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पंचायती राज के संबंध में डॉ. बलवंत राय मेहता समिति की प्रमुख सिफारिशें

पंचायती राज के संबंध में डॉ. बलवंत राय मेहता समिति की प्रमुख सिफारिशें

पंचायती राज पर डॉ. बलवंत राय मेहता समिति ,1957 की मुख्य सिफारिशें अनुबंध में दी गई हैं। 73वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम लागू होने के बाद, भाग-IX (पंचायतों से संबंधित) को भारत के संविधान में जोड़ा गया है, संविधान के भाग-IX के अंतर्गत आने वाले सभी राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों ने अपने अपने पंचायती राज कानूनों में संशोधन किया है। संविधान के भाग-IX में पंचायती राज पर डॉ. बलवंत राय मेहता समिति की मुख्य सिफारिशों को शामिल किया गया है।

भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची के संदर्भ में पंचायत, ‘स्थानीय सरकार” होने के कारण राज्य का विषय है। पंचायतों को, संविधान के प्रावधानों के अधीन, राज्यों के पंचायती राज अधिनियमों, जो राज्य दर राज्य भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, के अंतर्गत स्थापित और संचालित किया जाता है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 243छ, आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करने के लिए तथा ऐसी स्कीमों के क्रियान्वयन के लिए, किसी भी राज्य के विधान मंडल को, निर्दिष्ट शर्तो के अधीन, उचित स्तर पर पंचायतों को शक्तियों और उत्तरदायित्वों के हस्तांतरण के लिए, कानून द्वारा, प्रावधानों को बनाने का अधिकार देता है। तदनुसार, पंचायतों से संबंधित सभी मामले संबंधित राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

क्षमता निर्माण और वित्तीय सशक्तिकरण सहित, पंचायती राज संस्थाओं(पीआरआई) को मजबूत करने के लिए, पंचायती राज मंत्रालय संशोधित राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (आरजीएसए) को वित्तीय वर्ष 2022-23 से राज्यों/ संघ राज्य क्षेत्रों में लागू कर रहा है जिसका मुख्य उद्देश्य सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों और अन्य हितधारकों को नेतृत्व की भूमिकाओं के लिए अपनी शासन क्षमताओं को विकसित करने के लिए प्रशिक्षण प्रदान करने के माध्यम से पंचायती राज संस्थानों को सक्षम बनाना है ताकि ग्राम पंचायतें प्रभावी ढंग से काम कर सकें | इस योजना के तहत, मंत्रालय ग्राम पंचायतों के प्रभावी कामकाज जैसे कि ग्राम पंचायत भवनों का निर्माण, कंप्यूटर और उत्तर पूर्वी राज्यों पर ध्यान केंद्रित करते हुए ग्राम पंचायत भवनों के साथ जन सेवा केंद्रों (सीएससी) का संयोजन के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए सीमित पैमाने पर राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के प्रयासों को बढ़ावा देता है, जैसा कि राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों ने अपनी वार्षिक कार्य योजनाओं में प्रस्तावित किया और बाद में केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति द्वारा अनुमोदित किया गया। मंत्रालय इस योजना के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए वार्षिक कार्य योजना में अनुमोदित राज्यों, जिला और ब्लॉक स्तर पर परियोजना प्रबंधन इकाइयों (पीएमयू) की स्थापना के लिए संशोधित आरजीएसए की योजना के तहत राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को भी सहायता प्रदान कर रहा है और पंचायतों की क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण का समर्थन करने के लिए राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर के पंचायत संसाधन केंद्रों के रूप में संस्थागत तंत्र की स्थापना भी कर रहा है।

ई-पंचायतों हेतु मिशन मोड परियोजना (एमएमपी-ई-पंचायत) को राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (आरजीएसए) योजना के एक केंद्रीय घटक के रूप में लागू किया जा रहा है, जो जिसके तहत पीआरआई के कामकाज में दक्षता, जवाबदेही और पारदर्शिता लाने के लिए और इसके समग्र परिवर्तन के लिए विभिन्न ई-गवर्नेंस परियोजनाओं को पंचायतों के डिजिटलीकरण की दिशा में वित्त पोषित किया जाता है।

