Tuesday, June 24, 2025
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आगामी दशक की जनगणना में जाति आधारित गणना एक परिवर्तनकारी कदम होगी; यह सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेगी: उपराष्ट्रपति

आगामी दशक की जनगणना में जाति आधारित गणना एक परिवर्तनकारी कदम होगी; यह सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेगी: उपराष्ट्रपति

भारत के उपराष्ट्रपतिश्री जगदीप धनखड़ ने आज कहा, “सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया हैआगामी दशक की जनगणना में जाति आधारित गणना को शामिल करने का। यह एक परिवर्तनकारीगेम-चेंजर कदम होगा। यह सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेगा। यह आंखें खोलने वाला कदम होगा और लोगों की आकांक्षाओं को संतोष देगा। यह सरकार का एक व्यापक निर्णय है। पिछली जातिगत जनगणना 1931 में हुई थी। मैंने कई बार अपनी जाति को जानने के लिए उस जनगणना को देखा हैइसलिए मैं इस गणना के महत्व को समझता हूँ।

Far from being divisive, thoughtfully collected caste data will be an instrument of integration.

Some people are debating about it, but how can information collected by itself be a source of problem? It is like getting an MRI of the body. This information will tell us where we… pic.twitter.com/xchcCblBgH

नई दिल्ली में भारतीय सांख्यिकी सेवा के परिवीक्षाधीन अधिकारियों को संबोधित करते हुए श्री धनखड़ ने कहा, “जातिगत आंकड़ेयदि सोच-समझकर एकत्र किए जाएंतो वे किसी भी प्रकार से विभाजनकारी नहीं हैंबल्कि वे एकीकरण के उपकरण बन सकते हैं। कुछ लोग इस पर बहस कर रहे हैंलेकिन हम परिपक्व समाज हैं। किसी जानकारी को इकट्ठा करना समस्या कैसे हो सकता हैयह तो अपने शरीर की एमआरआई कराने जैसा हैतभी तो आपको अपने बारे में जानकारी मिलती है। इस प्रक्रिया से हम संविधान में निहित समानता जैसे अमूर्त संकल्पों को मापनीय और जवाबदेह नीतिगत परिणामों में परिवर्तित कर सकते हैं।

Hon’ble Vice-President, Shri Jagdeep Dhankhar interacted with the Indian Statistical Service (ISS) Probationers of 2024 and 2025 batches at the Vice-President’s Enclave today. @NSSTA_Official @GoIStats #ISS pic.twitter.com/vqlMuDabnw

उपराष्ट्रपति ने शासन में अद्यतन और सटीक डेटा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, “ठोस आंकड़ों के बिना प्रभावी नीति योजना बनाना अंधेरे में सर्जरी करने जैसा है। आप स्वयं कल्पना कर सकते हैं कि आपका कार्य कितना प्रासंगिक है। हमारे राष्ट्रीय डेटा में हर अंक एक मानवीय कहानी का प्रतिनिधित्व करता हैऔर हर प्रवृत्ति एक दिशा दिखाती है।

उन्होंने आगे कहा, “आपको अपने सेवा जीवन के हर क्षण में अनुभव होगा कि जो चीजें आपने मान ली थींवे कितनी नाजुक थीं। यह एक मृगतृष्णा जैसी होती हैक्योंकि आंकड़े कभी झूठ नहीं बोलते।

श्री धनखड़ ने दोहराया कि भारत का विकसित राष्ट्र बनने का संकल्प केवल आकांक्षा नहींबल्कि साक्ष्य-आधारित योजना पर आधारित है। उन्होंने कहा, “हम एक विकसित भारत की ओर बढ़ रहे हैंयह हमारा सपना नहींबल्कि हमारा उद्देश्यपरिभाषित लक्ष्य है। भारत अब संभावनाओं वाला राष्ट्र नहींबल्कि एक उभरती हुई शक्ति हैजिसकी प्रगति अब रुकने वाली नहीं है। यह प्रगति आंकड़ों के आधार पर साक्ष्य-आधारित मील के पत्थरों से चिन्हित है। हमें ऐसा राष्ट्र बनाना है जो अनुभवजन्य रूप से सोचता हो और ठोस प्रमाणों के आधार पर आगे बढ़े।

The Indian Statistical Service has a rich legacy of nation-building. You are part of a very distinguished cadre that has played a vital role in shaping evidence-based policy and governance in our country.

