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अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण एवं संवर्धन

अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण एवं संवर्धन

अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (आईसीएच) की राष्ट्रीय सूची, जिसमें राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से प्राप्त पात्र आईसीएच तत्त्व शामिल हैं, का केंद्रीय स्तर पर संधारण संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत संगीत नाटक अकादमी (एसएनए) द्वारा किया जाता है। इस सूची का निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों तथा अन्य हितधारकों द्वारा प्रस्तुत अपेक्षित प्रलेखन के आधार पर नियमित रूप से अद्यतन किया जाता है, जिसमें निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार, वंचित, जनजातीय एवं स्वदेशी परंपराओं से संबंधित तत्त्व भी सम्मिलित होते हैं। अमूर्त सांस्‍कृतिक विरासतों की राष्ट्रीय सूची निम्नलिखित लिंक पर उपलब्ध है: https://www.sangeetnatak.gov.in/sections/ICH.

संस्कृति मंत्रालय के क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों (जोनल कल्चरल सेंटर्स–जेडसीसी) की गुरु-शिष्य परंपरा योजना के अंतर्गत शिष्यों को वरिष्ठ कलाकारों द्वारा विभिन्न कला रूपों में प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है, जिसमें दुर्लभ एवं लुप्तप्राय: कला रूप भी शामिल हैं।

इस योजना के अंतर्गत गुरु को ₹7,500/-, संगतकार को ₹3,750/- तथा शिष्यों को ₹1,500/- प्रति माह का मानदेय प्रदान किया जाता है। यह मानदेय एक कला रूप के लिए न्यूनतम छह माह से अधिकतम एक वर्ष की अवधि के लिए देय होता है। गुरुओं के नामों की अनुशंसा राज्य के संस्कृति कार्य विभागों द्वारा की जाती है।

जोनल सांस्कृतिक केंद्र (जेडसीसी) उभरते कलाकारों के लिए मंच उपलब्ध कराकर, विद्यार्थियों एवं युवा समूहों की सहभागिता को प्रोत्साहित करके तथा शैक्षणिक संस्थानों और स्थानीय समुदायों को जोड़कर ज्ञान के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरण सुनिश्चित करते हैं। ये प्रयास युवाओं की भागीदारी बढ़ाने, सामुदायिक गौरव को सुदृढ़ करने और पारंपरिक सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों में निरंतर जन-रुचि उत्पन्न करने के माध्यम से संकटग्रस्त कला रूपों के पुनर्जीवन में प्रभावी सिद्ध हुए हैं।

छठ महापर्व का नामांकन दस्तावेज़ संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त निकाय तथा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (आईसीएच) से संबंधित मामलों की नोडल एजेंसी, संगीत एवं नाटक अकादमी द्वारा क्षेत्रीय निकायों एवं अन्य हितधारकों की सक्रिय सहभागिता के साथ तैयार किया गया है। यह नामांकन दस्तावेज़ 2026–27 चक्र के लिए मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में सम्मिलित किए जाने हेतु यूनेस्को को प्रस्तुत किया गया है।

भारत सरकार द्वारा स्थापित सभी जोनल सांस्कृतिक केंद्र (जेडसीसी) युवाओं पर केंद्रित विभिन्न कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करते हैं, जो संकटग्रस्त कला रूपों के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इन पहलों में राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सवों (आरएसएम), सांस्कृतिक उत्सवों तथा अंतर-राज्यीय विनिमय कार्यक्रमों का आयोजन शामिल है, जिनके माध्यम से युवाओं को विविध पारंपरिक प्रथाओं से परिचित कराया जाता है। इसके अतिरिक्त, कार्यशालाओं, प्रशिक्षण शिविरों एवं शिल्प प्रदर्शनियों के माध्यम से लोक नृत्य, संगीत, रंगमंच और शिल्प के क्षेत्रों में उन्हें व्यावहारिक कौशल भी प्रदान किए जाते हैं।

जोनल सांस्कृतिक केंद्र (जेडसीसी) अपने कार्यक्रमों, गतिविधियों तथा प्रदर्शन कलाओं का डिजिटल रूप में प्रलेखन करने में संलग्न हैं। इसके अंतर्गत संकटग्रस्त लोक-कला रूपों की रिकॉर्डिंग एवं दस्तावेज़ीकरण के साथ-साथ लोककथा एवं मौखिक इतिहास से संबंधित पुस्तकों, प्रतिवेदनों तथा लोक-कथाओं का मुद्रण भी किया जाता है।

यह जानकारी आज राज्यसभा में एक लिखित उत्तर के माध्यम से केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत द्वारा दी गई।

 

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