इस मंत्रालय ने एक उपयोगकर्ता के अनुकूल वेब-आधारित पोर्टल ई-ग्रामस्वराज (https://egramswaraj.gov.in) लॉन्च किया है, जिसका उद्देश्य विकेंद्रीकृत योजना, प्रगति रिपोर्टिंग, वित्तीय प्रबंधन, कार्य-आधारित लेखांकन और सृजित संपत्तियों के विवरण में बेहतर पारदर्शिता लाना है। यह पोर्टल सभी पंचायतों को प्रत्येक वर्ष केन्द्रीय वित्त आयोग के अंतर्गत अनुदानों के उपयोग के लिए अपनी योजनाएं तैयार करने और अपलोड करने की सुविधा प्रदान करता है।पंचायतों द्वारा विधिवत अनुमोदित इन योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी प्रत्येक चरण में सिस्टम जनित वाउचर, जियो-टैगिंग और पंचायत प्रधान तथा पंचायत सचिव को सौंपी गई जिम्मेदारियों के माध्यम से की जाती है। राज्यों द्वारा पंचायती राज संस्थाओ को केंद्रीय वित्त आयोग की धनराशि के ऑनलाइन हस्तांतरण और पंचायतों को विक्रेताओं/सेवा प्रदाताओं को वास्तविक समय पर भुगतान करने में सक्षम बनाने के लिए ई-ग्रामस्वराज पोर्टल को सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली के साथ भी एकीकृत किया गया है। पंचायतें अपनी वार्षिक पंचायत विकास योजनाएँ तैयार करके ई-ग्रामस्वराज पोर्टल पर अपलोड करती हैं। इसके अलावा, मंत्रालय ने पंचायत खरीद में पारदर्शिता लाने के लिए ई-ग्रामस्वराज को गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (GeM) के साथ एकीकृत किया है। यह एकीकरण पंचायतों को “वोकल फॉर लोकल” पहल को बढ़ावा देते हुए ई-ग्रामस्वराज प्लेटफॉर्म के माध्यम से GeM द्वारा वस्तुएं और सेवाएं खरीदने की अनुमति देता है। इसी प्रकार, पंचायत निर्णय (NIRNAY) एक ऑनलाइन एप्लिकेशन है जिसका उद्देश्य पंचायतों द्वारा ग्राम सभाओं के संचालन में पारदर्शिता और बेहतर प्रबंधन लाना है।

जहां तक वित्तीय सशक्तिकरण का सवाल है, पंद्रहवें वित्त आयोग के अनुदान 28 राज्यों के ग्रामीण स्थानीय निकायों को प्रदान किए जाते हैं, जिनमे राज्य की जनसंख्या (जनगणना-2011) पर भार 90 प्रतिशत और क्षेत्रफल पर भार 10 प्रतिशत होता है।

राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान एक मांग-आधारित योजना है और योजना के प्रावधानों के अनुसार विभिन्न घटकों के लिए राज्यों को धनराशि आवंटित की गई थी/है। योजना के तहत धनराशि जारी किया जाना विभिन्न कारकों जैसे पंचायत चुनाव का नियमित संचालन, वार्षिक कार्य योजना प्रस्तुत करना, निधि जारी करने का अनुरोध, राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के पास उपलब्ध अव्ययित शेष धनराशि, उपयोगिता प्रमाण पत्र आदि पर निर्भर करता है।

इसके अतिरिक्त, पंचायत खातों के ऑनलाइन ऑडिट और उनके वित्तीय प्रबंधन के लिए एक ऑनलाइन एप्लिकेशन- ‘ऑडिटऑनलाइन’ विकसित किया गया है। ऑडिटऑनलाइन पोर्टल, जो अप्रैल 2020 में लॉन्च किया गया, केंद्रीय वित्त आयोग के धन के उपयोग की पारदर्शी ऑडिटिंग की सुविधा प्रदान करता है और पंचायतों के वित्तीय प्रबंधन को मजबूत करता है।