Statistics is not merely about numbers. It is about identifying patterns… pic.twitter.com/iRIobnftY8

नीति निर्धारण में ताजगीपूर्ण व प्रासंगिक आंकड़ों के उपयोग पर बल देते हुए उन्होंने कहा, “सांख्यिकी सिर्फ संख्याओं की बात नहीं हैयह उससे कहीं अधिक है। यह पैटर्न की पहचान और नीतिगत समझ की दिशा में जानकारी देने वाली अंतर्दृष्टियों का माध्यम है। यदि डेटा समकालीन परिप्रेक्ष्य में न होतो वह बासी हो सकता है। सही समय पर लिए गए निर्णय क्रांतिकारी प्रभाव डाल सकते हैंन कि केवल मामूली।

उपराष्ट्रपति ने कहा, “संख्याएं शुष्क अमूर्त नहीं हैंबल्कि वे हमारी सामूहिक आकांक्षाओं की गर्मजोशी से भरी गवाही हैं। भविष्य उन्हीं का है जो समाज को पढ़नासांख्यिकीय संकेतों को समझना जानते हैंऔर केवल आप ही वे संकेत उपलब्ध कराते हैं। जब सांख्यिकी और लोकतांत्रिक मूल्यों का समागम होता हैतब भारत की प्रगति का रहस्य प्रकट होता है।

उन्होंने कहा, “यह सटीक आंकड़ा विश्लेषण शासन को प्रतिक्रिया आधारित कार्यशैली से निकालकर दूरदर्शी नेतृत्व में बदल देता है। हमेशा प्रतिक्रिया करना नीति की कमजोरी हैयह दूरदृष्टि की कमी को दर्शाता है।

उन्होंने यह भी कहा, “हमें जनसांख्यिकीय प्रवृत्तियों को आंकड़ों के माध्यम से समझना होगा। ये प्रवृत्तियाँ केवल आंकड़े नहीं होतींबल्कि परिवर्तन की नब्ज होती हैं। इसलिएसांख्यिकी के ज़रिए जनसांख्यिकीय विविधता को समझना नीतिगत दृष्टि से राष्ट्रीय सुरक्षासंप्रभुता की रक्षा और खतरे की पहचान के लिए अनिवार्य है।

The government has taken a bold decision to include caste-based enumeration in the upcoming decadal census.

It will be a transformative, game-changing step. It will be an eye-opener. It will help bring about social justice. It will satisfy people’s aspirations.

There was… pic.twitter.com/PG0e7EwCJE

युवाओं को समानता के वाहक के रूप में प्रेरित करते हुए उन्होंने कहा, “आप परिवीक्षाधीन अधिकारी हैं। सांख्यिकीय मानचित्रण से असमानता के छिपे हुए आयाम उजागर होते हैं। लोकतंत्र तभी सार्थक होता है जब कमजोरों की सहायता बिना कहे की जाए। आपकी भूमिका यह सुनिश्चित करती है कि शासन लक्षित हस्तक्षेप कर सके।

उपराष्ट्रपति ने सिविल सेवकों की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा, “भारत की प्रगति के इस विस्तृत फलक परसिविल सेवक मूक लेकिन दृढ़ शिल्पी के रूप में कार्य करते हैं। यह प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण और मिशन के कारण संभव हो पाया है। जब राजनीतिक नेतृत्व सकारात्मक होनीतियाँ स्पष्ट होंतब प्रशासनिक तंत्र अपनी भूमिका को प्रभावी रूप से निभा सकता है। और इसी कारण भारत आज अभूतपूर्व आर्थिक उत्थानअद्भुत बुनियादी ढांचे के विकास और आशाजनक भविष्य की ओर अग्रसर है। यह राजनीतिक दूरदृष्टि और प्रशासनिक निष्पादन का सुंदर मेल है। इसलिए मैं कहता हूँ कि भारत अपनी नौकरशाही पर गर्व करता हैयह विश्व की सबसे उत्कृष्ट है।

In the vast canvas of India’s progress, civil servants function as the silent yet formidable architects contributing to socio economic development and progress of our dynamic nation.

India takes pride in its bureaucracy. It is among the finest in the world.

Thanks to the… pic.twitter.com/AxJkXS7Ftt

अंत मेंभाषाई विविधता पर बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “भाषा के मामले में भारत की स्थिति विशिष्ट है। तमिलतेलुगुकन्नड़बंगलासंस्कृतहिंदीओड़िया सहित अनेक भाषाएं हमारी शक्ति हैं। आठ भाषाएं तो शास्त्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता प्राप्त हैं। इन भाषाओं की साहित्यिक संपदा अमूल्य है। संविधान में भी यह प्रावधान है कि सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का प्रयोग धीरे-धीरे कम होगा और हिंदी का प्रयोग बढ़ेगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति मातृभाषा को प्राथमिकता देती है। तकनीकी शिक्षाचिकित्सा और इंजीनियरिंगअब स्थानीय भाषाओं में दी जा रही है। हमारी भाषाएं हमारी रीढ़ हैं। वे कभी विभाजन का कारण नहीं बन सकतीं। वे हमारी एकता का सूत्र हैं। मैं सभी से अपील करता हूँ कि इस सांस्कृतिक पक्ष को अपनाएं और सद्भावना से देखें।

India is uniquely positioned in the world when it comes to languages. Their literature is a goldmine of knowledge. Eight of them are classical languages.

Our languages are our spinal strength. Our languages can never be a source of divisiveness; they are a unifying force.

I… pic.twitter.com/fBZxbHcSkE

इस अवसर पर सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के सचिव डॉ. सौरभ गर्गमहानिदेशक श्री पी.आर. मेशराम और अन्य गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे।