्तावित कानून का उद्देश्य स्वच्छ और विश्वसनीय ऊर्जा के लिए एक अनुकूल वातावरण तैयार करना है और साथ ही परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के प्रति लंबे समय से चली आ रही प्रतिबद्धता को भी कायम रखना है।