मंत्रालय ने सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप, 17 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को 9 विषयों में समेकित करके पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) के माध्यम से सतत विकास लक्ष्यों के स्थानीयकरण (एलएसडीजी) की प्रक्रिया का नेतृत्व किया है। इस पहल का उद्देश्य वर्ष 2030 तक सतत विकास एजेंडा को जमीनी स्तर पर प्राप्त करना है। इस विषयगत दृष्टिकोण से वैश्विक लक्ष्यों को स्थानीय शासन संरचनाओं के साथ संरेखित करना आसान हो जाता है, जिससे वे स्थानीय स्तर पर, अर्थात् पंचायत स्तर पर, कार्यान्वयन के लिए अधिक प्रासंगिक और कार्रवाई करने योग्य बन जाते हैं।

पंचायत उन्नति सूचकांक (पीएआई), जिसे इसी वर्ष शुरू किया गया है, ग्राम पंचायत में एलएसडीजी के पूरे होने की वर्तमान स्थिति/स्तर को इंगित करता है और स्थानीय एसडीजी को प्राप्त करने और परिणामस्वरूप एसडीजी 2030 को प्राप्त करने में ग्राम पंचायत द्वारा की गई वृद्धिशील प्रगति को भी मापता है। पंचायत उन्नति सूचकांक (पीएआई) एक बहु-क्षेत्रीय सूचकांक है जिसका उपयोग ग्राम पंचायतों के समग्र विकास, कार्य-निष्पादन और प्रगति को मापने के लिए किया जाता है। पीएआई के उद्देश्यों में से एक विषयगत अंकों के माध्यम से ग्राम पंचायतों के एलएसडीजी के 9 विषयों में विकास में हो रहे अंतर की पहचान करना और विषयगत ग्राम पंचायत विकास योजना की तैयारी के लिए विषयों में संकल्प को प्राथमिकता देते हुए विकास और कार्रवाई संबंधी बिंदुओं के स्थानीय लक्ष्य निर्धारित करके जमीनी स्तर पर साक्ष्य आधारित योजना बनाने के लिए पंचायत को सक्षम बनाना है। पीएआई वित्त वर्ष 2023-24, अर्थात पीएआई 2.0, का कार्य हाल ही में मई 2025 में शुरू किया गया है ।

पंचायती राज मंत्रालय ग्रामीण स्थानीय निकायों को उनके स्वयं की राजस्व स्रोत में वृद्धि करने में सहायता हेतु सक्रिय रूप से शामिल है, जिससे उनकी स्वायत्तता और आत्मनिर्भरता को सुदृढ़ किया जा सके। इसी उद्देश्य से, मंत्रालय ने एक समर्पित पंचायत राजस्व संवर्द्धन प्रकोष्ठ (PREC/OSR सेल) की स्थापना की है और राष्ट्रीय ग्राम स्वराज योजना के तहत एक परियोजना प्रारंभ की है, जिसके अंतर्गत आगामी चार वर्षों में, नवंबर 2025 से शुरू होकर, कुल 350 ग्राम पंचायतों की पहचान कर उन्हें ग्रोथ सेंटर के रूप में विकसित किया जा रहा है। इस पंचायती राज मंत्रालय ने भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद (आईआईएम-ए) के सहयोग से पंचायतों द्वारा स्वयं के स्रोत से राजस्व (ओएसआर) सृजन (जनरेट करने) पर विशेष मॉड्यूल विकसित किया हैं। आईआईएम-ए की टीम द्वारा 31 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के राज्य स्तरीय मास्टर ट्रेनर्स (एसएलएमटी) को ओएसआर प्रशिक्षण के विशेषीकृत मॉड्यूल के आधार पर प्रशिक्षित किया गया है।

पंचायती राज मंत्रालय ने पंचायतों के ओएसआर संग्रह को डिजिटल बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए “समर्थ पंचायत पोर्टल” विकसित किया है। यह एक समर्पित डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म है जो कर और गैर-कर माँगों को सृजन करने, कर रजिस्टरों के रखरखाव और राजस्व की ऑनलाइन ट्रैकिंग की सुविधा प्रदान करता है। यह डिजिटल सशक्तिकरण स्थानीय वित्तीय प्रशासन में पारदर्शिता, दक्षता और विस्तारशीलता लाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

अनुबंध

पंचायती राज के संबंध में डॉ. बलवंत राय मेहता समिति 1957 की प्रमुख सिफारिशें

                       

क्रम सं.

