जनजातीय भूमि का गैर-जनजातीय व्यक्तियों को अवैध रूप से हस्तांतरण
जनजातीय भूमि का गैर-जनजातीय व्यक्तियों को अवैध रूप से हस्तांतरण
आज राज्यसभा में एक अतारांकित प्रश्न का उत्तर देते हुए, जनजातीय कार्य मंत्रालय में केंद्रीय राज्य मंत्री श्री दुर्गादास उइके ने जानकारी दी कि भूमि और उसका प्रबंधन भारत के संविधान के तहत राज्यों के विशिष्ट विधायी और प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आता है (सप्तम अनुसूची – सूची II (राज्य सूची) – प्रविष्टि सं. 18)। इसके अतिरिक्त, विभिन्न राज्यों में जनजातीय भूमि का गैर-जनजातीय व्यक्तियों को अवैध हस्तांतरण की घटनाओं के मामलों का विवरण केंद्रीय सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा संचित नहीं किया जाता है; यह जानकारी राज्य सरकार के पास होती है।
संविधान की पंचम अनुसूची, भूमि अधिग्रहण आदि के कारण जनजातीय आबादी के विस्थापन से सुरक्षा प्रदान करती है। जिन राज्यों में अनुसूचित क्षेत्र हैं, उनके राज्यपाल को ऐसे क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा या उनके बीच भूमि के हस्तांतरण को रोकने या सीमित करने तथा ऐसे मामलों में अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों को भूमि आवंटित करने का अधिकार प्राप्त है। जिन सभी राज्यों में अनुसूचित क्षेत्र हैं, उनके पास भूमि विनियमन अधिनियम हैं, जो जनजातीय भूमि के गैर-जनजातीयों को विक्रय और हस्तांतरण पर रोक से संबंधित हैं और अनुसूचित क्षेत्रों में ऋण व्यवसाय को नियंत्रित करते हैं जिससे अनुसूचित जनजातियों (एसटी) की सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके। संविधान की पंचम अनुसूची के प्रावधानों का कार्यान्वयन उन संबंधित राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है जिनमें अनुसूचित क्षेत्र स्थित हैं।
इसके अतिरिक्त, प्रत्येक राज्य में जिनमें अनुसूचित क्षेत्र हैं, वहाँ जनजातीय सलाहकार परिषदें (टीएसी) स्थापित की गई हैं, जो राज्यपाल को जनजातीय कल्याण और प्रशासन के मामलों में सलाह देती हैं। उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए नियम राज्यपाल बनाते हैं। प्रत्येक अनुसूचित क्षेत्र वाले राज्य के राज्यपाल इन क्षेत्रों के प्रशासन पर वार्षिक रूप से भारत के राष्ट्रपति को रिपोर्ट करते हैं, जिससे केंद्र सरकार को निरीक्षण करने और दिशा देने की सुविधा मिलती है।
जनजातीय कार्य मंत्रालय समय-समय पर राज्य सरकारों को निर्देश/परामर्श जारी करता रहा है, जिससे संविधानिक प्रावधानों और अनुसूचित जनजातियों को सुरक्षा प्रदान करने वाले विभिन्न कानूनों के संदर्भ में अनुसूचित जनजातियों के हितों की उचित रक्षा सुनिश्चित की जा सके।