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“गुरुजोना ने असमिया पहचान की सांस्कृतिक और नैतिक नींव रखी”: श्री सर्बानंद सोनोवाल

“गुरुजोना ने असमिया पहचान की सांस्कृतिक और नैतिक नींव रखी”: श्री सर्बानंद सोनोवाल

असम सरकार ने सांस्कृतिक महत्व के एक समारोह में आज प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना और सांस्कृतिक प्रतीक डॉ. सोनल मानसिंह को श्रीमंत शंकरदेव पुरस्कार प्रदान किया। 15वीं शताब्दी के संत-सुधारक श्रीमंत शंकरदेव के नाम पर यह पुरस्कार, राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य द्वारा गुवाहाटी के श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में प्रदान किया गया।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ हिमंत बिस्वा सरमा, केंद्रीय पोत, परिवहन और जलमार्ग मंत्री श्री सर्बानंद सोनोवाल और सांस्कृतिक मामलों के मंत्री बिमल बोरा और पद्म भूषण पुरस्कार विजेता जतिन गोस्वामी सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

केंद्रीय मंत्री श्री सर्बानंद सोनोवाल ने अपने संबोधन में डॉ. सोनल मानसिंह को भारतीय शास्त्रीय परंपराओं की संरक्षक बताया, जिन्होंने अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को भी समान रूप से निर्वहन है। उन्होंने महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण जागरूकता और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर ध्यान देने के लिए नृत्य को एक माध्यम के रूप में उपयोग करने पर उनकी प्रशंसा की।

श्रीमंत शंकरदेव के उपदेशों का उल्लेख करते हुए श्री सोनोवाल ने कहा, “एकता, सामाजिक सद्भाव और पारिस्थितिक संतुलन की उनकी दृष्टि – एक पेड़ दस पुत्रों के समान है‘ – कहावत का प्रतीक है जो हमें निरंतर एक समावेशी और प्रदूषण मुक्त समाज का निर्माण करने के लिए प्रेरित करती है।”

श्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा कि श्रीमंत शंकरदेव का योगदान आध्यात्मिकता से परे था, “गुरुजोना ने असमिया पहचान की सांस्कृतिक और नैतिक नींव रखी – समुदायों को जोड़ा, वंचित समाजों का उत्थान किया और एक ऐसे समाज की कल्पना की जहां सभी जातियां, पंथ और भाषाएं एक साथ रह सकें।”

श्री सोनोवाल ने पुरस्कार के महत्व की प्रशंसा करते हुए कहा, डॉ. सोनल मानसिंह, जिनकी कला में निरंतर गहराई, अनुशासन और करुणा झलकती रही है,को यह सम्मान प्रदान करना हमारे समकालीन सांस्कृतिक परिदृश्य में शंकरदेव के मूल्यों की पुष्टि करना है।

पद्म विभूषण से सम्मानित और पूर्व राज्यसभा सदस्य डॉ. सोनल मानसिंह लंबे समय से भारतीय शास्त्रीय नृत्य में अग्रणी व्यक्तित्व रही हैं। मणिपुरी नृत्य में उनके आरंभिक प्रशिक्षण ने उन्हें पूर्वोत्तर से जोड़ा और उन्होंने असम के कामाख्या मंदिर को अक्सर अपना एक आध्यात्मिक घर माना है।

असम के सर्वोच्च सांस्कृतिक सम्मानों में से एक, श्रीमंत शंकरदेव पुरस्कार उन व्यक्तियों को प्रदान किया जाता है जो कला, संस्कृति और समाज में अपने योगदान के माध्यम से शंकरदेव के मूल्यों के प्रतीक रहे हैं।

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