रिपोर्ट के पैरा सं. का संदर्भ लीजिए  

सिफारिशें का सारांश

1.

2.8

सरकार को कुछ कामों और ज़िम्मेदारियों से खुद को पूरी तरह अलग कर लेना चाहिए और उन्हें एक ऐसी संस्था को सौंप देना चाहिए जो अपने अधिकार क्षेत्र में सभी विकास कार्यों का पूरा ज़िम्मा संभालेगी, और सरकार सिर्फ़ मार्गदर्शन, निगरानी और उच्च स्तरीय प्लानिंग का काम अपने पास रखेगी।

2.

2.12

ब्लॉक स्तर पर, एक चुनी हुई स्व-शासी संस्था बनाई जानी चाहिए जिसका अधिकार क्षेत्र एक डेवलपमेंट ब्लॉक के बराबर हो।

3.

2.15

पंचायत समिति का गठन ग्राम पंचायतों से अप्रत्यक्ष चुनावों द्वारा किया जाना चाहिए।

4.

2.16

एक ब्लॉक के अधिकार क्षेत्र में आने वाली हर नगर पालिका को अपने सदस्यों में से एक व्यक्ति को पंचायत समिति के सदस्य के रूप में चुनना चाहिए। दूसरा, राज्य सरकार मुख्य रूप से ग्रामीण नगर पालिकाओं को पंचायतों में बदल सकती है।

5.

2.17

and

2.18

जहां एक ब्लॉक में स्थानीय कोऑपरेटिव संगठनों का दायरा और महत्व हो, वहां चुनी हुई सीटों की संख्या के 10% के बराबर सीटें कोऑपरेटिव के निदेशकों के प्रतिनिधियों द्वारा या तो को-ऑप्शन या निर्वाचन द्वारा भरी जाएंगी। दूसरा, समिति का कार्यकाल 5 साल का होना चाहिए और यह पांच-वर्षीय योजना अवधि के तीसरे साल में अस्तित्व में आनी चाहिए।

6.

2.19

and

2.20

पंचायत समिति के कामों में कृषि और उसके सभी पहलुओं का विकास, पशुओं में सुधार, स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देना, जन स्वास्थ्य, कल्याणकारी कार्य, प्राइमरी स्कूलों का प्रसाशन और आंकड़ों को इकट्ठा करना और उनका रखरखाव शामिल होना चाहिए। इसे राज्य सरकार के एजेंट के तौर पर भी काम करना चाहिए ताकि उसे सौंपी गई खास विकास योजनाओं को लागू किया जा सके। दूसरे काम पंचायत समितियों को तभी सौंपे जाने चाहिए जब वे असरदार लोकतांत्रिक संस्थाओं के तौर पर काम करना शुरू कर दें।

7.

2.21

पंचायती समिति को आय के निम्नलिखित स्रोत दिए जाएं:

 

i. ब्लॉक के अंदर इकट्ठा किए गए भूमि राजस्व का प्रतिशत

ii. भूमि राजस्व पर सेस, आदि।

iii. व्यवसायों पर टैक्स, आदि।

iv. अचल संपत्ति के ट्रांसफर पर ड्यूटी पर सरचार्ज।

v. संपत्ति से होने वाला किराया और लाभ,

vi. टोल और लीज से होने वाली शुद्ध आय।

vii. तीर्थयात्री टैक्स, मनोरंजन पर टैक्स, प्राथमिक शिक्षा सेस, मेलों और बाजारों से होने वाली आय।

viii. मोटर वाहन टैक्स का हिस्सा।

ix. स्वैच्छिक सार्वजनिक योगदान।

x. सरकार द्वारा दिए गए अनुदान।

8.

2.21

राज्य सरकार को इन समितियों को आर्थिक रूप से पिछड़े इलाकों का ध्यान रखते हुए, शर्त के साथ या बिना शर्त या मैचिंग आधार पर पर्याप्त अनुदान राशि देना चाहिए।

9.

2.22

किसी ब्लॉक एरिया में खर्च होने वाले सभी केंद्रीय और राज्य फंड अनिवार्य रूप से पंचायत समिति को दिए जाने चाहिए ताकि वह उन्हें सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से खर्च कर सके, सिवाय तब जब समिति किसी संस्था को सीधी सहायता देने की सिफारिश करे।

10.

2.25

समिति के तकनीकी अधिकारी संबंधित ज़िला स्तर के अधिकारियों के तकनीकी नियंत्रण में होने चाहिए, लेकिन उनका प्रशासनिक और ऑपरेशनल कंट्रोल उसके मुख्य प्रशासनिक अधिकारी के पास होना चाहिए।

11.

2.25

समिति का वार्षिक बजट जिला परिषद द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।

12.

2.26

सरकार के पास कुछ हद तक कंट्रोल ज़रूर रहना चाहिए, जैसे कि जनहित में किसी पंचायत समिति को भंग करने की शक्ति।

13.

2.28

पंचायत का गठन पूरी तरह से चुनाव के आधार पर होना चाहिए, जिसमें दो महिला सदस्यों और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से एक-एक सदस्य को को-ऑप्ट करने का प्रावधान हो। किसी अन्य विशेष समूह को विशेष प्रतिनिधित्व देने की ज़रूरत नहीं है।

14.

2.29

पंचायत की आय के मुख्य स्रोत प्रॉपर्टी या हाउस टैक्स, बाज़ारों और वाहनों पर टैक्स, चुंगी या टर्मिनल टैक्स, सफ़ाई टैक्स, पानी और बिजली का रेट, पशु तालाबों से होने वाली आय, पंचायत समिति से मिलने वाला अनुदान और बेचे गए जानवरों के रजिस्ट्रेशन से ली जाने वाली फीस वगैरह होंगे।

15.

2.30

ग्राम पंचायतों को भूमि राजस्व इकट्ठा करने वाली एजेंसी के तौर पर इस्तेमाल किया जाना चाहिए और उन्हें कमीशन दिया जाना चाहिए। इस मकसद के लिए पंचायतों को एडमिनिस्ट्रेटिव और डेवलपमेंट के क्षेत्र में उनके परफॉर्मेंस के आधार पर ग्रेड दिया जा सकता है, और सिर्फ़ उन्हीं पंचायतों को यह अधिकार दिया जाए जो एक खास मूलभूत न्यूनतम दक्षता को पूरा करती हैं।

16.

2.30

ग्राम पंचायतों को पंचायत समिति से, वैधानिक रूप से निर्धारित हिस्सा, पंचायत समिति को दिए गए शुद्ध भूमि राजस्व का तीन-चौथाई तक, पाने का अधिकार होना चाहिए।

17.

2.31

ग्राम पंचायतों द्वारा जुटाए गए स्थानीय संसाधनों को, जो अभी चौकीदारों के रखरखाव पर खर्च किए जाते हैं, भविष्य में विकास कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

18.

2.32

कानून में यह प्रावधान होना चाहिए कि जो व्यक्ति पिछले साल अपना टैक्स नहीं चुका पाया है, उसे अगले पंचायत चुनाव में वोट देने से रोक दिया जाए और अगर किसी पंचायत सदस्य का टैक्स छह महीने से ज़्यादा समय से बकाया है, तो उसकी सदस्यता अपने आप खत्म हो जानी चाहिए।

19.

2.33

ग्राम पंचायत का बजट पंचायत समिति की जांच और मंज़ूरी के अधीन होगा, जिसके मुख्य अधिकारी को ग्राम पंचायत के संबंध में वही अधिकार होंगे जो कलेक्टर को पंचायत समिति के संबंध में होते हैं। हालांकि, किसी भी ग्राम पंचायत को राज्य सरकार के अलावा कोई और भंग नहीं कर सकता, और राज्य सरकार भी ऐसा केवल ज़िला परिषद की सिफ़ारिश पर ही करेगी।

 

20.

2.34

ग्राम पंचायतों के अनिवार्य कामों में जल आपूर्ति, स्वच्छता, रोशनी, सड़कों का रखरखाव, भूमि प्रबंधन, रिकॉर्ड और दूसरे आँकड़ों को इकट्ठा करना और उनका रखरखाव और पिछड़े वर्गों का कल्याण शामिल होना चाहिए। यह पंचायत समिति के एजेंट के तौर पर भी काम करेगी और उसे सौंपी गई किसी भी योजना को लागू करेगी।

21.

2.28

न्यायिक पंचायत का अधिकार क्षेत्र ग्राम सेवक के सर्कल से भी बहुत बड़ा हो सकता है, और गाँव पंचायतों द्वारा सुझाए गए पैनल में से सब-डिविजनल या जिला मजिस्ट्रेट न्यायिक पंचायत बनाने के लिए लोगों को चुन सकते हैं।

22.

2.38

पंचायत समितियों के बीच ज़रूरी तालमेल सुनिश्चित करने के लिए, एक ज़िला परिषद बनाई जानी चाहिए जिसमें इन समितियों के अध्यक्ष, उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले विधान सभा सदस्य और संसद सदस्य तथा ज़िला स्तर के अधिकारी शामिल हों। कलेक्टर इसका अध्यक्ष होगा और उसका एक अधिकारी सचिव के तौर पर काम करेगा।

23.

2.46

अगर लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के इस प्रयोग से ज़्यादा से ज़्यादा नतीजे चाहिए, तो यह ज़रूरी है कि इस योजना के तीनों स्तर, यानी ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और ज़िला परिषद एक ही समय पर शुरू किए जाएं और पूरे ज़िले में एक साथ चलाए जाएं।

24.

2.47

स्थानीय निकायों के लिए चुने गए या चुने जाने की इच्छा रखने वाले व्यक्तियों को प्रशासनिक मामलों में कुछ प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि उन्हें इस मशीनरी के बारे में कम से कम ज़रूरी जानकारी मिल सके, जो लगातार और ज़्यादा जटिल होती जा रही है।

25.

2.48

कुछ राज्य ज़िला स्तर पर स्थानीय निकाय को अधिकार देना सही समझते हैं। जबकि ब्लॉक इस काम के लिए सबसे अच्छी इकाई है, इसकी जगह ज़िला निकाय को भी इसी तरह का अधिकार दिया जा सकता है, बशर्ते कि

 

(क) ऐसी ज़िला निकाय को पंचायत समिति की तरह ही, लेकिन बड़े पैमाने पर, कानून द्वारा पूरी तरह से अधिकार दिए गए हों;

 

(ख) पंचायत समिति की तरह ही, ज़रूरी फंड, टैक्स लगाने का अधिकार, ज़रूरी फील्ड स्टाफ, और ज़िला हेडक्वार्टर में सुपरवाइजरी स्टाफ उपलब्ध कराया जाए;

 

(ग) डेवलपमेंट प्रोग्राम के लिए चुने गए ब्लॉकों में, पंचायत समितियाँ बनाई जाएँ ताकि वे ज़िला निकाय के एजेंट के तौर पर उस इलाके के लिए ज़िला निकाय द्वारा प्रस्तावित सभी डेवलपमेंट एक्टिविटीज़ को पूरा कर सकें, और ब्लॉक में खर्च होने वाला सारा फंड पंचायत समितियों को ट्रांसफर कर दिया जाए;

 

(घ) ज़िला निकाय सीधे तौर पर सिर्फ़ उन इलाकों में काम करे जहाँ पंचायत समिति नहीं है या फिर इंटर-ब्लॉक और ज़िला स्तर की गतिविधियों तथा संस्थानों के मामलों में काम करे; और

 

(ङ) ज़िला निकाय का गठन पूरी तरह से चुने हुए सदस्यों के आधार पर इस तरह से किया जाए कि वह ग्रामीण विकास के लिए एक प्रभावी साधन के तौर पर बहुत बड़ी न हो जाए।

 

(च) अगर मुमकिन हो, तो इसके बदले में ज़िले के सब-डिवीजन वाले इलाके के लिए एक निकाय को अधिकार हस्तांतरित करने का इंतज़ाम भी किया जा सकता है।

                       

यह जानकारी केंद्रीय मंत्री श्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ​​ललन सिंह ने 16 दिसंबर 2025 को लोकसभा में लिखित उत्तर में दी।

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